क्या काजल फिर बनेंगे कांगड़ा का नूर ?
काँगड़ा विधानसभा क्षेत्र में इस बार गजब की सियासत देखने को मिली है। यहां कौन भाजपाई है और कौन कांग्रेसी, समझना बड़ा मुश्किल हो गया। चुनाव से पहले नेताओं ने पार्टियां भी बदली और विचारधाराएं भी। यहां कांग्रेस के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष और सीटिंग विधायक काजल चुनाव से पहले भाजपा के हो गए और भाजपाई खेमे से चौधरी सुरेंद्र काकू ने कांग्रेस में घर वापसी कर ली। पवन काजल काँगड़ा से दो बार विधायक रहे है। 2012 में काजल निर्दलीय चुनाव जीत कर विधायक बने और 2017 में काजल कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ कर विधानसभा पहुंचे। इस बार कांग्रेस ने काजल को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया और काजल ने चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस का साथ छोड़ दिया। काजल भाजपा में शामिल हुए और चुनाव भी भाजपा टिकट पर ही लड़ा। हालांकि काजल को टिकट देने पर भाजपा मंडल ने उनका कड़ा विरोध किया, कुछ नेताओं को मना लिया गया लेकिन कुछ नेता आखिर तक नही माने। भाजपा से नाराज़ होकर कुलभाष चौधरी ने इस दफा आजाद चुनाव लड़ा है। वहीं कांग्रेस ने इस बार पूर्व विधायक चौधरी सुरेंद्र काकू को मैदान में उतारा है।
काँगड़ा विधानसभा सीट के अतीत पर निगाह डाले तो यहां 1982 से 1990 तक भाजपा के विद्यासागर चौधरी ने जीत की हैट्रिक लगाई है। 1993 में यहाँ कांग्रेस के दौलत राम को जीत मिली थी, लेकिन पांच साल बाद 1998 में विद्यासागर चौधरी ने फिर इस सीट को भाजपा की झोली में डाला। 2003 में कांग्रेस के सुरिंदर काकू ने यहाँ जीत दर्ज की। 2007 में सत्ता परिवर्तन हुआ और बसपा के संजय चौधरी ने यहाँ जीत का परचम लहराया। फिर 2012 में निर्दलीय रहे पवन काजल ने यहां जीत हासिल की और पिछले विधानसभा चुनाव यानि 2017 में पवन काजल ने कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा और जीता भी। इस बार भी काँगड़ा सीट पर काजल सहज दिख रहे है। पवन काजल अपने क्षेत्र में लोकप्रिय नेता है। ऐसे में जाहिर है काजल को लेकर किसी तरह की कोई नाराज़गी भी नहीं दिखती है। विरोध के बावजूद काजल अपनी जीत को लेकर आश्वस्त है। अगर काजल जीते तो वे तीसरी बार विधायक बनेंगे और दिलचस्प बात ये है कि वे अलग-अलग सिंबल से चुनाव लड़ कर जीत की हैट्रिक लगाने वाले विधायक होंगे। उधर कांग्रेस, भाजपा की बगावत और संभावित भीतरघात में जीत की किरण देख रही है।