स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मंत्री थे- डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर

भीमराव रामजी अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को महाराष्ट्र के एक महार परिवार में हुआ था। अम्बेडकर को डॉक्टर बाबासाहब अम्बेडकर के नाम से भी जाना जाता है। वह भारतीय बहुज्ञ, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, और समाजसुधारक थे। अम्बेडकर स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मन्त्री भी रहे। अम्बेडकर भारतीय संविधान के जनक एवं भारत गणराज्य के निर्माताओं में से एक थे। आज देश में डॉ. भीमराव अम्बेडकर का 130वां जन्म दिवस मनाया जा रहा है।
अम्बेडकर का बचपन ऐसी सामाजिक दशाओं और आर्थिक तंगी में बीता जहां पर दलितों को निम्न स्थान दिया जाता था। पाठशाला में भी दलितों के बच्चों को समान अधिकार प्राप्त नहीं थे, वह स्वयं टाट-पट्टी लेकर पाठशाला जाया करते थे। दलित वर्ग के बच्चों को उच्च जाति के बच्चों के साथ पड़ने-लिखने की इजाज़त नहीं थी। अम्बेडकर एक विपुल प्रतिभा के छात्र थे। सामाजिक अर्थव्यवस्था, अशिक्षा, और अन्धविश्वास जैसी कुरीतियों ने उन्हें बहुत पीड़ा पहुंचाई थी, लेकिन महाराजा गायकवाड़ ने उनकी योग्यता को देखते हुए शिक्षा के संबंध में छात्रवृति दिलवाई जिससे उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा समाप्त की और बाद में मुंबई के एल्फिस्टन कॉलेज आ गए। उन्होंने 1913 में दो विश्वविद्यालयों कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्राप्त की। उन्होंने विधि, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में शोध कार्य भी किये थे। अम्बेडकर अपने व्यावसायिक जीवन के आरम्भिक भाग में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे और उन्होंने वकालत भी की तथा बाद का जीवन राजनीतिक गतिविधियों में बिताया। इसके बाद आम्बेडकर भारत की स्वतन्त्रता के लिए प्रचार और चर्चाओं में शामिल हो गए और पत्रिकाओं को प्रकाशित करने, राजनीतिक अधिकारों की वकालत करने और दलितों के लिए सामाजिक स्वतंत्रता की वकालत की और भारत के निर्माण में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा।
अम्बेडकर के मन में बचपन से ही छुआछूत का ऐसा प्रभाव पड़ा था जो बाद में एक विस्फोट के रूप में सामने आया। उन्होंने दलित बौद्ध आन्दोलन को प्रेरित किया और अछूतों (दलितों) से सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध अभियान चलाया था। डॉ. अम्बेडकर ने देशी-विदेशी सामाजिक व्यवस्थाओं को बहुत नजदीक से देखा और अनुभव किया था। अम्बेडकर का कहना था कि "छुआछूत गुलामी से भी बदतर है।" बॉम्बे हाईकोर्ट में विधि का अभ्यास करते हुए, उन्होंने अछूतों की शिक्षा को बढ़ावा देने और उन्हें ऊपर उठाने के प्रयास किये। सन 1927 तक, डॉ॰ आम्बेडकर ने छुआछूत के खिलाफ एक व्यापक एवं सक्रिय आंदोलन आरम्भ करने का निर्णय किया। उन्होंने सार्वजनिक आंदोलनों, सत्याग्रहों और जलूसों के द्वारा, पेयजल के सार्वजनिक संसाधन समाज के सभी वर्गों के लिये खुलवाने के लिए अटूट प्रयास किये और साथ ही अछूतों को भी हिंदू मन्दिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिये संघर्ष किया। 1927 के अंत सम्मेलन में, आम्बेडकर ने जाति भेदभाव और "छुआछूत" को वैचारिक रूप से न्यायसंगत और समुचित बनाने के लिए, प्राचीन हिंदू पाठ, मनुस्मृति, जिसके कई पद, खुलकर जातीय भेदभाव व जातिवाद का समर्थन करते हैं ,की सार्वजनिक रूप से निंदा की।
डॉ. भीमराव अम्बेडकर वर्तमान में सभी लोगों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत है। एक अर्थशास्त्री के रूप में, एक समाजसुधारक के रूप में और एक राजनीतिज्ञ के रूप में अम्बेडकर ने अपनी भूमिका निभाई है। अम्बेडकर की कहानी एक संघर्ष के रूप में भविष्य में भी याद की जाएगी।