जब हिमाचल के विधायक को हुई थी सजा

हिमाचल प्रदेश की राजनीति में एक किस्सा ऐसा भी है जो किसी भी विधायक के लिए बुरे सपने से कम नहीं होगा। यह वह किस्सा है जब हिमाचल के एक विधायक को अदालत ने हत्या के जुर्म में दोषी ठहराकर कठोर सजा सुनाई। विधायक को सजा भी हुई और विधायकी भी चली गई।
यह कहानी है राकेश सिंघा की। मामला वर्ष 1978 का है, जब राकेश सिंघा हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के छात्र थे। शिमला के अल्फिन लॉज में एक विवाह समारोह के दौरान झड़प हुई, जो बाद में हिंसा में बदल गई। इस झगड़े में एक व्यक्ति की मौत हो गई और सिंघा समेत कुछ अन्य छात्रों पर हत्या और गंभीर रूप से घायल करने के आरोप लगे।
मुकदमा अदालत में चला और वर्ष 1988 में सत्र न्यायालय ने सिंघा को भारतीय दंड संहिता की धारा 304 भाग दो, 325 और 452 के तहत दोषी करार देते हुए पांच वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई।
हालांकि तब तक सिंघा राजनीति में सक्रिय हो चुके थे। वर्ष 1993 में उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी के टिकट पर शिमला से विधानसभा चुनाव जीता और विधायक बने। लेकिन यह कार्यकाल लंबा नहीं चला।
मामले की सुनवाई उच्च न्यायालय में हुई और फिर वर्ष 1996 में सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंची, जहां उनकी सजा को बरकरार रखा गया। इस फैसले के बाद उन्हें विधायक पद से अयोग्य घोषित कर दिया गया। यह हिमाचल प्रदेश की राजनीति में एक दुर्लभ घटना थी जब कोई मौजूदा विधायक अदालत के आदेश के चलते विधानसभा से बाहर हुआ।
इस घटना के बाद राकेश सिंघा की राजनीतिक यात्रा थमी नहीं, लेकिन उस पर एक स्थायी सवालिया निशान जरूर लग गया। उन्होंने लंबे समय तक प्रदेश में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी को जिंदा रखने की कोशिश की और जनहित से जुड़े आंदोलनों में सक्रिय रहे। अंततः वर्ष 2017 में वह ठियोग से दोबारा विधायक चुने गए।
हालांकि वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में सिंघा को हार का सामना करना पड़ा और एक बार फिर वह मुख्य धारा की राजनीति से बाहर हो गए। लेकिन आज भी सिंघा हिमाचल के लोगों खासकर बागवानों की आवाज बने हुए हैं।