हिमाचल प्रदेश में चमोली जैसे जल प्रलय का खतरा
हिमाचल प्रदेश में सतुलज बेसिन में अधिकतर झीलें तिब्बत के इलाके में बनी है। इन झीलों का सीधा प्रभाव हिमाचल में ज्यादा है। उत्तराखंड के चमोली में हुई जल प्रलय ने बड़े खतरे की ओर संकेत किया है। पूरे हिमालय क्षेत्र में बड़े बवंडर की आहट है। पश्चिमी हिमालय में जलवायु परिवर्तन की वजह से ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिसके चलते हर साल प्राकृतिक झीलों के बनने का सिलसिला जारी है। हिमाचल प्रदेश के विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद के सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज के मुताबिक प्रदेश की सतलुज, रावी, चिनाव और ब्यास नदी के बेसिन में 935 झीलें बन गई हैं। चमोली जैसी घटना हुई तो यह हिमाचल में बड़ी तबाही मचा सकती है।
निशांत ठाकुर ने जानकारी दी कि जलवायु परिवर्तन की वजह से प्रदेश में अनियमित रूप से बारिश और बर्फबारी हो रही है। कभी अत्यधिक बारिश हो रही है तो कभी सूखे जैसी स्थिती बन रही है। बर्फ पड़ने के समय में भी बदलाव हो रहा है। साइंटिफिक स्टडी में यह बताया गया कि साल 1970 से 2020 तक हिमालय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन की वजह से एक डिग्री तापमान बढ़ गया है। उन्होंने कहा कि इसका सीधा असर कृषि, बागवानी, भूमिगत जल से लेकर पूरी प्रकृति और मानव जाति पर सीधे तौर पर पड़ रहा है। प्रदेश की राजधानी शिमला में बीते सालों में उत्पन्न हुआ जल संकट इसका बड़ा उदाहरण है। निशांत ठाकुर ने कहा कि विकासात्मक गतिविधियों को रोका नहीं जा सकता, लेकिन सतत विकास से कुछ हद तक खतरे को कम किया जा सकता है। निर्माण से लेकर कार्बन उत्सर्जन तक तमाम गतिविधियां सावधानीपूर्वक करनी होंगी।