क्या अब बारी मोदी की? 75 पार होने पर भाजपा के बनाए नियम क्या प्रधानमंत्री पर भी लागू होंगे

लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, सुमित्रा महाजन, कलराज मिश्र ....ये भाजपा के कुछ ऐसे चेहरे है जो 75 पार हुए तो चाहते न चाहते सक्रीय राजनीति से भी बाहर हो गए। साल 2019 का लोकसभा चुनाव था। भाजपा ने एक फैसला लिया। फैसला ये था कि जो भी नेता 75 की आयु का आकड़ा पार कर चुके है उन्हें टिकट नहीं दिया जाएगा। मसलन इन नेताओं को भी टिकट नहीं मिला। समय आगे बढ़ा और अब इस बात को लगभग 7 साल हो गए। ख़ास बात ये है कि 7 साल बाद इस साल, यानी 2025 के सितम्बर में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी 75 के आकड़े तक पहुँच जाएंगे, जो नियम बाकी नेताओं पर लागू हुए वो उनपर लागू होंगे या नहीं, सवाल बस यही है। दरअसल देश में इन दिनों प्रधानमंत्री की रिटायरमेंट एज को लेकर फिर से बहस शुरू हो गई है। बहस का कारण है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत का हाल ही में आया एक बयान, जिसने देश कि सियासत में हलचल तेज़ कर दी।
मोहन भागवत कहते हैं, "75 वर्ष की शॉल जब ओढ़ी जाती है तो इसका अर्थ होता है आपका समय अब हो गया ... बाजू हटो ... दूसरों को करने दो। भागवत हाल ही में रामजन्मभूमि आंदोलन के प्रेरक दिवंगत मोरोपंत पिंगले पर लिखी पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में शामिल हुए थे जहाँ उन्होंने ये बात कही। भागवत का ये बयान आया और मानों विपक्ष में नई ऊर्जा का प्रवाह कर गया। बयान आते ही विपक्ष ने इसे प्रधानमंत्री की आयु पर संघ प्रमुख का तंज समझना शुरू कर दिया। इसे प्रधानमंत्री की नज़दीक आती रिटायरमेंट एज पर एक व्यंग्य बताया गया।
इस वाक्य पर कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने X पर एक पोस्ट में कहा, 'बेचारे पुरस्कार जीवी प्रधानमंत्री! यह कैसी घर वापसी है। लौटते ही सरसंघचालक ने उन्हें याद दिलाया कि 17 सितंबर, 2025 को वे 75 साल के हो जाएंगे।' जयराम रमेश ने आगे लिखा, 'प्रधानमंत्री भी सरसंघचालक से कह सकते हैं कि वे भी 11 सितंबर, 2025 को 75 साल के हो जाएंगे! एक तीर, दो निशाने!' शिवसेना (UBT) की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि यह एक साफ संदेश है और बीजेपी और आरएसएस के बीच जो कुछ भी चल रहा है, वह उनके बयान से साफ नजर आ रहा है। हालांकि, विपक्ष के आक्रामक होते ही आरएसएस भी डिफेंसिव मोड पर आ गया। संघ ने कहा कि सरसंघचालक मोहन भागवत का बयान संघ विचारक मोरोपंत पिंगले के 75वें जन्मदिन पर दिए गए उनके भाषण का संदर्भ था, लेकिन कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टी शिवसेना (UBT) इसका अधूरा मतलब निकालकर राजनीतिक खिचड़ी पका रही है।
भले ही संघ प्रमुख का बयान पीएम को लक्षित था या नहीं, लेकिन सवाल अब ज़ेहन में बस चुका है .... क्या 75 की उम्र में 'बाजू हटने' की बारी अब प्रधानमंत्री की है? अब सबकी नजर इस बात पर है कि जब खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 75 वर्ष के हो जाएंगे, तो क्या वही नियम उन पर भी लागू होंगे? या भाजपा इस पर कोई “अपवाद का सिद्धांत” गढ़ेगी? क्या पार्टी उस नीति से पीछे हटेगी जिसे उसने खुद गढ़ा है?
बता दें, भाजपा के भीतर एक निश्चित उम्र तक पद पर बने रहने को लेकर कोई आधिकारिक नियम नहीं है। हालांकि, कुछ स्तरों पर उम्र सीमाएं लागू की गई हैं। उदाहरण के लिए, छत्तीसगढ़ भाजपा ने मंडल अध्यक्ष पद के लिए 35 से 45 साल और जिला अध्यक्ष पद के लिए 45 से 60 साल की उम्र सीमा निर्धारित की है। वहीं भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनावों में 75 साल से अधिक उम्र के कई वरिष्ठ नेताओं को टिकट नहीं देने के बारे तो हम आपको बता ही चुके है।
आपको ये भी याद दिला दें कि भाजपा ने 75 साल की उम्र पर कई नेता रिटायर किए है। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही भाजपा में 75 साल की उम्र से ज्यादा के नेताओं को रिटायर करने का ट्रेंड शुरू हुआ था । पहली बार प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी ने अपनी कैबिनेट में इससे कम उम्र के नेताओं को ही जगह दी थी। लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को मार्गदर्शक मंडल में शामिल किया गया। 2016 में जब गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने इस्तीफा दिया तो उस समय उनकी उम्र भी 75 साल थी। उसी साल नजमा हेपतुल्लाह ने भी मोदी कैबिनेट से इस्तीफा दिया, जिनकी उम्र 76 साल थी। 2019 लोकसभा चुनाव से पहले तब के भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने एक इंटरव्यू में कहा- 75 साल से ऊपर के किसी भी व्यक्ति को टिकट नहीं दिया गया है। यह पार्टी का फैसला है। उस चुनाव में सुमित्रा महाजन और हुकुमदेव नारायण यादव जैसे नेताओं को टिकट नहीं दिया गया। इसी तरह 2024 लोकसभा चुनाव में राजेंद्र अग्रवाल, संतोष गंगवार, सत्यदेव पचौरी, रीता बहुगुणा जोशी का टिकट 75 साल से ज्यादा उम्र की वजह से काट दिया गया। अब प्रधानमन्त्री के मसले पर भाजपा क्या करती है ये देखना दिलचस्प होगा।