भाजपा की बगावत के बीच महेश राज आशावान
करसोग विधानसभा सीट वो सीट है जहाँ जनता के लिए पार्टी का चिन्ह बाद में, अपनी पसंद पहले आती है। करसोग के चुनावी नतीजे तो यही कहते है। यहाँ की सियासत में मनसा राम का दबदबा रहा है। जनता ने पार्टी चिन्ह के बिना भी मनसा राम पर अपना प्यार बरसाया है। मनसा राम कुल 9 बार चुनावी संग्राम में उतरे और पांच बार करसोग से विधायक बने जिसमें 4 बार कैबिनेट मंत्री तथा एक बार सीपीएस रहे। 1967 में मनसा राम ने बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीता भी। दूसरी बार 1972 में कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़े और जीते लेकिन 1977 में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। मनसा राम ने 1982 में फिर निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीते। इसके बाद 1998 में हिमाचल विकास कांग्रेस और 2012 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़कर मनसा राम इस क्षेत्र से विधायक बने। दिलचस्प बात ये है कि मनसा राम प्रदेश के एक मात्र ऐसे नेता हैं, जो यशवंत सिंह परमार सहित चार मुख्यमंत्रियों की कैबिनेट में काम कर चुके हैं। अब अपनी राजनीतिक विरासत मनसा राम ने अपने बेटे महेश राज को सौंप दी है, जो इस बार कांग्रेस से मैदान में है। यहाँ भाजपा ने अपने सिटींग विधायक का टिकट काट कर दीपराज कपूर को मैदान में उतारा है। यहाँ दोनों ही प्रत्याशी पहली बार चुनावी रण में है ऐसे में मुकाबला कांटे का दिख रहा है।
करसोग में भाजपा केवल तीन दफा ही जीत दर्ज कर पाई है। 1985 और 1990 में भाजपा के जोगिन्दर पाल ने ये सीट भाजपा की झोली में डाली थी। 2017 में इस सीट पर हीरा लाल ने भाजपा का परचम लहराया। माना जाता है कि तब बगावत कांग्रेस की हार का कारण बनी थी जिसका सीधा लाभ भाजपा को मिला। पर दशकों बाद करसोग में कमल खिलाने वाले हीरालाल का टिकट काट कर भाजपा ने एक नए चेहरे को मैदान में उतारा है। क्षेत्र में हीरालाल को लेकर नाराज़गी भी दिखती रही है जाहिर है ऐसे में एंटी इंकम्बैंसी को खत्म करने के लिए भाजपा ने यहाँ टिकट बदला है, लेकिन यहाँ भीतरघात की संभावना से भी इंकार नहीं किया सकता है। बहरहाल,करसोग में मुकाबला कांटे का दिख रहा है और इस बार जीत का परचम कौन लहराता है ये तो नतीजे आने के बाद ही पता लगेगा।