इंदौरा: प्रभु श्री राम जैसा कोई शिव भक्त नहीं: गंगाधर शास्त्री

सावन के पावन मास में काठगढ़ महादेव (इंदौरा) के परिसर में चल रहे श्रावण मास महोत्सव के चलते परम पूज्य गंगाधर शास्त्री महाराज ने से सर्वप्रथम सभी देवताओं की स्तुति वंदना की। तत्पश्चात उन्होंने कहा कि गुरु, शिव शंकर की भांति गुणों से भरपूर हो, बल्कि आजकल सब शिष्य कम बनना चाहते हैं ,बल्कि सब गुरु का दर्जा ही पाना चाहते हंै। उन्होंने कहा कि भारत देश ही बारह ज्योतिर्लिंगों का देवस्थान है तथा यहां मां पार्वती के पूर्व जन्म सती के अवशेषों से विभिन्न स्थान मिलते हंै। भगवान शिव जैसा कोई भी वैष्व नहीं व प्रभु श्री राम जैसा कोई शिव भक्त नहीं।
उन्होंने कहा कि ओरव ऋषि के श्राप से शिव जी का शरीर जलन से दग्ध हो रहा है और उस समय माँ पार्वती जी भोलेनाथ जी के साथ श्री बद्रीनाथ गए और भगवान नारायणजी ने आवाहन किया और उन्होंने 77 सुरभी ग्यूओ को प्रकट किया। उनके दिव्य शीतल दूध से भोलेनाथ जी के ऊपर दूध थन धारा से अभिषेक करवाया तब जाकर ऋषि के श्राप की जलन शांत हुई।
कथा को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि शिव विश्वास का प्रतीक है। शिव व नारायण दोनों एक ही है इनमे कोई अंतर नही। भगवान को जिस भाव से पुकारते है वो उसी भाव मे प्राप्त होते है। उन्होंने कहा कि कर्म से नियत बड़ी होती है। इंसान को कर्मो के साथ साथ नियत भी साफ रखनी चाहिए। इंसान को कभी भी किसी को अपने से छोटा नही समझना चाहिए। सभी भगवान के एक बराबर अंश है।
जब भगवान राम जी ने लंका विजय के समय रामेश्वर सेतु का निर्माण करने का संकल्प लेना था तो उस समय लंकापति रावण को श्रेष्ठ पुरोहित के रूप में तट पर बुलाया और उनसे विधिपूर्वक संकल्प करवाया।
और हमे मन भक्ति में ओर धन समाज की सेवा में लगाना चाहिए। ईश्वर का नाम कलयुग ने आधार है, ईश्वर का साथ हो तो सभी सुख सुविधाएं पर्याप्त होती है।
मां पार्वती (सती) जी के पिता राजा दक्ष प्रजापति बनने पर शिव जी द्वारा बधाई न देने पर राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया और शिव व सती का अपमान करने के लिए उन्हें यज्ञ में नही बुलाया। और माँ पार्वती जब बिना बुलाये यज्ञ में चली गयी तो राजा दक्ष ने माता व शिव जी का अपनी वाणी द्वारा अपमान किया, तब मां सती क्रोध में आयी और अग्नि प्रगट करके भस्म हो गयी।
जब इसकी सूचना भगवान शिव को मिली तो उन्होंने क्रोधित होकर अपनी एक जटा से एक वीरभद्र नाम का गण प्रकट किया। उसने राजा दक्ष का सिर काटकर यज्ञ कुंड में डाल दिया। भगवान भोले नाथ सती के शरीर को अपने कंधे पर बिठाकर जहां जहां भ्रमण किया और 51 टुकड़े धरती पर गिरे वो आज शक्तिपीठ के नाम से जाने जाते हैं।