काश महंगाई -बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर भी इतनी ही आक्रामक होती कांग्रेस
कांग्रेस नेता राहुल गांधी नेशनल हेराल्ड केस में प्रवर्तन निदेशालय के बुलावे पर पूछताछ के लिए पहुंचे तो पूरी कांग्रेस ने बवाल मचा दिया। एक दो नेता नहीं बल्कि पूरी कांग्रेस ही सड़कों पर उतर आई। सिर्फ युवा नेता नहीं बल्कि अशोक गहलोत, भूपेंद्र सिंह बघेल जैसे मुख्यमंत्री और पी चिदंबरम जैसे कद्दावर पूर्व मंत्री भी राहुल पर कार्रवाई के खिलाफ दिल्ली की सड़कों पर पुलिस से जूझते रहे। लंबे समय बाद पार्टी में वर्कर से लेकर शीर्ष नेता तक एकजुटता के साथ अपने नेता के समर्थन में कदमताल करते दिखे। कांग्रेस ने राहुल गांधी से प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की पूछताछ को ‘असंवैधानिक' करार देते हुए दावा किया कि सरकार को पार्टी के पूर्व अध्यक्ष से परेशानी इसलिए है कि उन्होंने किसानों, नौजवानों, मजदूरों की आवाज उठाई तथा कोरोना संकट एवं सीमा पर चीन की आक्रमकता को लेकर मोदी सरकार को घेरा। उधर सोमवार के बाद मंगलवार को भी घंटो तक प्रवर्तन निदेशालय ने राहुल गांधी से पूछताछ की और सोमवार की तर्ज पर ही कोंग्रेसियों का विरोध प्रदर्शन भी ज़ारी रहा। अपने नेता के बचाव के दौरान कांग्रेस की एकजुटता और शक्ति का प्रदर्शन तो बखूबी हो रहा है, मगर सवाल ये उठता है कि क्या इससे पहले कांग्रेस को ऐसा अवसर नहीं मिला। महंगाई और बेरोजगारी जैसे देश के मुद्दे प्रेस कॉन्फ्रेंस से उठाने वाली कांग्रेस आखिरकार पुरे बल के साथ सड़क पर तब उतरी जब बात गांधी परिवार पर आई। इसे विडम्बना ही कहेंगे कि देश का मुख्य विपक्षी दल देश के मुद्दों को सड़क पर उतर कर आक्रमकता के साथ उठाने में नाकामयाब रहा है। नतीजन कांग्रेस पर कमजोर का ठप्पा लग चूका है। पर बात जब गांधी परिवार पर आई तो ये ही कमजोर कांग्रेस बीते दो दिनों में मजबूत दिखी है। एक पक्ष ये भी है कि बीत माह हुए नव संकल्प शिविर के बाद कांग्रेस में ये चेतना आई है और पार्टी आक्रामक हुई है। पर सच्चाई ये है कि उक्त शिविर के बाद इसी कांग्रेस ने मोदी सरकार के आठ साल पर एक पुस्तिका 'आठ साल आठ छल..' ज़ारी की और वो भी बंद कमरे में पत्रकार वार्ता कर। उस पत्रकार वार्ता में सोनिया और राहुल गांधी तो मौजूद तक नहीं थे। कहा गया कि कांग्रेस इसे आम जन तक पहुंचाएगी पर कितने लोगों तक ये पहुंची, ये बात सभी जानते है।
पार्टी में हमेशा रहा है गांधी -नेहरू परिवार का वर्चस्व
1998 से सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बनी थी और 2017 तक वे इस पद पर रही। इसके बाद 2019 तक उनके बेटे राहुल गांधी अध्यक्ष रहे और 2019 में सोनिया फिर अंतरिम अध्यक्ष बन गई। कांग्रेस गांधी परिवार से बाहर निकल नहीं पा रही है और एक के बाद एक कई नेता पार्टी छोड़ते जा रहे है। 1919 में पहली बार मोतीलाल नेहरू कांग्रेस अध्यक्ष बने थे और तब से अब तक शायद ही कभी कांग्रेस में ऐसा दौर आया हो जब पार्टी गांधी -नेहरू परिवार के प्रभाव से पूरी तरह बाहर निकली हो। पर इससे पहले पार्टी की ऐसी खराब दशा भी कभी नहीं हुई। अब पार्टी और गांधी परिवार दोनों के सामने करो या मरो की स्थिति है।