पंडित जसराज का जाना भारतीय शास्त्रीय संगीत के एक युग अंत

पंडित जसराज : संगीत सम्राट को आखिरी सलाम।
शास्त्रीय संगीत में महारथ हासिल करने वाले पंडित जसराज, अब हमारे बीच नहीं रहे
इस खबर ने उनके सभी प्रशंसकों को गहरे शोक में डाल दिया। संगीत की दुनिया में अपना गुर दिखा कर आसमान की बुलंदियां छूने वाले पण्डित जसराज, संगीत की दुनिया से जुड़े हर व्यक्ति की प्रेरणा रहे। उपलब्ध जानकारी के अनुसार पण्डित जसराज ने अमेरिका के न्यू जर्सी के एक अस्पताल में 17 अगस्त 2020 की सुबह 5:15 पर अंतिम सांस ली। पण्डित जसराज कि उम्र 90 साल थी व उनकी पुत्री दुर्गा जसराज के अनुसार उनकी मृत्यु कार्डियक अरेस्ट के कारण हुई।
90 साल के जीवन-काल में 80 साल संगीत जगत को देने वाले पण्डित जसराज, कला जगत में बे-हद लोकप्रिय थे उनकी मृत्यु की खबर पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी सहित राजनैतिक, संगीत व बॉलीवुड जगत के कई लोगों ने शोक जताया। पण्डित जसराज की मृत्यु से उनके प्रशंसक व उनसे प्रेरणा ले कर, संगीत सीखने वाले युवा कलाकारों के लिए यह खबर बेहद दुखद रही।
पंडित जसराज कि ज़िन्दगी की एक झलक
संगीत की दुनिया की इस महान हस्ती की पूरी ज़िन्दगी का इन शब्दों और पन्नों में समा पाना तो मुश्किल है, पर मेवाती घराने से संबंध रखने वाले, यह प्रसिद्ध गायक बहुत ही सरल व साधारण थे। इनका जन्म 26 जनवरी 1930 को हुआ। पंडित जसराज जब 4 वर्ष के थे तब ही उनके पिता का देहांत हो गया था इसके बाद उनकी परवरिश उनके बड़े भाई पंडित मनिराम ने की। वह बहुत कम उम्र से ही संगीत सीखने लगे थे और बतौर तबलावादक उन्होंने संगीत सीखने की शुरुआत की जिसे उन्होंने बाद में त्याग दिया था। उनकी शुरुआती संगीत शिक्षा उनके बड़े भाई द्वारा हुई। पंडित जसराज ने 14 वर्ष की आयु से, बतौर संगीतकार प्रशिक्षण शुरू किया एवं उनके शास्त्रीय संगीत की प्रेरणा, बेगम अख्तर को माना जाता है। कुछ समय बाद उन्होंने रेडियो पर बतौर संगीतकार काम करना शुरू किया व 22 साल की उम्र में उन्होंने अपना पहला कॉन्सर्ट किया। 1960 में उनकी मुलाक़ात,निर्देशक वी शांताराम की बेटी मधुरा शांताराम से हुई जिनसे उन्होंने 1962 में शादी की।
शास्त्रीय संगीत में योगदान
हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत को नभ की ऊंचाइयों तक ले जाने में पंडित जसराज का बड़ा योगदान रहा है। फ़िल्मी जगत की कल्पना संगीत के बिना कर पाना सम्भव नहीं और संगीत में किये पंडित जसराज के अध्ययनों द्वारा भारतीय संगीत को एक नई पहचान व सूरत मिली। अपनी मधुर व रस भरी आवाज़ के कारण वह अक्सर रस राज भी कहलाये जाते थे। पद्मविभूषण पंडित जसराज ने कई फ़िल्मी गानों को धुन व अपनी मधुर आवाज़ से सजाया। संगीत संस्कृति में उनके योगदान के लिए उन्हें कई सामानों एवं पुरस्कारों से नवाज़ा गए। जिनमे पद्म श्री (1975) , पद्मभूषण, पद्मविभूषण (2000) , संगीत कला रत्न , लता मंगेशकर पुरस्कार, मारवाड़ संगीत रत्न (2014) , महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार , संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार शामिल हैं।
संगीत के प्रति निष्ठा
पंडित जसराज जी ने दिल्ली में एक कार्यक्रम में शिरकत के समय लोगों के उनकी ज़िंदगी के बारे में पूछे जाने पर जवाब दिया था , "सोचता हूं कि आज अगर 35 बरस का होता और 75 बरस के ये अनुभव साथ होते, और उससे आगे 35 बरस की यात्रा करता तो कितना फ़र्क़ होता। संगीत के प्रति यही भावनाएं, श्रद्धा और भक्ति होती तो जीवन कितना धन्य होता।" पंडित जसराज के ये शब्द संगीत के प्रति उनकी निष्ठा को दर्शाते हैं। उन्हें प्राप्त कई विशेष उपलब्धियों में से एक यह भी थी के वह सातों द्वीपों पर प्रस्तुति दने वाले पहले भारतीय कलाकार थे। जीवन में अमर तो कोई भी नहीं परन्तु एक कलाकार मृत्यु के बाद भी जीवित रहता है अपनी कला में व अमर हो जाता है प्रशंसकों के दिल में।