हर साल बढ़ती तबाही: हर बरसात एक नई आफत क्यों ?

हर बरसात एक नई आफत क्यों
हिमाचल पिछले कुछ सालों में बहुत कुछ खो चूका है। हर साल बरसात आती है और हिमाचल को गहरे ज़ख्म दे जाती है। न जाने कितने परिवार उजड़ गए, न जाने कितने लोग बेघर हो गए, न जाने कितने लोगों की हस्ती खेलती ज़िन्दगी वीरान हो गई। पुल टूट गए, सड़कें तबाह हो गई, पूरे पूरे बाज़ार रौद्र रूप धारण कर नदियां निगल गई। गांवों के नाम मिट गए, कई शहरों के नक्शे बदल गए। हालात ऐसे हैं कि हिमाचल का दर्द अब शब्दों में समाना मुश्किल हो गया है, क्योंकि ये पीड़ा एक बार की नहीं, यह हर साल की कहानी बन चुकी है। लेकिन क्या हिमाचल हमेशा से ऐसा था? क्या इस देवभूमि पर आपदा ऐसे ही बरसती रही है?
नहीं, हिमाचल हमेशा ऐसा नहीं था। यह देवभूमि सदियों से अपनी शांत प्राकृतिक छवि, स्थिरता और संतुलित जीवनशैली के लिए जानी जाती रही है। हां, हिमालयी भूगोल के कारण यहां भूस्खलन और भूकंप जैसी आपदाओं की आशंका हमेशा बनी रही है, लेकिन पहले इन घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता सीमित थी। बीते कुछ वर्षों में जिस तरह हर मानसून के साथ तबाही का पैमाना बढ़ता गया है, वैसा पहले नहीं देखा गया।
2017–2022 में हिमाचल में हर मानसून में औसतन ₹1,000 करोड़ का सालाना नुकसान हुआ । जब कि 2023 की तबाही अकेले पिछले पाँच साल के कुल नुकसान का लगभग 8.5 गुना थी। अकेले 2023 के मानसून में हिमाचल में 400 से अधिक लोगों की जान गई, 2,500 से अधिक घर पूरी तरह तबाह हो गए और 10,000 करोड़ रुपये से अधिक का आर्थिक नुकसान हुआ। हिमाचल प्रदेश में 2024 के मानसून के दौरान भारी बारिश, भूस्खलन और बादल फटने की घटनाओं ने व्यापक तबाही मचाई। राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) के अनुसार, 27 जून से 2 अक्टूबर 2024 तक कुल 101 आपदाजनक घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें 54 बादल फटने, 47 भूस्खलन, 122 घरों का नुकसान और 149 मवेशियों की मौत शामिल है। इस दौरान राज्य को लगभग ₹1,360 करोड़ का आर्थिक नुकसान हुआ। बात 2025 कि करें तो अब तक 85 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 34 लोग लापता हैं और 129 लोग घायल हुए हैं। मंडी जिला, विशेष रूप से थुनाग, बगसेयड़ और करसोग-गोहर क्षेत्र, सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। यहां 404 घर पूरी तरह से नष्ट हो गए, जबकि 751 घर आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए। व्यावसायिक संपत्तियों में भी भारी नुकसान हुआ है, जिसमें 233 दुकानें और फैक्ट्रियां शामिल हैं। सार्वजनिक निर्माण विभाग के अनुसार, कुल्लू, मंडी और चंबा जिलों में 10 पुल बह गए हैं। आर्थिक नुकसान का अनुमान ₹541 करोड़ है।
बरसात में हिमाचल को अब ज़्यादा नुकसान क्यों हो रहा है?
प्रश्न यह है कि हिमाचल में अब बरसात के दौरान तबाही इतनी ज़्यादा क्यों हो रही है? हिमाचल प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन योजना (HPSDMP) के अनुसार, पिछले सौ वर्षों में प्रदेश का औसत सतही तापमान 1.6 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। इस तापमान वृद्धि से वर्षा और तापमान के पैटर्न में बदलाव आया है, जिससे बादल फटना, भूस्खलन, बाढ़, सूखा, हिमस्खलन और जंगलों में आग जैसी चरम घटनाएं अधिक बार और अधिक तीव्रता से हो रही हैं। रिपोर्ट बताती है कि शिमला में पिछले 20 वर्षों में तापमान में तेज़ बढ़ोतरी हुई है, ब्यास नदी में मानसूनी जल प्रवाह में गिरावट आई है, जबकि चिनाब और सतलुज में सर्दियों के दौरान जल प्रवाह बढ़ा है। इसके साथ ही ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार तेज़ हुई है, जो अपने साथ नई आपदाओं को जन्म दे रही है।
पर्यावरणविद बताते हैं कि हिमाचल में तापमान की वृद्धि मैदानों से भी अधिक है। जहाँ पहले समुद्रतल से 3000 फीट ऊँचाई तक बर्फबारी होती थी, अब वह 5000 फीट के ऊपर ही देखने को मिलती है। पहले जो बारिश सप्ताह भर तक धीरे-धीरे होती थी, वह अब कम समय में तीव्र रूप से होती है। इसका सीधा परिणाम है ग्लेशियरों से निकलने वाला पानी और भारी बारिश, दोनों मिलकर फ्लैश फ्लड और भूस्खलन की घटनाओं को बढ़ा रहे हैं।
एक और चिंताजनक प्रवृत्ति यह है कि अब बरसात की कुल मात्रा तो पहले जैसी ही है, लेकिन बरसात के दिनों की संख्या में भारी गिरावट आई है। यानी अब कम दिनों में अधिक तीव्र बारिश हो रही है। जब भारी वर्षा थोड़े समय में होती है, तो वह क्लाउड बर्स्ट और फ्लैश फ्लड जैसी आपदाओं का रूप ले लेती है। पहाड़ी राज्यों में, जहां ज़मीन की पकड़ कमजोर होती है और ढलानों पर बसे इलाके होते हैं, ऐसी बारिश बड़ी तबाही का कारण बनती है। इसके अलावा, बेतरतीब निर्माण, सड़क चौड़ीकरण, वनों की कटाई और खनन जैसी मानवीय गतिविधियों ने इस संवेदनशीलता को और बढ़ा दिया है।
यह भी जानना ज़रूरी है कि मौसम विभाग के पास अब एक सुदृढ़ अर्ली वार्निंग सिस्टम है, जो किसी भी क्षेत्र के लिए 5 से 7 दिन पहले अलर्ट जारी कर देता है। ये अलर्ट रंग-कोड (रेड, ऑरेंज, येलो) के रूप में जारी किए जाते हैं, ताकि यह समझा जा सके कि किस क्षेत्र में कितना खतरा है। इसके साथ ही “इंपैक्ट-बेस्ड फोरकास्ट” भी जारी किया जाता है, जिसमें बताया जाता है कि मौसम का संभावित असर किस प्रकार का होगा। इसके बावजूद जब लोग, स्थानीय प्रशासन या संस्थाएं इन चेतावनियों को गंभीरता से नहीं लेतीं, तो तबाही टालना मुश्किल हो जाता है। इसलिए चेतावनी के साथ कार्रवाई भी उतनी ही ज़रूरी है।
हिमाचल की त्रासदी अब केवल प्राकृतिक नहीं रही। यह अब एक मिश्रण है ......... जलवायु परिवर्तन, अवैज्ञानिक विकास, प्रशासनिक लापरवाही और जन-जागरूकता की कमी का। अगर हम अब भी नहीं चेते, तो हर साल यह तबाही और गहराती जाएगी और हिमाचल की यह देवभूमि, विनाश की स्थली में बदल जाएगी।