बहरहाल, चौपाल में मुकाबला कड़ा है
चौपाल वो निर्वाचन क्षेत्र है जो उम्मीदवार देखता है, पार्टी सिंबल नहीं। पिछले 6 चुनाव के नतीजे तो ये ही बयां कर रहे है। 1993 के विधानसभा चुनाव से 2017 तक यहां एक बार निर्दलीय उम्मीदवार जीतता है, तो अगली बार किसी राजनीतिक पार्टी का प्रत्याशी। एक और रोचक बात है, यहां एक बार जो उम्मीदवार बतौर निर्दलीय जीत दर्ज करता है, वो ही अगली मर्तबा पार्टी सिंबल पर जीतकर विधायक बनता है। साल 1993 में इस सीट से योगेंद्र चंद ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और वे चुनाव जीत गए। उसके बाद 1998 में योगेंद्र चंद्र की कांग्रेस में वापसी हुई और वे ही बतौर कांग्रेस प्रत्याशी ये चुनाव जीते। वर्ष 2003 में चौपाल से निर्दलीय प्रत्याशी सुभाष चंद मंगलेट ने कांग्रेस प्रत्याशी योगेंद्र चंद्र को शिकस्त दी। 2007 में सुभाष की कांग्रेस में एंट्री हुई और उन्होंने चुनाव भी जीता। 2012 के चुनावों में भाजपा ने टिकट बदल कर एडवोकेट सीमा मेहता को दिया, जबकि कांग्रेस ने एक बार फिर से मंगलेट पर ही दांव खेला। इसके बाद दोनों पार्टियों के प्रत्याशियों के समीकरण को ठियोग के पूर्व विधायक राकेश वर्मा के चचेरे भाई बलवीर वर्मा ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़कर बिगाड़ दिया और वे चुनाव जीते। साढ़े चार साल तक कांग्रेस का एसोसिएट सदस्य रहने के बाद वर्मा ने पलटी मारकर चुनावों से ठीक पहले भाजपा का दामन थाम लिया व 2017 विधानसभा चुनावों में भाजपा का टिकट लेकर चुनाव जीते। अब इस बार यहां कांग्रेस ने रजनीश खिमटा को मैदान में उतारा है, तो भाजपा ने बलवीर वर्मा को। वहीं कांग्रेस से टिकट न मिलने पर नाराज हुए पूर्व विधायक सुभाष मंगलेट बतौर निर्दलीय मैदान में है।
क्या इस बार फिर निर्दलीय की बारी ?
बहरहाल बड़ा सवाल ये है कि क्या एक चुनाव के बाद अगला चुनाव निर्दलीय उम्मीदवार के जीतने का सियासी रिवाज चौपाल में कायम रहने वाला है, या इस बार इस सिलसिले पर ब्रेक लगेगा। बहरहाल इस त्रिकोणीय मुकाबले में सुभाष मंगलेट का दावा कमतर नहीं माना जा सकता। टिकट काटने के चलते मंगलेट को चौपाल में खूब सहानुभूति मिलती दिखी है। वहीं कांग्रेस टिकट न मिलने पर मंगलेट ने कांग्रेस पर टिकटों की खरीद फरोख्त का इल्जाम लगाकर भी खूब ध्यान खींचा है। उधर, कांग्रेस का बागी मैदान में होने के चलते भाजपा को भरोसा है कि वो चौपाल में जीत दर्ज करेगी। हालांकि बलबीर वर्मा को लेकर कुछ एंटी इंकम्बैंसी भी दिखी है, लेकिन कांग्रेस की बगावत के बीच भाजपा को जीत की किरण दिख रही है। कांग्रेस की बात करें तो रजनीश खिमटा ने पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ा है। उन्हें भरोसा है कि काडर वोट का साथ उन्हें ही मिला है। साथ ही ओपीएस और महंगाई जैसे मुद्दे भी उनके पक्ष में गए है। बहरहाल, चुनाव नतीजों से पहले कयासबाजी जोरों पर है और इस त्रिकोणीय मुकाबले को कौन जीतेगा, अभी ये कहना जल्दबाजी हो सकता है।