अब भाजपाई पूछ रहे, कौन होगा कांग्रेसी बरात का दूल्हा

प्रदेश कांग्रेस संगठन में बदलाव हो चूका है। आलाकमान ने पंजाब जैसी गलती न दोहराते हुए हिमाचल प्रदेश में बदलाव भी किया है और संतुलन भी बरकरार रखा है। वीरभद्र सिंह फैक्टर को जहन में रखते हुए होलीलॉज को तवज्जो जरूर दी गई है, लेकिन सम्भवतः पार्टी बिना किसी चेहरे के चुनाव में उतरेगी। अब तक तो इशारा कुछ ऐसा ही है। नतीजों के बाद संख्या बल और आलाकमान का आशीर्वाद मुख्यमंत्री तय करेगा, बशर्ते पहले पार्टी सत्ता में तो आये। कांग्रेसी दिग्गज भी कलेक्टिव लीडरशिप में चुनाव लड़ने की बात बार -बार दोहरा रहे है, ताकि अंतर्कलह और अंदरूनी सियासत पर पर्दा डला रहे। जाहिर है पंजाब से सीख लेते हुए पार्टी संभल -संभल कर एक -एक कदम आगे बढ़ाना चाहती है, और प्रदेश के नेताओं को भी ऐसे ही निर्देश दिए गए है। उधर, भाजपाई अभी से कांग्रेस की फिरकी लेने में लगे है। सवाल पूछा जा रहा है कि कांग्रेसी बरात का दूल्हा कौन होगा ? इतना ही नहीं प्रतिभा सिंह की ताजपोशी के बाद भाजपा समर्थित सोशल मीडिया पेजों से अन्य नेताओं पर चुटकी भी ली जा रही है।
कांग्रेसी बारात का दूल्हा कौन होगा, ये सवाल विधानसभा चुनाव नजदीक आते -आते कांग्रेस को निसंदेह खूब सताने वाला है। दरअसल 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने ये ही सवाल भाजपा से किया था। तब 9 नवंबर को मतदान होना था और अक्टूबर के आखिर तक भाजपा ने चेहरे की घोषणा नहीं की थी। कांग्रेस भाजपा को बिन दूल्हे की बरात कह रही थी। इस बीच भाजपा की स्थिति भांपते हुए तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह में राजगढ़ की रैली में 30 अक्टूबर को प्रो प्रेम कुमार धूमल को सीएम फेस घोषित किया और समीकरण तेजी से भाजपा के पक्ष में बदल गए। तब भाजपा ने तो चेहरा घोषित कर दिया था, पर कांग्रेस ऐसा करने की स्थिति में होगी, फिलवक्त तो ऐसा मुश्किल लगता है।
आठ चुनावों के बाद बगैर वीरभद्र होगी कांग्रेस :
1983 में वीरभद्र सिंह पहली बार मुख्यमंत्री बने थे। तब से 2017 तक हुए आठ विधानसभा चुनाव में पार्टी के फेस को लेकर मौटे तौर कभी संशय नहीं रहा। कभी ऐसी स्थिति बनती भी दिखी तो वीरभद्र सिंह के तेवर और शक्ति प्रदर्शन के आगे हमेशा आलाकमान को झुकना पड़ा। अब करीब 38 साल बाद पार्टी बगैर वीरभद्र सिंह के चुनाव लड़ेगी। जाहिर है ऐसे में कई अन्य नेताओं के अरमान परवान चढ़ रहे है।