HRTC: पहाड़ों की जीवन धारा
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हिमाचल प्रदेश पथ परिवहन निगम यानि एचआरटीसी को प्रदेश की लाइफलाइन माना जाता है। कहते है जहाँ कोई नहीं जाता वहां एचआरटीसी जाती है। हिमाचल के दुर्गम क्षेत्रों, संकरी सड़कों और खतरनाक राहों पर लगातार आगे बढ़ती एचआरटीसी प्रदेश के जन- जन को मुख्यधारा से जोड़ती है। एचआरटीसी का सफर शानदार भी है और भरोसेमंद भी। एचआरटीसी किसी को समय पर दफ्तर पहुंचाती है, तो किसी को समय पर स्कूल। जहाँ लोगों के पास निजी वाहन नहीं, जहाँ प्राइवेट बसें नहीं जाती वहां एचआरटीसी पहुँचती है। हिमाचल में यात्री परिवहन यानि पब्लिक ट्रांसपोर्ट का एकमात्र साधन बस है क्योंकि इस राज्य में रेलवे की उपस्थिति नगण्य है। पठानकोट को जोगिंदरनगर और कालका को शिमला से जोड़ने वाली नैरो गेज लाइन पर रेल इतनी धीमी गति से आगे बढ़ती है कि उनके माध्यम से रोज़ाना यातायात संभव नहीं। यहाँ एयर कनेक्टिविटी भी ख़ास नहीं, यानी बस ही जीवन धारा है। प्रदेश भर में निगम की 3 हजार 132 बसें चलती हैं। यह बसें 3 हजार 719 रूटों पर संचालित की जाती हैं।
हालाँकि हिमाचल की ही कुछ सड़कों की तरह एचआरटीसी के हालात भी जर्जर होते जा रहे है। निगम लगातार घाटे में है। प्रदेश की इस जीवनधारा को सड़क तक पहुँचाने में अहम भूमिका निभाने वाले हाथ हर महीने कमाई को तरस जाते है। हर महीने तनख्वाह और पेंशन का इंतज़ार करना पड़ता है। एचआरटीसी आम लोगों को गंतव्य स्थान तक ही नहीं पहुंचाती बल्कि हिमाचल की जनता को कम से कम किराये में सफर करवाती है और शायद यही कारण है कि आज एचआरटीसी खुद ही हांफने लगी है।
एचआरटीसी का सफरनामा
एचआरटीसी ने एक लम्बा सफ़र तय किया है। 1960 में मंडी-पठानकोट मार्ग पर लॉर्ड क्लेयर नामक एक निजी कंपनी द्वारा हिमाचल प्रदेश में पहली बार बस सेवा शुरू की गई थी। इसके बाद मंडी राज्य के राजा ने मंडी राज्य परिवहन का गठन किया और 1945 और 1946 में मंडी-बैजनाथ मार्ग पर बस सेवा शुरू की। 1958, में पहला निगम, "मंडी-कुल्लू सड़क परिवहन निगम" सरकार द्वारा संयुक्त रूप से बनाया गया। 1966 में पंजाब राज्य के पुनर्गठन के साथ, पंजाब के कुछ पहाड़ी क्षेत्रों को हिमाचल में मिला दिया गया और मंडी-कुल्लू सड़क परिवहन निगम के परिचालन क्षेत्र पूरी तरह से हिमाचल में आ गए। हिमाचल पथ परिवहन निगम की स्थापना 24 सितंबर 1974 को हुई और फिर 2 अक्टूबर, 1974 को इसे मंडी-कुल्लू पथ परिवहन कॉरपोरेशन के साथ मर्ज कर दिया गया।
अपनी स्थापना के समय से ही हिमाचल सड़क परिवहन निगम ने राज्य के सामाजिक और आर्थिक विकास में एक प्रमुख भूमिका निभाई है। हिमाचल सड़क परिवहन निगम ने लाहौल-स्पीति, चंबा, कुल्लू, किन्नौर, सिरमौर और केलांग जैसे दूरस्थ और दुर्गम क्षेत्रों में बस रूट नेटवर्क विकसित किया है। राज्य में यात्री परिवहन सेवाएं प्रदान करने के अलावा, हिमाचल सड़क परिवहन निगम राज्य के दूर-दराज के उन इलाकों में भी पहुंचते है जहां निजी ट्रक मालिक जाने से हिचकिचाते हैं, खाद्य और आवश्यक वस्तुएं उपलब्ध कराने के लिए माल परिवहन सेवाएं संचालित कर रहा है। हिमाचल पथ परिवहन निगम ने निसंदेह राज्य के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
अन्य राज्यों की तुलना में, पहाड़ी इलाकों के कारण, कालका-शिमला और पठानकोट-जोगिंदर नगर के बीच संचालित नैरो-गेज ट्रेनों को छोड़कर, हिमाचल प्रदेश में रेल नेटवर्क नहीं है। राज्य में सड़क अवसंरचना बढ़ रही है जिससे परिवहन की मांग में वृद्धि हुई है। इस प्रकार, राज्य में यात्री परिवहन पूरी तरह से सड़क परिवहन पर निर्भर है और एचआरटीसी दिए गए संसाधनों में अपनी भूमिका सफलतापूर्वक निभा रहा है। हिमाचल के लगभग हर क्षेत्र में हिमाचल सड़क परिवहन निगम कठिन भूभाग और जलवायु परिस्थितियों के बावजूद अपनी सेवाएं संचालित कर रहा है। इतना ही नहीं, निगम अंतर्राज्यीय मार्गों का भी संचालन कर रहा है और हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, जम्मू-कश्मीर और राजस्थान को सीधी सेवाएं प्रदान कर रहा है।
65 करोड़ आय, करीब 134 करोड़ व्यय :
वर्तमान में एचआरटीसी 1355 करोड़ के घाटे में है। परिवहन मंत्री मुकेश अग्निहोत्री द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार एचआरटीसी की मासिक आय 65 करोड़ रुपये है, जबकि इसका खर्च करीब 134 करोड़ रुपये है। यानी कि प्रतिमाह राज्य सरकार की ओर से 69 करोड़ का खर्च उठाया जाता है। इसके बावजूद एचआरटीसी ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाएं दे रही है। वहीं एचआरटीसी को महिलाओं और बच्चों को रियायती यात्रा की पेशकश के साथ-साथ कुछ पैसेंजर्स के साथ दूरदराज के क्षेत्रों में बसों के संचालन की वजह से नुकसान उठाना पड़ता है।
वेतन और पेंशन में भी देरी :
घाटे के कारण हर माह एचआरटीसी के कर्मचारियों को वेतन का इंतज़ार करना पड़ता है। न कर्मचारियों का वेतन समय पर आता है और न पेंशनरों की पेंशन। सरकार का कहना है कि इस भारी नुकसान के कारण कर्मचारियों के वेतन और पेंशन में देरी होती है।
नई सरकार, जगी आस... सुधार का ब्लूप्रिंट तैयार
एचआरटीसी की आर्थिक हालत रातों रात नहीं बिगड़ी, बल्कि आहिस्ता -आहिस्ता ऐसा हुआ है। सरकारों ने वादे किये, दावे किये लेकिन धरातल पर सुधार के लिए कोई व्यापक कदम नहीं उठाये गए। ये ही कारण है, धीरे होते होते एचआरटीसी आज हांफ रही है। अब मौजूदा सरकार ने एचआरटीसी की हालत सुधारने के लिए व्यापक बदलाव करने का आश्वासन दिया है। सरकार एचआरटीसी कर्मचारियों की सुध लेने का वचन भी दोहरा रही है और बड़े बदलाव के लिए तैयार भी है। खुद उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री के पास परिवहन महकमा है और एचआरटीसी को लेकर अग्निहोत्री का स्टैंड क्लियर है। सीएम सुक्खू भी निजी तौर पर इसमें रूचि ले रहे है। ये एक सुखद संकेत भी है और इस आस का संदर्भ भी कि एचआरटीसी के दिन अब फिरने वाले है।
समय पर वेतन -पेंशन और नया वेतनमान :
उपमुख्यमंत्री और परिवहन मंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने एचआरटीसी कर्मचारियों को आश्वासन दिया है कि उनका वेतन हर महीने की सात तारीख तक दे दिया जाएगा। सरकार ने ये भी वादा किया है कि एचआरटीसी कर्मियों और पेंशनरों को नया वेतनमान दिया जाएगा। इस पर करीब 23 करोड़ खर्च आएगा। पेंशनरों को लंबित पेंशन के लिए सरकार ने 9 करोड़ देने की स्वीकृति दी है। पैसा मिलते ही पेंशन जारी की जाएगी। निगम कर्मियों के वेतन-भत्ते देने के लिए हर माह सरकार 69 करोड़ देती है। इसे एकमुश्त देने की सरकार से मांग की गई है। 39 माह का नाइट ओवरटाइम लंबित है, पिछली साल का भी देंगे लेकिन पहले अपनी सरकार के कार्यकाल की अदायगी करेंगे। एचआरटीसी पहला निगम है, जिसमें कर्मियों को ओपीएस देने का फैसला लिया है। मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने हाल ही में एचआरटीसी के चालकों-परिचालक को ओवरटाइम और रात्रि भत्ते की देनदारी दो माह के भीतर दो किस्तों में देने की बात कही है। करीब 11 करोड़ की देनदारी लंबित है। मुख्यमंत्री ने एचआरटीसी के कर्मचारियों, पेंशनभोगियों को तीन प्रतिशत महंगाई भत्ता जारी करने के साथ चिकित्सा प्रति पूर्ति बिलों का शीघ्र भुगतान करने की भी घोषणा की है ।
सुधार का फार्मूला :
मुकेश अग्निहोत्री ने कहा है कि एचआरटीसी की वित्तीय स्थिति सुधारने के लिए कम सवारियों वाले रूट बंद किए जाएंगे। रूटों पर चलने वाले चालकों-परिचालकों की फीडबैक पर ये रूट बंद होंगे। राजनीतिक आधार पर चलाए गए रूटों पर सवारियां नहीं होंगी, तो बस भी नहीं चलेगी। दो-दो सवारियां लेकर बसें 40 से 50 किलोमीटर चल रही हैं। तेल का खर्च नहीं निकल रहा है। ब्लैक स्पॉट को लेकर भी चालकों-परिचालकों से फीडबैक लेंगे। दुर्घटना संभावित क्षेत्रों को दुरुस्त करेंगे।
225 टाइप-टू ई-बसें खरीदने को मंजूरी :
मुकेश अग्निहोत्री ने बताया कि सरकार ने कैबिनेट में 225 टाइप-टू ई-बसें खरीदने की मंजूरी दी है। ये बसें मौजूदा ई-बसों से ऊंची और लंबी होंगी। चार्जिग के बाद मौजूदा बसों के मुकाबले अधिक दूरी तय करेंगी। इनके लिए रूट चिह्नित किए गए हैं। 225 नई ई-बसें आने के बाद ई-बसों का बेड़ा 300 हो जाएगा। मौजूद समय में निगम के बेड़े में 3123 बसें हैं। 3219 रूट चलाए जा रहे है। 1199 बसें जीरो बुक वैल्यू हैं, जिनकी मियाद पूरी हो चुकी है। इनमें 202 तुरंत हटाई जाएंगी। 15 साल पुरानी 167 बसें पहले ही हटा दी गई हैं। कुछ 600 नई बसें खरीदेंगे। इनमें 196 खरीद ली हैं जो 150 डीजल, 15 ई-बसें धर्मशाला, 20 ई-बसें शिमला और 11 वोल्वो शामिल हैं। 300 डीजल बसें खरीदने की भी औपचारिकताएं पूरी कर ली हैं।
वोल्वो माफिया पर लगेगा अंकुश
शिमला और मनाली सहित अन्य क्षेत्रों के लिए रोजाना करीब 250 अवैध वोल्वो चलती हैं। इनमें बड़ी संख्या में सैलानी सफर करते हैं। इन वोल्वो से सालाना 9 लाख टैक्स वसूला जाएगा। इसके लिए तमिलनाडु हाईकोर्ट के फैसले को आधार बनाया गया है। प्रदेश के प्रवेश द्वारों पर ही हिमाचल टैक्स की वसूली कर दी जाएगी।
ये है एक्शन प्लान :
- धार्मिक स्थलों के लिए चलेंगी लग्जरी बसें
- 30 जून से पहले पंजीकृत करवाने होंगे जेसीबी, पोकलेन, ट्रैक्टर
- ठियोग, ढली और करसोग में नए डीजल पंप स्थापित होंगे
- एचआरटीसी के अधिकृत ढाबों की होगी समीक्षा
- निजी बसों के साथ विवादास्पद टाइम टेबल की होगी समीक्षा
- बेरोजगारों को दिए जाएंगे 18 सीटर टेंपो ट्रैवलर के 500 रूट
- फील्ड में भेजे जाएंगे सालों में दफ्तरों में जमे चालक-परिचालक
- आय बढ़ाने के लिए अन्य राज्यों के परिवहन निगम और रोडवेज का होगा अध्ययन
- ढली में बनेगा आधुनिक बस अड्डा