पाक मेजर का सिर काटकर तोलोलिंग पर तिरंगा फहराने वाला कोबरा कमांडो

15,000 फीट की ऊंचाई पर तोलोलिंग पहाड़ी पर कब्जा करने के 3 असफल प्रयासों के बाद 2 जून 1999 को आर्मी चीफ जनरल वीपी मलिक राजपूताना राइफल्स की गुमरी में मीटिंग ले रहे थे। मलिक ने राजपूताना राइफल्स के कमांडर्स से उनकी योजना पूछी पर उन्हें कोई प्लान सही नहीं लग रहा था। तभी 30 साल का एक कमांडो उठ खड़ा हुआ और साहस बटोरकर कहा, 'मैं नायक दिगेंद्र कुमार उर्फ कोबरा। सर, मेरे पास जीत का एक पक्का प्लान है।' जनरल ने कहा, 'बताओ'। कमांडो ने कहा, 'पहाड़ी बिलकुल सीधी है, हम वही रास्ता लेंगे जो दुश्मन ने लिया है।' जनरल मलिक आश्चर्य में पड़ गए और कहा, उस रास्ते पर तो मौत निश्चित है। दिगेंद्र ने जवाब दिया, 'मौत तो वैसे भी निश्चित है। यह मुझ पर छोड़ दीजिये।' जो नायक दिगेंद्र कुमार ने कहा था, करके दिखाया। सीने में 3 और कुल 5 गोलियां खाकर भी दिगेंद्र रुके नहीं। सभी साथी शहीद हो चुके थे, लेकिन अकेले दम पर दुश्मनों के 11 बंकरों पर 18 ग्रेनेड फेंक कर उन्हें तबाह कर दिया। यहां तक कि जब पास में अपनी बंदूक तक नहीं रह गई, तब भी केवल अपने साहस के दम पर उन्होंने तोलोलिंग पहाड़ी पर भारत का झंडा फहराकर दिखाया। 5 गोलियां खाने वाले दिगेंद्र कुमार ने अकेले पाकिस्तान के 48 फौजी मारे और पाक मेजर अनवर खान का सिर काटकर तिरंगा फहरा दिया।
चोटी पर बैठे घुसपैठिये बरसा रहे थे गोलियां
जम्मू कश्मीर के द्रास सेक्टर में कारगिल युद्ध स्मारक के ठीक सामने स्थित तोलोलिंग की पहाड़ी पर मई 1999 में पाक के हजारों सैनिकों ने घुसपैठ कर कब्जा जमा लिया था। कारगिल युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए तोलोलिंग चोटी को दुश्मन से मुक्त करवाना बेहद जरूरी था। तोलोलिंग को मुक्त करवाने में भारतीय सेना की 3 यूनिट फेल हो गई थी। एक यूनिट के 18, दूसरी के 22 और तीसरी यूनिट के 28 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे। तोलोलिंग पर विजय पाना भारतीय सेना के लिए चुनौती बन गया था। तब भारतीय सेना की सबसे बेहतरीन बटालियन को तोलोलिंग को मुक्त करवाने की जिम्मेदारी सौंपने का फैसला लिया गया और 300 किलोमीटर दूर कुपवाड़ा से 2 राज रिफ बटालियन को द्रास बुलाया गया। एक जून 1999 को चार्ली कम्पनी ने तोलोलिंग पहाड़ी पर चढ़ाई के लिए आसान की बजाय दुर्गम रास्ता चुना, क्योंकि आसान रास्ते से जाने पर चोटी पर बैठे पाक घुसपैठिए सैनिकों पर गोलियां बरसा रहे थे। भारतीय सेना के वीर कमांडर रस्सी बांधकर 14 घंटे की मशक्कत के बाद तोलोलिंग की पहाड़ी पर चढ़े।
पाक मेजर का सिर काटकर फहरा दिया तिरंगा
इस मिशन पर भारतीय सेना के 10 कमांडो गए थे। इनमें मेजर विवेक गुप्ता, सूबेदार भंवरलाल भाकर, सूबेदार सुरेंद्र सिंह, लांसनायक जसवीर सिंह, नायक सुरेंद्र, नायक चमन सिंह, लांस नायक बच्चू सिंह, सी.एम.एच. जसवीर सिंह, हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया एवं दिगेंद्र कुमार शामिल थे। 12 जून को तोलोलिंग की पहाड़ी पर पहुंचने के बाद पाक सैनिकों से आमना-सामना हो गया, तो हमारे कमांडो पीछे नहीं हटे। जमकर मुकाबला हुआ। इस मुठभेड़ में 9 कमांडो शहीद हो गए। नायक दिगेंद्र कुमार अकेले जीवित बचे थे। उन्होंने दुश्मन का पहला टैंकर उड़ाया और फिर 11 बंकर ध्वस्त किए, जिसमें पाक के 48 फौजी मारे गए। 13 जून को पाकिस्तान के मेजर अनवर खान का सिर काटकर दिगेंद्र कुमार ने उसी की मुंडी पर तोलोलिंग की पहाड़ी पर तिरंगा फहराया था। कारगिल युद्ध में भारत की यह पहली जीत थी। इसके बाद टाइगर हिल समेत अन्य चोटियों को मुक्त करवाया गया।
रूसी रस्से और रूसी किलों से बनाई विजय की रणनीति
तोलोलिंग मिशन पर जाने की योजना को लेकर आर्मी चीफ जनरल वीपी मलिक ने जब दिगेंद्र कुमार से विस्तृत योजना पूछी तो उन्होंने कहा कि मिशन के लिए 100 मीटर का रूसी रस्सा चाहिये जिसका वजन 6 किलो होता है और जो 10 टन वजन झेल सकता है। इसके साथ रूसी कीलों की मांग की जो चट्टानों में आसानी से ठोकी जा सकती थीं। रास्ता विकट और दुर्गम था पर दिगेंद्र कुमार द्वारा दूरबीन से अच्छी तरह जांचा परखा गया था। दिगेंद्र उर्फ़ कोबरा 10 जून 1999 की शाम अपने साथियों और सैन्य सामान के साथ मिशन के लिए चल पड़े। कीलें ठोकते गए और रस्सी को बांधते हुए 14 घंटे की कठोर जद्दोजहद के बाद मंजिल पर पहुंचे।
महावीर चक्र से किया गया अलंकृत
कारगिल युद्ध के दौरान दिगेंद्र कुमार को कारगिल में तैनात किया गया था। उन्होंने अपने अदम्य साहस से जम्मू कश्मीर में तोलोलिंग पहाड़ी की बर्फीली चोटी को मुक्त करवाकर 13 जून 1999 की सुबह चार बजे तिरंगा लहराते हुए भारत को प्रथम सफलता दिलाई जिसके लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा 15 अगस्त 1999 को महावीर चक्र से अलंकृत किया गया।
आतंकी मजीद खान को किया ढेर
नायक दिगेंद्र कुमार को सर्वश्रेष्ठ सम्मान भले ही कारगिल युद्ध में मिला हो लेकिन वे इससे पहले ही सेना में अपनी एक अलग पहचान बना चुके थे। उन्हें भारतीय सेना के सर्वश्रेष्ठ कमांडो के रूप में ख्याति मिली थी ।1993 में दिगेंद्र की सैनिक टुकड़ी जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में तैनात थी। पहाड़ी इलाका होने के कारण उग्रवादियों को पकड़ना कठिन था। कुख्यात उग्रवादी मजीद खान एक दिन कंपनी कमांडर वीरेंद्र तेवतिया के पास आया और धमकाया कि हमारे खिलाफ कोई कार्यवाही की तो उसके गंभीर दुष्परिणाम होंगे। कर्नल तेवतिया ने सारी बात दिगेंद्र को बताई। दिगेंद्र यह सुन तत्काल मजीद खान के पीछे दौड़े। वह सीधे पहाड़ी पर चढ़ा जबकि मजीद खान पहाड़ी के घुमावदार रास्ते से 300 मीटर आगे निकल गया था। दिगेंद्र ने चोटी पर पहुँच कर मजीद खान के हथियार पर गोली चलाई। गोली से उसका पिस्टल दूर जाकर गिरा। दिगेंद्र ने तीन गोलियां चलाकर मजीद खान को ढेर कर दिया। उसे कंधे पर उठाया और मृत शरीर को कर्नल के समक्ष रखा। कुपवाड़ा में इस बहादुरी के कार्य के लिए दिगेंद्र कुमार को सेना मेडल दिया गया।
144 आतंकियों को करवाया सरेंडर
जम्मू-कश्मीर में मुसलमानों की पावन स्थली मस्जिद हजरत बल दरगाह पर आतंकवादियों ने कब्जा कर लिया था तथा हथियारों का जखीरा जमा कर लिया था। भारतीय सेना ने धावा बोला। दिगेंद्र कुमार और साथियों ने बड़े समझ से ऑपरेशन को सफल बनाया। दिगेंद्र ने आतंकियों के कमांडर को मार गिराया व 144 उग्रवादियों के हाथ ऊँचे करवाकर बंधक बना लिया। इस सफलता पर 1994 में दिगेंद्र कुमार को बहादुरी का प्रशंसा पत्र मिला।
खुश होकर जनरल ने रोज दाढ़ी बनाने से दी छूट
अक्टूबर 1987 में श्रीलंका में उग्रवादियों को खदेड़ने का दायित्व भारतीय सेना को मिला। इस अभियान का नाम था 'ऑपरेशन पवन'। इस अभियान में दिगेंद्र कुमार सैनिक साथियों के साथ तमिल बहुल एरिया में पेट्रोलिंग कर रहे थे। पांच तमिल उग्रवादियों ने दिगेंद्र की पेट्रोलिंग पार्टी के पाँच सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया और भाग कर एक विधायक के घर में घुस गए। दिगेंद्र ने बाकी साथियों के साथ पीछा किया और विधायक के घर का घेरा डलवा दिया। लिटे समर्थक विधायक ने बाहर आकर इसका विरोध किया। दिगेंद्र के फौजी कमांडो ने हवाई फायर किया तो अन्दर से गोलियाँ चलने लगी। एक फौजी ने हमले पर उतारू विधायक को गोली मार दी और पांचों उग्रवादियों को ढेर कर दिया। एक घटना में भारतीय सेना के 36 सैनिकों को तमिल उग्रवादियों ने कैद कर लिया। उन्हें छुड़ाना बड़ा मुश्किल काम था। टेन पैरा के इन 36 सैनिकों को कैद में 72 घंटे हो चुके थे लेकिन बचाव का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था। अफसरों की अनेक बैठकें हुईं और जनरल ने दिगेंद्र को बुलाकर उसकी योजना सुनी। दिगेंद्र ने दुश्मनों से नजर बचाकर नदी से तैर कर पहुँचने की योजना का सुझाव दिया। नदी में 133 किलोवाट का विद्युत तरंग बह रहा था, फ़िर भी दिगेंद्र ने पीठ पर 50 किलो गोला बारूद, हथियार और कैद में भूखे साथियों के लिए बिस्कुट पैकेट लिए। हिम्मत कर उन्होंने नदी में गोता लगाया। कटर निकाला और विद्युत तारों को काट कर आगे पार हो गए। दिगेंद्र कुमार को उग्रवादियों के ठिकाने का अंदाजा था सो वह नदी के किनारे एक पेड़ के पीछे छुप गए और बिजली की चमक में उग्रवादियों के आयुध डिपो पर निशाना साधा। दोनों संतरियों को गोली से उड़ा दिया एवं ग्रेनेड का नाका दांतों से उखाड़ बारूद के ज़खीरे पर फेंक दिया। सैकड़ों धमाके हुए, और उग्रवादियों में हड़कंप मच गया। दिगेंद्र की हिम्मत देख बाकी कमांडो भी आग बरसाने लगे। थोड़े ही समय में 39 उग्रवादियों को ढेर कर दिया गया। जनरल कलकट ने दिगेंद्र को खुश होकर अपनी बाँहों में भर लिया उन्हें बहादुरी का मेडल दिया गया और रोज दाढ़ी बनाने से छूट दी गई।