दाड़लाघाट के निरंकारी भवन में रविवार को हुआ सत्संग का आयोजन

संत निरंकारी सत्संग भवन दाड़लाघाट में रविवार को सत्संग का आयोजन किया गया। इसमें स्थानीय सहित दूर-दराज के क्षेत्रों से आए श्रद्धालुओं ने महात्मा के प्रवचनों का श्रवण किया। सत्संग का शुभारंभ अवतार वाणी गायन से किया गया। इसके उपरांत मंच पर विराजमान सयोजक महात्मा शंकर दास निरंकारी ने अपने विचारों में संगत को सम्बोधित करते हुए समय के बारे में बताया कि इस संसार में मनुष्य का जन्म मिलना बड़ा ही दुर्लभ है। परमात्मा ने मनुष्य को संसार में सत्य की जानकारी के लिए भेजा है लेकिन मनुष्य आज परमात्मा को भूलकर माया में अपना समय गंवा रहा है। जब उसका अंत समय नजदीक आता है, तब उसे इस प्रभु परमात्मा की जानकारी एवं भक्ति की याद आती है कि इतना समय जीवन का व्यर्थ गवां दिया। जिस उद्देश्य के लिए इस मानव योनी में जन्म लिया उसे तो पूरा ही नहीं कर पाये। अत: समय पर रहते ही इसकी जानकारी कर लेता तो जन्म मरण के बंधन से मुक्ति मिल जाती।सयोजक महात्मा शंकर दास निरंकारी ने समय के बारे में एक और विशेष उदाहरण देते हुए समझाया कि पहली बरसात होने पर अगर किसान चेत जाता है और समय पर जमीन मे बीज बो देता है तो उसे उसका लाभ जरूर मिलता है। परन्तु वही किसान अगर पहली बारिश के बाद और बारिश का इंतजार करेगा किन्तु बारिश समय पर नहीं हुई तो उस किसान को लाभ नहीं पहुचेगा। इसी तरह समय पर अगर मनुष्य ने अपने जीवन में भक्ति का बीज बो दिया तो उसे फिर आगे कभी पछताना नहीं पडता है। सयोजक महात्मा शंकर दास निरंकारी ने सेवा को भी समय के साथ जोड़ते हुए कहा कि अगर किसी इंसान को किसी समय कोई सेवा दी जाती है और वह उसे निश्चित समय पर पूरा कर लेता है तो वो कार्य सेवा कहलाती है। समय और सेवा का आपस में तालमेल होने से जो भी जीवन के कार्य होते है वह सुचारू रूप से पूरे हो जाते है। अंत में महात्मा ने कहा कि वो इंसान बडा ही भाग्यशाली है जो समय रहते जो इस सत्य की जानकारी कर लेते है।तो उनका जीवन आनन्दमय हो जाता है। उन्हे फिर भक्ति के साथ आनंद की अनुभूति प्राप्त होती है। इससे पूर्व अन्य अनुयायियों ने विचारों और भजनों के माध्यम से निरंकारी मिशन का प्रचार एवं गुणगान किया।इस मौके पर काफी संख्या में निरंकारी समुदाय के अनुयायियों उपस्थित रहे। अंत मे लंगर का भी आयोजन किया गया।