गरीब का मुंह, गुरु की गोलक
सरदार सरबजीत सिंह यानी वेला बॉबी, वेला इसलिए कि यह असरदार सरदार केवल अपने लिए नहीं जीता बल्कि इनका जीवन मानवता की सेवा में समर्पित हैं। विशेषकर आईजीएमसी आने वाले मरीजों व तीमारदारों के लिए सरबजीत सिंह बॉबी नायक हैं। दरअसल बॉबी की संस्था ऑलमाइटी ब्लैसिंग्स बीते कई सालों से अस्पताल में निशुल्क लंगर का संचालन करती आई है, जहाँ रोज़ाना कम से कम तीन हजार लोग चाय-नाश्ता, दोपहर का भोजन और रात का भोजन पाते हैं। इसके अलावा सरबजीत की संस्था कैंसर और अन्य गंभीर रूप से बीमार रोगियों के लिए निशुल्क एंबुलेंस सेवा का संचालन करती है और कोविड संकट में भी उनकी यह सेवा जारी रही। बॉबी की संस्था रोटी बैंक का संचालन भी करती है। सरबजीत सिंह ने अक्टूबर 2014 में कैंसर अस्पताल शिमला में मरीजों के लिए चाय-बिस्किट सेवा की शुरुआत की थी। धीरे-धीरे मरीजों को सूप, दलिया देने लगे। लोगों का सहयोग मिला तो चावल, दाल, खिचड़ी का प्रबंध किया। फिर सुबह से लेकर रात तक तीन हजार से अधिक लोग निशुल्क भरपेट भोजन पाने लगे। प्रदेश के कोने-कोने से शिमला स्थित रीजनल कैंसर अस्पताल पहुंचे मरीजों और उनके परिजनों से अगर कोई पूछे कि सरबजीत सिंह कौन है तो उन लोगों के भाव सारी कहानी कह देते हैं।
इस संस्था से जुड़ा एक और बेहद सुखद पहलू है और वो है स्कूली बच्चों को मानव सेवा के इस अभियान से जोड़ना। दरअसल सरबजीत सिंह ने पीड़ित मानवता की सेवा के लिए कुछ साल पहले शहर के स्कूली बच्चों के सामने 'एक रोटी रोज' का मंत्र रखा। नतीजन शिमला के कई स्कूलों के बच्चे रोटियां एक्सट्रा लाने लगे। स्कूली बच्चों से यह रोटियां एकत्रित कर लंगर में दी जाती है। संस्था ने रोटियां गर्म करने के लिए खास मशीन खरीदी है। इसके अलावा स्कूली बच्चे घरों से एक मुट्ठी अन्न भी लाते थे, ये सिलसिला लगातार चला। पर बीते दिनों पुलिस बल का प्रयोग कर ये लंगर बंद करवाने की कोशिश की गई। आईजीएमसी प्रशासन ने इस लंगर को अवैध बताकर इसका बिजली व पानी का कनेक्शन काट दिया। इसके बाद प्रदेश के हर हिस्से के लोग सरबजीत सिंह बॉबी के साथ दिखे है। बेशक प्रशासन की कार्रवाई कानून और नियमों के दायरे में है, पर सवाल ये है कि क्या जरूरतमंदों की सहायता करने वाली इस संस्था के खिलाफ ऐसी कार्रवाई ही एकमात्र विकल्प था ? यदि कोई अनियमितता थी भी तो क्या पहल कर उसे दूर नहीं किया जा सकता था ? जनता सवाल उठा रही है कि बॉबी की संस्था को अवैध बताकर कार्रवाई करने वाला प्रशासन सैकड़ों अवैध निर्माण के मामले में ऐसी इच्छाशक्ति क्यों नहीं दिखाता ?
ये है आईजीएमसी का तर्क
आईजीएमसी प्रशासन ने संस्था पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने संस्था द्वारा लंगर के आयोजन के लिए इस्तेमाल हो रहे अस्पताल के बिजली और पानी को चोरी करार दिया और संस्था को आ रहे धन के स्त्रोतों पर भी सवाल खड़े कि ये हैं। एमएस डॉ जनकराज का कहना है कि 2014 में तत्कालीन सरकार ने स्पष्ट निर्देश दिए थे कि संस्था को ना कोई जगह दी जाए ना ही कोई अन्य गतिविधि की इजाज़त, केवल बनी हुई चाय और खिचड़ी को बाँटने की इजाज़त दी गयी थी। वर्ष 2016 में इस संस्था ने चाय बिस्कुट बांटने का कार्य शुरू किया था। उसके बाद इन्होने कैंसर अस्पताल के अंदर खाना बनाने का कार्य शुरू किया। उन्होंने यह भी कहा की अस्पताल के पास बहुत सारी एनजीओ के आवेदन आते रहते है की हमे भी दान पुण्य करने के लिए जगह दी जाये। उन्होंने यह भी कहा कि भावनाओं से व्यवस्था नहीं चलती है, व्यवस्था को चलाने के लिए कानून और नियमों के अनुरूप कार्य करना होता है। सेवा के नाम पर अराजकता को नहीं पनपने दिया जा सकता। बताया जा रहा है कि जब आईजीएमसी की ओर से बॉबी को लंगर की परमीशन दी गई थी, तो उसमें केवल सर्व करने की ही परमीशन थी, लेकिन बॉबी ने वहां पर धीरे-धीरे किचन बना दिया।
आरोप है कि अस्पताल में लंगर लगाते हुए सात साल बीत चुके हैं, लेकिन लंगर का टेंडर सिर्फ एक साल के लिए दिया गया था। यानी करीब छह सालों से यह लंगर अवैध रूप से चला हुआ है। सवाल ये है कि इन छ वर्षों तक प्रशासन कहाँ सोया रहा और अब अचानक ऐसी क्या परिस्थिति आ गई कि लंगर को पूरी तरह से बंद करवाना पड़ रहा है। बहरहाल आईजीएमसी प्रशासन जो भी कहे, भले ही कानून और नियमो का तर्क दे लेकिन जन भावनाएं बॉबी के साथ दिख रही है। सैकड़ों संस्थाएं और हज़ारों लोग बॉबी के समर्थन में उतर आये है और सोशल मीडिया पर इसकी झलक स्पष्ट दिख रही है। आमजन के बीच सरकार की भी इस मामले में खूब आलोचना हुई है। ऐसे में बढ़ते विवाद के बीच सरकार ने जांच बैठा दी है। राज्य सरकार के गृह विभाग की ओर से इसकी अधिसूचना जारी की गई। इस मामले की जांच का ज़िम्मा शिमला जिला न्यायिक अधिकारी राहुल चौहान को सौंपा गया है और उन्हें पद्रंह दिन के अंदर इस पूरे प्रकरण पर अपनी रिपोर्ट सौंपने के आदेश दिए गए हैं।