सुल्तानपुरी, अग्निहोत्री या अवस्थी — किसके सिर सजेगा कांग्रेस का ताज?

क्या विनोद सुल्तानपुरी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष होंगे? या उपमुख्यमंत्री को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की जुगत लड़ी जा रही है? या फिर किसी मंत्री की कुर्सी छीनकर उसे संगठन की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी?
हिमाचल कांग्रेस के अध्यक्ष पद का ताज किसके सिर सजेगा — ये सवाल इन दिनों राजनीतिक गलियारों से चाय की टपरियों तक चर्चा का सबसे गर्म मुद्दा बना हुआ है। कांग्रेस में बड़े बदलाव की सुगबुगाहट है और पार्टी के बीच पर्याप्त खींचतान, गुटबाज़ी और हाईकमान की चुप्पी ने इस चर्चा को और भी मज़ेदार बना दिया है। कयासों की भरमार है। हर नाम पर अटकलें हैं, और हर अटकल के पीछे अपने-अपने राजनीतिक गणित हैं। राजनीतिक पंडित अपनी-अपनी थ्योरी पेश कर रहे हैं लेकिन असल अध्यक्ष कौन होगा ये तो वक्त ही बताएगा। बहरहाल पॉसिबिलिटीज क्या-क्या हैं वो हम आपको बता देते हैं।
मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह का तीन साल का कार्यकाल 24 अप्रैल को पूरा हो गया है। अब उन्हें हटाकर नया अध्यक्ष बनाने की तैयारी है। ये लगभग तय माना जा रहा है कि अब होलीलॉज का दबदबा कुछ कम होगा और कांग्रेस अध्यक्ष पद किसी और को दिया जाएगा। हालांकि इस बात से वीरभद्र परिवार कितना नाखुश होगा वो मसला अलग है मगर किन लोगों के नाम चर्चा में हैं, अभी उस पर बात करते हैं।
चर्चा में पहला नाम है विनोद सुल्तानपुरी का। सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस हाईकमान इस बार अध्यक्ष पद किसी एससी या एसटी समुदाय के नेता को सौंपना चाहता है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू खुद क्षत्रिय हैं, ऐसे में संतुलन साधने के लिए पार्टी एक एससी चेहरे की तलाश में है।
इसी समीकरण में सबसे प्रबल नाम सामने आ रहा है, विनोद सुल्तानपुरी का। 2022 में पहली बार विधायक बने सुल्तानपुरी, पूर्व सांसद केडी सुल्तानपुरी के बेटे हैं और पार्टी संगठन में लंबे समय से सक्रिय रहे हैं। यूथ कांग्रेस से लेकर प्रदेश कांग्रेस में उन्होंने ज़मीनी स्तर पर काम किया है। वो सुक्खू के करीबी माने जाते हैं, लेकिन उनके पिता होलीलॉज खेमे से भी जुड़े रहे हैं, इसलिए दोनों गुटों को उनसे फिलहाल परहेज़ नहीं है।
अगली चर्चा उपमुख्यमंत्री को लेकर है। सूत्र बताते हैं कि प्रदेश कांग्रेस के कुछ नेताओं ने मुकेश को कैबिनेट से ड्रॉप करके पार्टी अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव हाईकमान के समक्ष रखा है। बीते कुछ समय से सुक्खू सरकार और अग्निहोत्री के बीच मनमुटाव की खबरें लगातार आ रही हैं।
डिपार्टमेंटल फैसलों में दखल, और उपमुख्यमंत्री की नाराज़गी अब सोशल मीडिया तक आ चुकी है। हाल ही में उन्होंने पोस्ट किया — "साजिशों का दौर शुरू, झूठ के पांव नहीं होते।" हालांकि अगर उन्हें ड्यूल रोल दिया जाए, यानी उपमुख्यमंत्री भी रहें और अध्यक्ष भी, तो शायद वो मान भी जाएं।
अगली चर्चा है किसी मंत्री को ड्रॉप कर अध्यक्ष बनाने की। इस फॉर्मूले में सबसे चर्चित नाम है अनिरुद्ध सिंह का। कसुम्पटी से तीसरी बार विधायक, पहली बार मंत्री और सुक्खू के बेहद करीबी। सूत्र बताते हैं कि सीएम सुक्खू उन्हें कैबिनेट से ड्रॉप करके प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहते हैं, क्योंकि सुक्खू कैबिनेट में अभी पूरी तरह शिमला संसदीय क्षेत्र का बोलबाला है। इस वजह से कांगड़ा और मंडी संसदीय क्षेत्र को कैबिनेट में जगह नहीं मिल पाई। इससे क्षेत्रीय असंतुलन को दुरुस्त करने का प्रयास भी होगा।
इनके अलावा विधायकों में ठियोग के MLA कुलदीप राठौर, अर्की से संजय अवस्थी, भोरंज से सुरेश कुमार और मंडी से चंद्रशेखर का नाम भी चर्चा में है। ठियोग से कांग्रेस विधायक कुलदीप राठौर को कांग्रेस हाईकमान की पसंद माना जा रहा है। मगर राठौर खुद ही इसके लिए तैयार नहीं हैं और अध्यक्ष बनने से कई बार इनकार कर चुके हैं। माहिर मानते हैं कि संगठन की खस्ता हालत को देखकर राठौर इस ज़िम्मेदारी से मुकर रहे हैं। दरअसल सरकार में आने के बावजूद कांग्रेस कार्यकर्ताओं के काम नहीं हो पा रहे हैं। पार्टी कार्यकर्ता सरकार और बड़े नेताओं से खूब नाराज़ चल रहे हैं। प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह और राठौर कई दफे ये मुद्दा सरकार के सामने उठा चुके हैं मगर अब तक कुछ हुआ नहीं। कार्यकर्ताओं की नाराज़गी बढ़ती देख ही राठौर इस पद को स्वीकार करने से इंकार कर रहे हैं।
वहीं अर्की से विधायक संजय अवस्थी भी सुक्खू के करीबी माने जाते हैं और अध्यक्ष पद के लिए उनका नाम मुख्यमंत्री की ओर से प्रस्तावित किया गया है। कहा जाता है कि अगर मुख्यमंत्री की चली तो अध्यक्ष अवस्थी ही होंगे। और उस परिस्थिति में संगठन और सरकार दोनों पर मुख्यमंत्री हावी होंगे। हालांकि अन्य गुटों की सहमति उन्हें नहीं मिलेगी।
फिलहाल हाईकमान की ओर से कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है, लेकिन माहौल यही बता रहा है कि बहुत जल्द संगठन में बड़ा फेरबदल देखने को मिल सकता है। बता दें कि कांग्रेस के लिए यह सिर्फ अध्यक्ष के चयन का सवाल नहीं है, यह पूरे पार्टी के आंतरिक संतुलन, गुटीय राजनीति और भविष्य के चुनावी समीकरणों से जुड़ा मुद्दा है। कौन अध्यक्ष होगा और कौन नहीं — यह सब अब दिल्ली की रणनीतिक सोच पर निर्भर करेगा।