क्या उत्तम साबित होगा नरोत्तम को टिकट देने का निर्णय ?
कहते है न सियासत महाठगिनी है। इस चुनाव में सियासत ने कई नेताओं को ठगा और नतीजों के बाद न जाने कितने ठगा सा महसूस करेंगे। इसी लिस्ट में एक नाम है प्रदेश की सियासत के दिग्गज नेता महेश्वर सिंह का। विधानसभा चुनाव के काफी पहले से चर्चा थी कि क्या भाजपा इस बार कुल्लू सीट से महेश्वर सिंह को एक बार फिर मैदान में उतारेगी? फिर दशहरे के दौरान पीएम मोदी भगवान रघुनाथ जी की रथयात्रा में शामिल हुए और उसके बाद कयास लगने लगे कि शायद महेश्वर को टिकट मिल जाएँ। इस बीच महेश्वर सिंह का भी ब्यान आया कि उन्हें किसी मंत्री पद की लालसा नहीं है बस एक बार और कुल्लू का विधायक बनने की तमन्ना है। तमन्ना पूरी हुई और भाजपा ने कुल्लू सदर सीट से महेश्वर सिंह को टिकट दे दिया। पर उनके बेटे हितेश्वर सिंह बंजार से टिकट न मिलने के चलते निर्दलीय चुनाव लड़ने मैदान में उतर गए। भाजपा को ये गवारा नहीं था कि पिता पार्टी उम्मीदवार और बेटा दूसरी सीट पर बागी। फिर सियासत ने करवट बदली और भाजपा ने यहाँ नामांकन से ठीक एक दिन पहले वरिष्ठ नेता महेश्वर सिंह ठाकुर का टिकट काट दिया।
अब बात करते है मौजूदा सियासी समीकरण की। कुल्लू सदर सीट से भाजपा ने टिकट बदल कर नरोत्तम ठाकुर को मैदान में उतारा। उधर, हिमाचल बीजेपी उपाध्यक्ष और 2012 के भाजपा प्रत्याशी रहे राम सिंह ठाकुर भी टिकट की मांग कर रहे थे। टिकट न मिलने से खफा हुए राम सिंह बतौर निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरे और यहाँ मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। निसंदेह राम सिंह के मैदान में होने से यहाँ नरोत्तम ठाकुर की मुश्किलें बढ़ी है। ऐसे में गुटों में बंटी भाजपा इस सीट पर कितना डैमेज कण्ट्रोल कर पायी है, यह तो नतीजे आने के बाद ही पता लग पायेगा। वहीं कांग्रेस ने सुन्दर सिंह ठाकुर को तीसरी बार टिकट दिया है। सुन्दर सिंह ठाकुर पहली बार 2012 में कांग्रेस टिकट से चुनाव लड़े थे और तब हार गए थे। फिर 2017 में उन्होंने चुनाव लड़ा और भाजपा के महेश्वर सिंह ठाकुर को करीब ढाई हजार मतों से पराजित किया। सुन्दर ठाकुर तीसरी बार चुनावी मैदान में है। हालाँकि भाजपा में गुटबाजी और राम सिंह ठाकुर के निर्दलीय चुनावी मैदान में होने से सुन्दर सिंह ठाकुर जीत को लेकर आश्वस्त दिख रहे है। वहीं उनके समर्थक तो अभी से उन्हें बतौर मंत्री प्रोजेक्ट करने लगे है।