क्या महेंद्र सिंह का तिलिस्म बरकरार रख पाएंगे रजत !
1990 की शांता लहर में इस सीट से एक निर्दलीय उम्मीदवार जीता। फिर 1993 में कांग्रेस जीती, 1998 में हिमाचल विकास कांग्रेस, 2003 में लोकतांत्रिक मोर्चा और 2007, 2012 और 2017 में भाजपा। हम बात कर रहे है जिला मंडी के धर्मपुर निर्वाचन क्षेत्र की। खास बात ये नहीं है कि पिछले सात चुनाव में यहाँ की जनता पांच अलग अलग चुनाव चिन्ह के साथ गई है, खास ये है कि चिन्ह कोई भी रहा हो उम्मीदवार हर मौके पर एक ही रहा है। ये नेता है महेंद्र सिंह ठाकुर। शायद ही कोई और नेता ऐसा हो जो अपने राजनीतिक जीवन के सात चुनाव में से पांच अलग-अलग सिंबल पर जीता हो। दिलचस्प बात ये है कि 1990 से 2003 तक हर बार महेंद्र सिंह ठाकुर की राजनीतिक निष्ठा बदली, पर बावजूद इसके वे जीते। दल बेशक बदलते रहे लेकिन जनता का भरोसा महेंद्र सिंह पर बरकरार रहा है। हालांकि पिछले तीन चुनाव वे भारतीय जनता पार्टी से ही जीते है। इस बार वे लम्बे अर्से बाद चुनावी मैदान में नहीं है और उनकी सीट से अब उनके बेटे रजत ठाकुर ने चुनाव लड़ा है।
इसे महेंद्र सिंह ठाकुर का सियासी तिलिस्म ही कहेंगे कि वे जयराम कैबिनेट के सबसे शक्तिशाली मंत्री माने जाते है। कोई उन्हें नंबर टू कहता है तो कोई पर्दे के पीछे का सीएम। दिलचस्प बात ये है कि इस बार महेंद्र सिंह अपने बेटे रजत ठाकुर के लिए टिकट मांग रहे थे और माहिर मानते थे कि परिवारवाद के नाम पर कांग्रेस को अक्सर घेरने वाली भाजपा ऐसा नहीं कर पायेगी। पर भाजपा ने रजत ठाकुर को टिकट दे दिया, इससे महेंद्र सिंह ठाकुर के रसूख का अंदाज लगाया जा सकता है। वैसे बता दें कि इस सीट से नरेंद्र अत्रि भी टिकट के प्रबल दावेदार थे। बहरहाल टिकट तो रजत ले आएं लेकिन इस बार धर्मपुर की जंग दिलचस्प दिख रही है। कांग्रेस ने तो यहाँ दमखम से चुनाव लड़ा ही है, भाजपा के भीतर भी सब कुछ कण्ट्रोल में है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। अब धर्मपुर की सियासत के सिकंदर रहे महेंद्र सिंह के बेटे का मुक्कदर ईवीएम में कैद हो चुका है और आठ दिसम्बर को नतीजा सामने होगा।
उधर कांग्रेस को इस सीट पर अंतिम बार 1993 में जीत मिली थी और दिलचस्प बात ये है कि तब कांग्रेस उम्मीदवार थे महेंद्र सिंह ठाकुर। इसके बाद हुए पांच चुनाव में कांग्रेस ने महेंद्र सिंह के आगे पानी नहीं मांगा। बीते तीन चुनाव पर नज़र डाले तो 2007 में पार्टी यहाँ दस हज़ार वोट से हारी। 2012 में पार्टी ने बेहतर किया और ये अंतर करीब एक हजार वोट का रह गया, पर 2017 में फिर बढ़कर करीब दस हजार पहुंच गया। तीनों मर्तबा पार्टी के कैंडिडेट थे चंद्रशेखर। इस बार फिर पार्टी ने चंद्रशेखर को ही मौका दिया है। चंद्रशेखर को लेकर इस बार थोड़ी सहानुभूति भी दिखी है। ऐसे में यहाँ अर्से बार कांग्रेस वापसी की उम्मीद में है।