ओपीएस लागू, पेंशन की टेंशन खत्म
बरसों का इन्तजार खत्म हुआ और हिमाचल प्रदेश के कर्मचारियों की सबसे बड़ी मांग पूरी हो गई। बीते दिनों हुई कैबिनेट बैठक में प्रदेश की सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार ने कर्मचारियों को पुरानी पेंशन देने का ऐलान कर दिया है। जिस मसले ने प्रदेश की चुनावी हवा का रुख बदल कर रख दिया था, अब वो मसला हल हो गया है। प्रदेश के नए मुख्यमंत्री मानों कर्मचारियों के लिए मसीहा बनकर आए और उनकी पेंशन की सबसे बड़ी टेंशन को खत्म कर गए। कर्मचारी एक लम्बे अर्से से अपने बुढ़ापे की सुरक्षा की मांग रहे थे । पिछली सरकार ने जिन कर्मचारियों पर एफआईआर की इस सरकार ने उन्हीं कर्मचारियों को गले लगा लिया। जो कर्मचारी सचिवालय का घेराव किया करते थे, वो ही कर्मचारी सचिवालय के बाहर जश्न मनाते दिखाई दिए। नाचते गाते खुशियां मनाते दिखाई दिए। यही नहीं इन कर्मचारियों ने मुख्यमंत्री को नायक की उपाधि भी दे दी। हिमाचल में करीब सवा लाख कर्मचारी इस समय एनपीएस के दायरे में आते हैं और ये सवा लाख कर्मचारी और इनके परिवार लगातार पुरानी पेंशन की मांग कर रहे थे। अब कर्मचारियों को पुरानी पेंशन के ऐलान के साथ ही एक लम्बे संघर्ष पर विराम लग गया है।
इस संघर्ष की चिंगारी साल 2015 में भड़की थी और देखते ही देखते ये चिंगारी ज्वाला में बदल गई। जब प्रदेश में पुरानी पेंशन को हटा कर नई पेंशन लाई गई तो कर्मचारियों ने इसका स्वागत किया। लेकिन कुछ समय बाद जब इसके परिणाम सामने आए तो कर्मचारियों को समझ आ गया कि नई पेंशन स्कीम उनके लिए घाटे का सौदा है और फिर नई पेंशन को हटा पुरानी पेंशन की मांग की सुगबुगाहट तेज़ हो गई और साल 2015 तक कर्मचारी संगठित हो गए। साल 2017 से पहले जब भाजपा विपक्ष में थी तो पुरानी पेंशन कर्मचारियों को लौटाने के वादे किया करती थी। 2017 में जब भाजपा की सरकार बनी तो कर्मचारियों को उम्मीद थी कि पुरानी पेंशन बहाली के लिए प्रदेश सरकार कुछ कदम उठाएगी। दरअसल कर्मचारियों का कहना था कि इससे पहले जब भाजपा विपक्ष में थी तो खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर इस मांग की पैरवी किया करते थे। परन्तु सत्ता में आने के बाद जब कोई बदलाव होता नहीं दिखा तो शुरुआत हुई उस संघर्ष की जो आगे चल कर प्रदेश के कर्मचारियों के सबसे बड़े आंदोलन में तब्दील हो गया। उस वक्त किसी ने ये सोचा भी नहीं था कि कर्मचारियों की मांग आगे चलकर इतना विशाल आंदोलन बन जाएगी।
कर्मचारियों ने पेंशन बहाली के लिए खूब जतन किए। शुरुआत में कर्मचारियों ने विधायकों से मिलकर अपनी मांग को उठाया। ये सिलसिला लम्बे समय तक चलता रहा और कर्मचारियों ने प्रदेश के हर बड़े नेता के दर पर दस्तक दी। फिर धीरे-धीरे मांग बढ़ती गई और नेताओं की नजरअंदाजी के चलते नाराज़ कर्मचारी सड़कों पर उतरने लगे। 25 जुलाई, 2017 को शिमला सचिवालय के बाहर पहली रैली हुई थी। फिर कई पेन डाउन स्ट्राइक हुई तो इस मुद्दे को और हवा मिल गई। मगर जब किसी ने सुनी नहीं तो प्रदेश के कर्मचारी और भी भड़क गए और मामला विधानसभा घेराव तक पहुंच गया। कभी भारी संख्या में कर्मचारी धर्मशाला पहुंचे तो कभी शिमला, पेंशन व्रत हुए, पेंशन संकल्प रैली हुई, पेंशन अधिकार रैली हुई। कर्मचारियों के इन प्रदर्शनों में उमड़ा जनसैलाब स्पष्ट संकेत देता रहा था कि कर्मचारी मानने को तैयार नहीं थे। मगर सरकार हर बार आर्थिक परिस्थितियों का हवाला देती रही। कर्मचारियों का ये संघर्ष बहुत कम समय में एक आंदोलन में बदल गया।
जयराम सरकार द्वारा 2009 की अधिसूचना लागू कर प्रदेश के कर्मचारियों को मनाने का भी प्रयास हुआ मगर कर्मचारी पुरानी पेंशन बहाली की मांग पर अड़े रहे। इस मसले पर लगातार भाजपा आर्थिक परिस्थितियों का हवाला देती रही। पूर्व सरकार ने कई बार स्पष्ट किया कि प्रदेश के आर्थिक हालात ऐसे नहीं है कि पुरानी पेंशन लागू की जाए, मगर संभावनाएं फिर भी तलाशी जाएंगी। पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर भी स्पष्टीकरण देते रहे कि हिमाचल सरकार अपने बलबूते ओल्ड पेंशन का भुगतान नहीं कर पाएगी, क्योंकि राज्य का राजकोष केंद्र सरकार से मिलने वाले रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट पर चलता है। मगर ये सर्व विदित था की मसला सिर्फ आर्थिक स्थिति का नहीं है। दरअसल देश के 12 राज्यों में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार है, जबकि 4 राज्यों में भाजपा समर्थित सरकार है। यदि किसी एक भी राज्य में भाजपा पुरानी पेंशन बहाल करती है तो बाकि राज्यों के कर्मचारी भी चाहेंगे कि उन्हें भी पुरानी पेंशन दी जाए और अंततः केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए भी पुरानी पेंशन बहाल करनी होगी। ऐसे में हकीकत ये थी कि चाहकर भी जयराम सरकार के लिए ऐसा करना मुश्किल था।
वहीं कांग्रेस के लिए परिस्थितियां अलग थी। तीन राज्यों में कांग्रेस की पूर्ण बहुमत की सरकार है, हिमाचल, राजस्थान और छत्तीसगढ़। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पार्टी पहले ही पुरानी पेंशन लागू कर चुकी थी और अब हिमाचल में भी ऐलान कर दिया गया है। इसी के साथ झारखंड, तमिलनाडु और बिहार में कांग्रेस गठबंधन की सरकार है और झारखंड में भी पुरानी पेंशन की घोषणा हो चुकी है। जिस मुद्दे को भाजपा महज़ कर्मचारियों की एक मांग समझती रही कांग्रेस ने इस मुद्दे की गहराई को भांपा। कांग्रेस ने विपक्ष में रहते हुए भी इस मुद्दे का समर्थन कर इसे खूब हवा दी और अपने चुनावी घोषणा पत्र में कांग्रेस की पहली गारंटी भी पुरानी पेंशन की बहाली ही थी। उधर कर्मचारियों ने भी प्रदेश में 'वोट फॉर ओपीएस' अभियान चलाया और स्पष्ट कर दिया की जो पेंशन की बात करेगा कर्मचारी उसी को वोट देंगे। आम आदमी पार्टी ने भी इस मसले की गहराई को समझते हुए पहले पंजाब में पेंशन बहाली की घोषणा की और फिर हिमाचल में भी पुरानी पेंशन बहाली का वादा किया। जबकि भाजपा के घोषणा पत्र से ये वादा नदारद रहा। नतीजा सभी के सामने है। इस चुनाव में कांग्रेस ने कर्मचारियों से वादा किया और कर्मचारियों ने कांग्रेस का समर्थन किया। आज प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की सरकार है और कर्मचारियों को भी उनकी पुरानी पेंशन मिलने का ऐलान हो चुका है।
इस वर्ष 800 करोड़ रुपये होंगे खर्च :
मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू के अनुसार हिमाचल प्रदेश में पुरानी पेंशन स्कीम देने के लिए इस साल करीब 800 करोड़ रुपये खर्च होंगे। उन्होंने यह भी कहा कि आने वाले वक्त में इसका बजट और बढ़ जाएगा। यह मालूम रहे कि प्रदेश में नई पेंशन स्कीम वाले इस साल 1500 से अधिक कर्मचारी सेवानिवृत्त होने हैं।
छत्तीसगढ़ से मिलता-जुलता हो सकता है फार्मूला :
हिमाचल प्रदेश में ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू करने का फार्मूला छत्तीसगढ़ से मिलता-जुलता हो सकता है। छत्तीसगढ़ में कर्मचारी केंद्र से पैसा वापस लाकर पिछली रकम को खुद जमा कर रहे हैं। वहां पर कर्मचारियों को ओपीएस में आने या एनपीएस में बने रहने के दोनों ही विकल्प दिए गए हैं। जहां तक छत्तीसगढ़ के फार्मूले की बात है तो वहां पर निर्णय लिया गया था कि राज्य सरकार के कर्मचारी एक नवंबर 2004 के स्थान पर एक अप्रैल 2022 को छत्तीसगढ़ सामान्य भविष्य निधि के सदस्य बनेंगे। छत्तीसगढ़ सरकार ने एक अप्रैल 2022 से पहले नियुक्त कर्मचारियों को एनपीएस में बने रहने या पुरानी पेंशन योजना में शामिल होने का विकल्प दिया था। इसके लिए कर्मचारियों से वहां शपथ पत्र भी मांगा जा रहा है। यदि कोई कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना का विकल्प चुनता है, तो उसे 1 नवंबर 2004 से 31 मार्च 2022 तक सरकार के योगदान और लाभांश को एनपीएस खाते में राज्य सरकार को जमा करना पड़ता है। वहीं, सरकारी कर्मचारियों को इस अवधि के दौरान एनपीएस में जमा कर्मचारी अंशदान और लाभांश एनपीएस नियमों के तहत देने की व्यवस्था की गई है। हालांकि, यह तो छत्तीसगढ़ की व्यवस्था है, पर मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने हिमाचल का अपना सर्वश्रेष्ठ मॉडल बताया है। ऐसे में लग रहा है कि यह छत्तीसगढ़ के मॉडल से कुछ भिन्न भी हो सकता है।
खुद प्रियंका गांधी पहुंची थी मिलने
प्रदेश में पुरानी पेंशन के मुद्दे की गहराई को समझते हुए खुद प्रियंका गांधी भी कर्मचारियों से मिलने पहुंची थी। दरअसल प्रदेश के कर्मचारी पुरानी पेंशन की मांग के लिए क्रमिक अनशन पर बैठे थे। इस अनशन के दौरान सरकार का कोई भी नुमाइंदा या भाजपा का कोई बड़ा नेता कर्मचारियों से मिलने नहीं पहुंचा। हालाँकि प्रियंका गाँधी सोलन में अपनी रैली के दौरान कर्मचारियों से मिलने पहुंची और उनसे उनका हाल जाना। पुरानी पेंशन लागू होने के बाद प्रियंका गाँधी ने कर्मचारियों को बधाई दी है।
कर्मचारी इसलिए नहीं चाहते पुरानी पेंशन :
साल 2004 में केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों की पेंशन योजना में एक बड़ा बदलाव किया था। इस बदलाव के तहत नए केंद्रीय कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना के दायरे से बाहर हो गए। ऐसे कर्मचारियों के लिए सरकार ने नेशनल पेंशन सिस्टम को लॉन्च किया। यह 1972 के केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम के स्थान पर लागू की गई और उन सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए इस स्कीम को अनिवार्य कर दिया गया जिनकी नियुक्ति 1 जनवरी 2004 के बाद हुई थी। अधिकतर सरकारी कर्मचारी नेशनल पेंशन सिस्टम लागू होने के बाद से ही पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल करने को लेकर मुहिम चला रहे हैं। पश्चिम बंगाल को छोड़ देश के हर राज्य में नई पेंशन योजना को लागू किया गया। अधिकतर सरकारी कर्मी पुरानी पेंशन व्यवस्था को इसलिए बेहतर मानते हैं क्योंकि यह उन्हें अधिक भरोसा उपलब्ध कराती है। जनवरी 2004 में एनपीएस लागू होने से पहले सरकारी कर्मी जब रिटायर होता था तो उसकी अंतिम सैलरी के 50 फीसदी हिस्से के बराबर उसकी पेंशन तय हो जाती थी। ओपीएस में 40 साल की नौकरी हो या 10 साल की, पेंशन की राशि अंतिम सैलरी से तय होती थी यानी यह डेफिनिट बेनिफिट स्कीम थी। इसके विपरीत एनपीएस डेफिनिट कॉन्ट्रिब्यूशन स्कीम है यानी कि इसमें पेंशन राशि इस पर निर्भर करती है कि नौकरी कितने साल की गई है और एन्युटी राशि कितनी है। एनपीएस के तहत एक निश्चित राशि हर महीने कंट्रीब्यूट की जाती है।
शुरूआती दौर में कर्मचारियों ने इस स्कीम का स्वागत किया, लेकिन जब एनपीएस का असल मतलब समझ आने लगा तो विरोध शुरू हो गया। नई पेंशन स्कीम के अंतर्गत हर सरकारी कर्मचारी की सैलरी से अंशदान और डीए जमा कर लिया जाता है। ये पैसा सरकार उसके एनपीएस अकाउंट में जमा कर देती है। रिटायरमेंट के बाद एनपीएस अकाउंट में जितनी भी रकम इक्कठा होगी उसमें से अधिकतम 60 फीसदी ही निकाला जा सकता है। शेष 40 फीसदी राशि को सरकार बाजार में इन्वेस्ट करती है और उस पर मिलने वाले सालाना ब्याज को 12 हिस्सों में बांट कर हर महीने पेंशन दी जाती है। यानी पेंशन का कोई तय राशि नहीं होती। पैसा कहां इन्वेस्ट करना है, ये फैसला भी सरकार का ही होगा। इसके लिए सरकार ने पीएफआरडीए नाम की एक संस्था का गठन किया है। कर्मचारियों का कहना है कि उनका पैसा बाजार में जोखिम के अधीन है और बाजार में होने वाले उलटफेर के चलते उनकी जमा पूंजी सुरक्षित नहीं है। पुरानी पेंशन स्कीम इससे कई ज़्यादा बेहतर मानी जाती है। उसमें सरकारी नौकरी के सभी लाभ मिला करते थे। पहले रिटायरमेंट पर प्रोविडेंट फण्ड के नाम पर एक भारी रकम और इसके साथ ताउम्र तय पेंशन जोकि मृत्यु के बाद कर्मचारी की पत्नी को भी मिला करती थी।
पुरानी पेंशन योजना में ये हैं प्रावधान
**इस योजना में सेवानिवृत्ति के समय कर्मचारी के वेतन की आधी राशि पेंशन के रूप में दी जाती है।
**कर्मचारी के वेतन से कोई पैसा नहीं कटता है। भुगतान सरकार की ट्रेजरी के माध्यम से होता है।
**20 लाख रुपये तक ग्रेच्युटी की रकम मिलती है। सेवानिवृत्त कर्मचारी की मृत्यु होने पर उसके परिजनों को पेंशन राशि मिलती है।
**पुरानी योजना में जनरल प्रोविडेंट फंड यानी जीपीएफ का प्रावधान है। इसमें महंगाई भत्ते को भी शामिल किया जाता है।
वापस होंगे एनपीएस कर्मचारियों पर दर्ज मामले
ओल्ड पेंशन बहाल करने को लेकर संघर्षरत एनपीएस कर्मचारियों पर दर्ज तमाम केस वापस होंगे। मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने यह बात कही है। उन्होंने कहा कि संघर्ष के दौरान चाहे शिक्षक हों या अन्य कर्मचारी सभी हक की लड़ाई लड़ रहे थे। अब इन कर्मचारियों को उस समय बनाए गए मामलों से भी छूट दिलाई जाएगी। उधर, इस मौके पर जोइया मामा नारा लगाने से फेमस हुए सिरमौर के शिक्षक ओम प्रकाश ने कहा कि कांग्रेस सरकार बनने के बाद पेन किलर मिल गई है और अब धीरे-धीरे दर्द से राहत मिल रही है। ओम प्रकाश समेत अन्य शिक्षकों पर सचिवालय के बाहर नारेबाजी करने के आरोप में मामला दर्ज हुआ था।
प्रदीप ठाकुर की रही अहम भूमिका
पुरानी पेंशन की लड़ाई की शुरुआत नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ के बैनर तले हुई। प्रदीप ठाकुर के नेतृत्व में इस संगठन ने कर्मचारियों को एकत्रित किया। उन्हें पुरानी पेंशन की एहमियत का एहसास करवाया, पुरानी पेंशन के लिए लम्बी लड़ाई लड़ी । यूं तो प्रदेश में कई अन्य संगठन भी थे जो पुरानी पेंशन की मांग करते रहे, मगर जिस संगठन के लोगों ने तन-मन-धन से पुरानी पेंशन बहाली में योगदान दिया वो नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ ही है।
पुरानी पेंशन देने वाला देश का छठा राज्य बना हिमाचल
2021 तक एकमात्र पश्चिम बंगाल ही वो राज्य था जहां कर्मचारियों को पुरानी पेंशन दी जाती थी, मगर अब ऐसा नहीं है। राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड और पंजाब में वर्ष 2022 में पुरानी पेंशन बहाल कर दी गई। अब साल 2023 में हिमाचल प्रदेश पुरानी पेंशन बहाल करने वाला देश का पांचवां राज्य बन गया है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की सरकारों ने अपने चुनावी वायदे निभा दिए हैं। भाजपा शासित राज्यों में अभी भी इस बहाली का इंतजार है। राजस्थान सरकार ने 23 फरवरी 2022 को पुरानी पेंशन बहाल करने का ऐलान किया था। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने चौथे बजट में यह घोषणा पूरी की। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मार्च 2022 में पेश किए बजट में पुरानी पेंशन देने की घोषणा की। एक सितंबर 2022 से झारखंड में हेमंत सोरेन सरकार ने पुरानी पेंशन बहाल की थी। पंजाब में 21 अक्टूबर 2022 को मुख्यमंत्री भगवंत मान ने मंत्रिमंडल की बैठक में ओपीएस बहाल करने का निर्णय लिया। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकारें हैं।