रक्कड़ : अपने आत्मबल को न जान कर मन का गुलाम बन ठोकरें खाता हैं इंसान : अतुल कृष्ण महाराज

हाथी तो बहुत बलवान होता है पर अपनी दुर्बलता के कारण अपने से कम ताकत वाले महावत को पीठ पर बैठाकर दर-दर की भीख मांगता रहता है। हम सब की भी कहानी कुछ ऐसी ही है। अपने आत्मबल को न जान कर मन की आकांक्षाओं के गुलाम बन ठोकरें खाते रहते हैं। परमात्मा हमसे दूर नहीं है। इस तथ्य का बोध न होने के कारण ही हम उन्हें दूर एवं अलग समझते हैं। मनुष्य ईश्वर से अनिभिज्ञ है फिर भी अपने को चतुर समझता है। यही उसकी सबसे बड़ी कमी है। उक्त वचन श्रीमद् भागवत कथा के षष्ठम दिवस में परम श्रद्धेय स्वामी अतुल कृष्ण महाराज ने रक्कड़ में व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि प्रभु में लगन लगनी चाहिए तभी साधना सफल होगी। हमारा निश्चय हो जाय कि हम कभी अकेले नहीं हैं, सर्वशक्तिमान प्रभु सदैव हमारे साथ है। धर्म सम्मत जीवन हमें यशस्वी बनाता है जबकि मनमर्जी का व्यवहार परेशानियां एवं मुसीबतें देता है। कीट-पतंगे देखते हैं कि हमारे कितने साथी दीपक की रोशनी में जल मरे फिर भी वह दिए की लौ में अपने को झोंक देता है। ऐसे ही मछली, भ्रमर, मृग एवं हाथी अपनी-अपनी कमजोरियों के कारण विपत्ति मोल ले लेते हैं। सत्संग एवं भगवान की पावन कथा हमें प्रज्ञावान बनाती है। महाराजश्री ने कहा कि हम भगवान की इच्छा में अपनी इच्छा को मिला कर आगे बढ़ेंगे तो अधिक आनंद में रहेंगे। जब तक जिन्दगी है कभी काम से फुर्सत नहीं मिलेगी। इन्हीं उलझनों में हरि भजन के लिए भी समय निकालना पड़ेगा। जो हो रहा है अच्छा हो रहा है, जो होगा अच्छा ही होगा और जो हुआ अच्छा ही हुआ। यदि गीता का यह दिव्य ज्ञान बुद्धि में स्थिर हो सके तो जीवन की सारी खटपट ही मिट जाय। आज कथा में भगवान श्रीकृष्ण की अनेक बाल लीलाएं, महारास, कंस-वध एवं श्रीरुक्मिणि विवाह का प्रसंग सभी ने अत्यंत तन्मयता से सुना। इस अवसर पर अनेक मनमोहक झांकियां निकाली गईं एवं लोगों ने ब्रज की होली का भी आनंद लिया।