अलविदा राहत साहब... 'अब न मैं हूं न बाकि हैं ज़माने मेरे, फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे'

अब न मैं हूँ न बाकि हैं ज़माने मेरे,
फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे...-राहत इंदौरी
मंगलवार को मशहूर शायर राहत इंदौरी इस दुनिया को अलविदा कह गए। मोहब्बत और बगावत की शायरी से युवाओं के दिल को जीतने वाले राहत साहब का दिल का दौरा पड़ने से इन्तकाल हो गया। मंगलवार को सुबह उन्हें कोरोनावायरस से संक्रमित पाया गया, दोपहर होते होते उन्हें दिल का दौरा पड़ा और निधन हो गया। मंगलवार को ही उन्हें सपुर्दे-खाक कर दिया गया।
70 वर्षीय शायर ने खुद ट्वीट कर अपने संक्रमित होने की जानकारी दी थी। उन्होंने ट्वीट कर कहा था, “कोविड-19 के शुरूआती लक्षण दिखाई देने पर सोमवार मेरी कोरोना वायरस की जांच की गई जिसमें संक्रमण की पुष्टि हुई।” उन्होंने ट्वीट में आगे कहा, “दुआ कीजिये (मैं) जल्द से जल्द इस बीमारी को हरा दूं।”
राहत इंदौरी जब अपने खास और बेहद कमाल के लहजे में स्टेज पर शेर पढ़ा करते थे तालियों की गड़गड़ाहट रुकती नहीं थी। उनका एक शेर ‘आसमान लाए हो ले आओ ज़मीन पर रख दो..’ लोगों को बेहद पसंद है। आज जब राहत इंदौरी इस दुनिया में नहीं हैं, तो उन्हें याद करते हुए उनके कुछ वो शेर पढ़िए जो हमेशा चर्चा में रहे...
1. बुलाती है मगर जाने का नहीं
ये दुनिया है इधर जाने का नहीं...
2. सभी का खून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है...
3. मैं जब मर जाऊं तो मेरी अलग पहचान लिख देना
लहू से मेरी पेशानी पर हिंदुस्तान लिख देना...
4. किसने दस्तक दी, कौन है
आप तो अंदर है बाहर कौन है...
5. जनाज़े पर मेरे लिख देना यारो
मोहब्बत करने वाला जा रहा है...
6. लोग हर मोड़ पे रुक रुक के सँभलते क्यूं हैं
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यूं हैं...
7. हों लाख ज़ुल्म मगर बद-दुआ' नहीं देंगे
ज़मीन माँ है ज़मीं को दग़ा नहीं देंगे...
8. मेरे हुजरे में नहीं और कहीं पर रख दो
आसमां लाए हो ले आओ ज़मीं पर रख दो...
9. तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो...
10. फूलों की दुकानें खोलो, खुशबू का व्यापार करो
इश्क़ खता है तो, ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो...
11. आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो...
12. अंदर का ज़हर चूम लिया धुल के आ गए
कितने शरीफ़ लोग थे सब खुल के आ गए...
13. न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा
हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा...
14. मेरी ख्वाहिश है कि आंगन में न दीवार उठे
मेरे भाई, मेरे हिस्से की ज़मीं तू रख ले...
15. ख़ामोशी ओढ़ के सोई हैं मस्जिदें सारी,
किसी की मौत का ऐलान भी नहीं होता...