'देवताओं को रोपवे मंज़ूर नहीं'.... बिजली महादेव रोपवे के खिलाफ सड़कों पर उतरी कुल्लू की जनता

बिजली महादेव रोपवे... यह रोपवे अब महज रोपवे नहीं रहा बल्कि कुल्लू की जनता के लिए उनकी आस्था, जंगल और पहचान की लड़ाई बन गया है। इस रोपवे निर्माण ने मानो प्रदेश में देवताओं की सत्ता और खुद को सत्ता के देवता मानने वालों के बीच एक जंग छेड़ दी है। हालांकि कुल्लू की जनता अब और सहने के मूड में बिल्कुल नहीं। इस रोपवे के विरोध में आज लोग एक साथ बाहर निकल आए। कुल्लू की सड़कों पर आज जो नज़ारा दिखा, वह सिर्फ एक प्रदर्शन नहीं, बल्कि लोगों की भावनाओं का विस्फोट था। सैकड़ों लोग अपने देवता के आदेश, जंगल की शांति और घाटी की अस्मिता बचाने के लिए सड़क पर उतर आए। विरोध की आवाज़ पूरी घाटी में गूंज गई। प्रदर्शनकारी एक ही मांग कर रहे थे... किसी भी हालत में यह प्रोजेक्ट नहीं लगना चाहिए। ढोल नगाड़ों के बिना, नारों के साथ निकली, कुल्लू के रामशीला से ढालपुर मैदान तक फैली यह आक्रोश रैली केवल एक परियोजना का विरोध नहीं थी... यह एक चेतावनी थी कि अगर देवभूमि की चेतना को अनसुना किया गया, तो विरोध अब आवाज नहीं, लहर बन जाएगा। कुल्लू ही नहीं, मंडी के सेरी मंच पर भी लोगों ने रोष रैली निकालकर इस प्रोजेक्ट का विरोध जताया। लेकिन एक रोपवे का इतना विरोध क्यों हो रहा है? क्या कुल्लू के लोगों को विकास से परहेज है? आइए इस विरोध के पीछे की वजहों को ठहरकर समझने की कोशिश करते हैं।
बिजली महादेव संघर्ष समिति के अध्यक्ष सुरेश नेगी के मुताबिक, देववाणी में आदेश हुआ कि भगवान बिजली महादेव को रोपवे मंजूर नहीं। यह बात सुनते ही घाटी की जनता सड़कों पर उतर आई। ग्रामीणों का दावा है कि रोपवे के निर्माण से पहले देवताओं की सहमति नहीं ली गई और जबरन हजारों की संख्या में पेड़ काट दिए गए।
सरकारी फाइलों में सिर्फ 72 पेड़ काटने की इजाजत थी, लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि असल संख्या 100 के पार है। देवदार जैसे सदियों पुराने पेड़ों का यूं कट जाना न सिर्फ पर्यावरण के लिए खतरा है, बल्कि यह देवस्थल की आत्मा को ठेस पहुंचाने जैसा है।
सिर्फ आस्था नहीं, आजीविका भी दांव पर
बिजली महादेव पहुंचने के लिए अभी तीन घंटे की ट्रैकिंग करनी पड़ती है। यह सिर्फ एक रास्ता नहीं, बल्कि एक पूरा लोकल इकॉनमी है। घोड़े खच्चर वाले, ट्रैकिंग गाइड, ढाबे और छोटे व्यापारी, सभी की रोजी-रोटी इसी पर टिकी है। रोपवे बनते ही यह सिस्टम चरमरा जाएगा।
स्थानीय बुजुर्ग शिवनाथ ने चेतावनी दी है कि यदि यह प्रोजेक्ट जबरन थोपा गया तो वे आत्मदाह तक कर सकते हैं। उनका कहना है, “देवताओं की इच्छा के विरुद्ध कुछ भी हुआ तो इसका असर पूरे क्षेत्र पर पड़ेगा।”
विरोध के बीच सरकार की दलीलें
सरकार कह रही है कि रोपवे से ट्रैफिक कम होगा, यात्रा आसान होगी और पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। बिजली महादेव की तीन घंटे की चढ़ाई अब सिर्फ 7 मिनट की सवारी में बदलेगी। रोजाना 36 हजार लोग मंदिर तक पहुंच सकेंगे और ऑल वेदर कनेक्टिविटी भी सुनिश्चित होगी।
बता दें कि मार्च 2024 में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने इस प्रोजेक्ट का वर्चुअल शिलान्यास किया था और 272 करोड़ रुपये मंजूर किए थे। यह प्रोजेक्ट नेशनल हाईवे लॉजिस्टिक्स मैनेजमेंट लिमिटेड (NHLML) द्वारा 2026 तक पूरा किया जाना है। यह 2.3 किलोमीटर लंबा रोपवे 'पर्वतमाला' प्रोजेक्ट के तहत बन रहा है।
लेकिन सियासत यहां भी है...
एक दौर में इस प्रोजेक्ट के समर्थक रहे भाजपा के वरिष्ठ नेता राम सिंह, अरविंद चंदेल और नरोत्तम ठाकुर अब इसके खिलाफ हैं। यहां तक कि पूर्व सांसद महेश्वर सिंह ने भूमि पूजन में शामिल होने के बाद मीडिया के सामने सफाई दी कि वे इस प्रोजेक्ट के समर्थक नहीं हैं।
वहीं कांग्रेस विधायक सुंदर सिंह ठाकुर इस प्रोजेक्ट को विकास का प्रतीक बता रहे हैं। कुल्लू की राजनीति भी तीन हिस्सों में बंटी हुई दिख रही है, एक धड़ा आस्था और पर्यावरण के साथ खड़ा है, दूसरा पर्यटन और विकास के साथ, और तीसरा राजनीतिक मजबूरियों के बीच उलझा हुआ।
बिना जनसुनवाई, बिना सहमति?
स्थानीय संगठनों का आरोप है कि इस प्रोजेक्ट को बिना पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (EIA) और बिना जनसुनवाई के मंजूरी दी गई। कई ग्रामीणों को तब तक इसकी भनक तक नहीं लगी जब तक पेड़ कटने शुरू नहीं हुए।