वो स्कैंडल जिसने बदल कर रख दी पंडित सुखराम की सियासत!

तारीख थी 8 अगस्त 1996... पंडित सुखराम का नाम टेलीकॉम घोटाले में सामने आया था। सीबीआई ने सुखराम, टेलीकॉम विभाग की अधिकारी रुनू घोष, और हरियाणा स्थित कंपनी हरियाणा टेलीकॉम लिमिटेड के मालिक देवेंद्र सिंह चौधरी के खिलाफ मामला दर्ज किया था। 16 अगस्त को सीबीआई की एक टीम उनके दिल्ली के सफदरजंग स्थित आवास पर पहुंची और छापेमारी की। उस वक्त पंडित सुखराम के घर से 2.45 करोड़ रुपये बरामद हुए थे। इसके अलावा, सीबीआई की एक टीम ने सुखराम के हिमाचल प्रदेश के मंडी स्थित बंगले पर भी छापेमारी की थी, जहां से 1.16 करोड़ रुपये मिले थे। पैसे दो संदूकों और 22 सूटकेस में रखे गए थे, जिनमें से अधिकांश सूटकेस पूजा वाले कमरे में थे। सुखराम यह नहीं बता पाए कि इन पैसों का वैध स्रोत क्या था।
80 के दशक में बोफोर्स घोटाले के चलते सत्ता खोने वाली कांग्रेस 90 के दशक में टेलीकॉम घोटाले के कारण फिर विवादों में आ गई। नरसिम्हा राव सरकार में सुखराम के संचार मंत्री रहते हुए यह घोटाला हुआ। इस घोटाले ने न सिर्फ कांग्रेस सरकार को हिला दिया, बल्कि पंडित सुखराम को मंत्री पद और कांग्रेस पार्टी दोनों से हाथ धोना पड़ा। यह घोटाला उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण अध्याय बन गया। इस 5 करोड़ 91 लाख के घोटाले के कारण विपक्षी भाजपा ने 1996 में 10 दिनों तक संसद नहीं चलने दी थी।
सीबीआई की जांच में सामने आया कि केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए हरियाणा टेलीकॉम लिमिटेड (एचटीएल) नामक एक निजी कंपनी को 30 करोड़ रुपये का ठेका दिया, जिसमें 3.5 लाख कंडक्टर किलोमीटर पॉलीथीन इंसुलेटेड जेली फिल्ड (PIJF) केबल की आपूर्ति शामिल थी। इस ठेके के बदले, सुखराम ने एचटीएल के अध्यक्ष देवेंद्र सिंह चौधरी से 3 लाख रुपये की रिश्वत ली।
सुनवाई के दौरान सुखराम ने अदालत में दलील दी कि उनके आवास से बरामद राशि कांग्रेस पार्टी की थी। उन्होंने दावा किया कि यह पैसा जम्मू-कश्मीर में होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी फंड के रूप में इस्तेमाल किया जाना था। हालांकि, तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी ने सीबीआई की पूछताछ में बरामद राशि को पार्टी फंड का हिस्सा मानने से इनकार कर दिया था। इस केस में 16 साल बाद 19 नवंबर 2011 को सीबीआई अदालत ने पंडित सुखराम को पांच साल की सजा सुनाई।