सुधार के ब्लूप्रिंट के साथ तैयार है बागवानी मंत्री जगत सिंह नेगी

" जगत सिंह नेगी खुद एक बागवान है और एक आम बागवान की समस्याओं से भलीभांति परिचित है। उम्दा बात ये है कि नेगी खुद व्यवस्था परिवर्तन की जरुरत को मानते है और अपने छोटे से कार्यकाल में ही उन्होंने 'बॉटम टू टॉप' आवश्यक बदलाव करने के संकेत भी दिए है। साफ़गोई से व्यवस्था और तंत्र की खामियों को स्वीकारना और समाधान पर तार्किक चर्चा करना उनसे उम्मीद का बड़ा कारण है। "
बागवानी हिमाचल प्रदेश की आर्थिकी की रीढ़ है। प्रदेश की अकेली सेब अर्थव्यवस्था ही छ हज़ार करोड़ से ज्यादा की है। वहीं अधीनस्थ गतिविधियों का भी बहुत बड़ा बाज़ार है। बागवानी ने निसंदेह प्रदेश को एक दिशा दी है जिससे आर्थिक दशा भी सुधरी है। हिमाचल प्रदेश की जलवायु प्रकृति का वरदान है और प्रदेश में बागवानी को लेकर अथाह संभावनाएं है। सेब के अलावा भी प्रदेश में कई फलों के लिए उपयुक्त वातावरण है। हालांकि कभी मौसम की मार, तो कभी पोस्ट हार्वेस्ट पेश आने वाली समस्याएं बागवानों के सामने बड़ी चुनौती है। पैकिंग, ग्रेडिंग, कोल्ड स्टोरेज, मार्केटिंग हो या फ़ूड प्रोसेसिंग; आज के प्रतिस्पर्धी वैश्विक बाजार में टिकने के लिए हर स्तर पर पेशेवर दृष्टिकोण से कार्य करना अनिवार्यता बन चूका है। हर क्षेत्र में विशेषज्ञता की दरकार है। बड़े बागवानों के लिए तो ये काफी हद तक मुमकिन होता है, किन्तु छोटे बागवानों के लिए बड़ी चुनौती है। ऐसे में सरकारी तंत्र पर ही ये बागवान निर्भर है। दरअसल, सरकार ही इनकी आस है।
कुछ महीने पहले ही व्यवस्था परिवर्तन के वादे के साथ हिमाचल प्रदेश में नई सरकार आई है। पिछली सरकार से जो वर्ग खफा थे उनमें बागवान भी शामिल है और ये वर्ग परिवर्तन का सूत्रधार भी बना। अब प्रदेश में बागवानी विभाग क जिम्मा जगत सिंह नेगी को दिया गया है जो न शरीफ खुद एक बागवान है बल्कि विपक्ष में रहते बागवानों के मुद्दों पर तत्कालीन सरकार के खिलाफ मुखर भी रहे है। सरकार को अभी ज्यादा वक्त नहीं मिला है ऐसे में किसी निष्कर्ष पर निकलना जल्दबाजी जरूर होगा लेकिन बागवानों को लेकर जगत सिंह नेगी का रवैया सकरात्मक जरूर है। बागवानी से जुड़े कई मूल मसलों पर फर्स्ट वर्डिक्ट ने जगत सिंह नेगी से चर्चा की और उनका पक्ष जाना। जगत निगह नेगी खुद एक बागवान है और एक आम बागवान की समस्याओं से भलीभांति परिचित है। उम्दा बात ये है कि नेगी खुद व्यवस्था परिवर्तन की जरुरत को मानते है और अपने छोटे से कार्यकाल में ही उन्होंने 'बॉटम टू टॉप' आवश्यक बदलाव करने के संकेत भी दिए है। साफ़गोई से व्यवस्था और तंत्र की खामियों को स्वीकारना और समाधान पर तार्किक चर्चा करना उनसे उम्मीदों का बड़ा कारण है।
एचपीएमसी है सुधार की धुरी :
हार्टिकल्चर प्रोड्यूस मार्केटिंग एंड प्रोसेसिंग कारपोरेशन ( एचपीएमसी ), ये वो सरकारी उपक्रम है जो करीब पांच दशक पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ वाईएस परमार द्वारा प्रदेश में बागवानों के हितों को सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया था। 10 जून 1974 को विश्व बैंक की सहायता से ये उपक्रम अस्तित्व में आया और इसका मुख्य उद्देश्य था बागवानों को पोस्ट हार्वेस्ट ( तुड़ान ) के बाद की गतिविधियों में सहायता प्रदान करना। विशेषकर 80 के दशक में एचपीएमसी ने आधारभूत संरचना विकसित करने की दिशा में शानदार काम किया। फिर 21 वीं शताब्दी की शुरुआत में एक दौर ऐसा भी आया जब फ़ूड प्रोसेसिंग में कदम रख एचपीएमसी के फ्रूट जूस ने तहलका मचा दिया। पर समय के साथ अव्यवस्था हावी होती गई और बेहतरीन क्वालिटी के बावजूद एचपीएमसी के उत्पादों का मार्किट शेयर
कम होता रहा।
मंत्री जगत सिंह नेगी बेझिझक स्वीकारते है कि एचपीएमसी के प्रोडक्शन प्लांट्स में आज व्यापक बदलाव की आवश्यकता है। आज के गलाकाट प्रतिस्पर्धी दौर में आधुनिक मशीने चाहिए, नई तकनीक चाहिए और व्यावसायिक नजरिया चाहिए। वर्ल्ड बैंक से मिले प्रोजेक्ट पर चर्चा करने पर नेगी ने बेहद साफ़ शब्दों में बताया कि परवाणू प्लांट में जिस पैसे का इस्तेमाल तकनीक और मशीनों पर किये जाना चाहिए था, उस पर बिल्डिंग को प्राथमिकता दी गई। जाहिर है नेगी का निशाना पूर्व सरकार पर था लेकिन असल चुनौती तो अब उनके सामने है।
जगत सिंह नेगी का कहना है कि प्रोसेसिंग में फ्यूचर अब छोटे प्लांट्स का है, इतने बड़े प्लांट्स की जरुरत नहीं है। एचपीएमसी की तकनीक पुरानी है और अब समय कोल्ड प्रेस्ड प्लांट्स का है। पहले कंसन्ट्रेट बनाये जाते थे और फिर जूस तैयार होता था, लेकिन अब सीधे जूस तैयार होते है। बदलाव समय की जरुरत है। बागवानी मंत्री का स्पष्ट कहना है कि ये सरकार की प्राथमिकता में है और सुनहरा दौर वापस लाने में सरकार कोई कसर नहीं छोड़ेगी।
बागवानी मंत्री जगत सिंह नेगी कहते है कि मुंबई, चेन्नई, दिल्ली सहित देश के कई मेट्रो शहरों में एचपीएमसी के पास सम्पतियाँ है, जो आय बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभा सकती है। प्रदेश में भी एचपीएमसी के पास कई सम्पतियाँ है। जरुरत है तो इनका उचित रखरखाव और आवश्यक बदलाव कर इनके सही इस्तेमाल करने की।
10 जून 1974 को विश्व बैंक की सहायता से एचपीएमसी की स्थापना हुई थी। इसका मुख्य उद्देश्य बागवानों के लिए पोस्ट हार्वेस्ट (तुड़ाई) सुविधाओं को उलब्ध करवाना था, ताकि बागवानों की आर्थिकी मजबूत हो सके। करीब अपने पांच दशक के सफर में एचपीएमसी ने बागवानों के हित में कई अहम कार्य किये है, विशेषकर शुरूआती सालों में। तुड़ान के बाद फलों की पैकिंग, ग्रेडिंग, कोल्ड स्टोरेज, मार्केटिंग और फ़ूड प्रोसेसिंग की दिशा में कई बड़े निर्णय हुए और आधारभूत ढांचा भी निरंतर मजबूत हुआ। पर बीते कुछ समय में एचपीएमसी की कार्यशैली को लेकर निरंतर सवाल उठे है। वर्तमान में बागवानी मंत्री जगत सिंह नेगी भी स्वीकार करते है कि सुधार की दरकार है।
आरोप : एक कंपनी को दिया दस साल का ठेका !
आज के दौर में किसी भी उत्पाद की पैकिंग और सही मार्केटिंग बेहद जरूरी है और ई कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स की उपयोगिता पर कोई सवाल नहीं है। पर अगर एचपीएमसी के उत्पादों को देखे तो ब्रांड वैल्यू के बावजूद ये पिछड़े हुए दीखते है। बागवानी मंत्री जगत सिंह नेगी भी इस कमी को स्वीकरते है। नेगी कहते है कि पूरी व्यवस्था बिगड़ी हुई है और इसे ठीक करने में वक्त लगेगा। मसलन पैकिंग के मामले पर वो कहते है कि पिछली सरकार ने जूस के टेट्रा पैक बनने के ठेका एक निजी कंपनी को दस साल के लिए दे
दिया। किसी को लाभ पहुँचाने के लिए एक दो पेज का एग्रीमेंट कर लिया गया। अब मामला कोर्ट में है। ऐसे कई निर्णयों के चलते व्यवस्था में जरूरी बदलाव करना जटिल है, फिर भी वे हरसंभव विकल्प पर कार्य कर रहे है।
उद्देश्य को लेकर स्पष्टता :
बागवानी मंत्री जगत सिंह नेगी एचपीएमसी की भूमिका को लेकर बिलकुल स्पष्ट है। जब उनसे पूछा गया कि वे राजस्व मंत्री भी है और क्या एचपीएमसी सरकार की आय बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाएगा, तो नेगी दो टूक कहते है कि एचपीएमसी का उदेश्य व्यपार करना नहीं है। इसका उद्देश्य बागवानों को प्रोसेसिंग, स्टोरेज और अन्य वलूर एडेड सुविधाएँ मुहैया करवाना, उन्हें सस्ता मटेरियल देना। जगत सिंह नेगी मानते है कि यदि बागवानों कि आर्थिकी मजबूत होगी और अप्रत्यक्ष तौर पर प्रदेश का राजस्व बढ़ना भी स्वाभविक होगा। अर्थव्यवस्था का पहिया इसी तरह चलता है।
यूनिवर्सल कार्टन और प्रति किलो भाड़ा :
हिमाचल सरकार ने हाल ही में बागवानों का एक बड़ा मसला हल किया है l हिमाचल का सेब अब कार्टन के हिसाब से नहीं बल्कि किलो के हिसाब से बिकने वाला है l कृषि सचिव ने इस बाबत अधिसूचना भी जारी कर दी है जिसके मुताबिक, बागवान एक पेटी में अधिकतम 24 किलो सेब ही भर सकेंगे l इस कदम से अब सेब बागवान बिचौलियों के शोषण से बच सकेंगे l इससे पहले बिचौलियों के दबाव में सेब बागवानों को एक पेटी में कभी 28 तो कभी 30 किलो सेब डालने पड़ रहे थे l पेटी में सेब की मात्रा बढ़ाने के बावजूद बागवानों को पेटी के हिसाब से ही दाम मिल रहा था l ऐसे में अब प्रति किलोग्राम दाम मिलने से बागवानों को फायदा होगा l इस समस्या का समाधान सरकार ने किया है मगर बागवान इसके बाद अब फ्रेट को लेकर चिंतित थे l हालांकि अब सरकार ने बागवानों की ये समस्या भी दूर कर दी है l बागवानों को ट्रांसपोर्टरों के शोषण से बचाने के लिए सरकार ने वजन के आधार पर सेब की ढुलाई का निर्णय लिया है l
इस पर जगत सिंह नेगी ने कहा की जल्द सरकार की ओर से उपायुक्तों को आदेश जारी किए जाएंगे। उपमंडल स्तर पर संबंधित एसडीएम यह व्यवस्था लागू करेंगे और मनमानी करने वालों पर कार्रवाई करेंगे। अब तक प्रदेश में सेब ढुलाई की दरें पेटी के आधार पर तय होती हैं। हिमाचल प्रदेश पैसेंजर एंड गुड्स टैक्सेशन एक्ट 1955 के तहत प्रति किलोमीटर प्रतिकिलो के आधार पर सेब ढुलाई का किराया तय किया जाएगा। बागवानी मंत्री ने कहा की ये सुनिश्चित किया जाएगा कि बागवानों को उपज का सही दाम मिले और ट्रांसपोटेशन के नाम पर बागवानों का शोषण न हो।
इम्पोर्ट ड्यूटी और जीएसटी को लेकर केंद्र पर निशाना :
बाहर से आने वाले सेब पर इम्पोर्ट ड्यूटी 100 फीसदी न होना भी बागवानों क लिए बड़ी समस्या बना हुआ है l ये यूँ तो केंद्र सरकार का मसला है मगर बागवानी मंत्री का कहना है कि वे इसे लेकर काफी गंभीर है व केंद्र से इसके बारे बात करेंगे l जगत सिंह नेगी का कहना है की केंद्र सरकार 2014 से लेकर इम्पोर्ट ड्यूटी बढ़ाने की बात कहती है मगर अब तक सरकार ने ऐसा नहीं किया है। वो कहते है की पहले सिर्फ 3 या 4 देशों से सेब इम्पोर्ट किया जाता था, मगर अब करीब दर्जन देश है जहाँ का सेब भारत आ रहा है। अफगानिस्तान के रास्ते भी कुछ देशों का सेब भारत आता हैl हम लगातार इस इम्पोर्ट को कम करने की मांग कर रहे है। उन्होंने कहा कि केंद्र से जुड़े और भी कई मसले है। वे मानते है कि बागवानी से जुड़ी कई वस्तुओं पर केंद्र सरकार ने जीएसटी 18 प्रतिशत कर बागवानों की कमर तोड़ने का काम किया है l मार्किट इंटरवेंशन स्कीम के तहत दाम घटा दिए गए, जो कि सही नहीं है l
सेब राज्य नहीं फल राज्य बनाना है :
हिमाचल में जितनी आर्थिकी सेब से आती है उतनी ही अन्य फलों से भी आ सकती है, हालाँकि बाकि फलों को उतनी तवज्जो मिलती नहीं दिखती l अन्य फलों की पैदावार बढ़ने से बागवानों की आर्थिकी दोगुनी हो सकती है जिसपर सरकार काम कर रही है l जगत नेगी बताते है कि सरकार शिवा प्रोजेक्ट के तहत ट्रॉपिकल क्षेत्रों जैसे बिलासपुर, मंडी, ऊना, हमीरपुर, काँगड़ा, में सिट्रस फ्रूट्स की पैदावार पर फोकस कर रही है l इन क्षेत्रों में सरकार अमरुद, अनार जैसे फलों पर बड़े प्रोजेक्ट्स ला रही है l इसके मैन प्रोजेक्ट का एमओयू एशियाई डेवलपमेंट बैंक के साथ होना है जिसमें 6000 हेक्टेयर का टारगेट रखा गया है।
राज्य में सब-ट्रॉपिकल हॉर्टिकल्चर, इरिगेशन एंड वैल्यू एडिशन (HP-SHIVA) प्रोजेक्ट का पायलट चरण चल रहा है। इसका मकसद हिमाचल को फल राज्य के तौर पर विकसित करना है। ये सब - ट्रॉपिकल फलों की खेती को बढ़ावा देगा। राज्य में बीते ढाई सालों से इस प्रोजेक्ट का पायलट चरण लागू है। इसके अंतर्गत 4 जिलों के तकरीबन 17 क्लस्टर में विभिन्न सब-ट्रॉपिकल फलों के बगीचे लगाए गए हैं। इनसे बागवानों को अच्छी आमदनी हो रही है। शिवा परियोजना में फसल तैयार करने से लेकर मंडी तक पहुंचाने के लिए संकल्पना की गई है। यानी बगीचा लगाने के लिए प्लांटिंग मटेरियल देने, सिंचाई टैंक बनाने, ड्रिप-इरिगेशन लगाने, अच्छी मंडियां बनाने, फसल को जंगली जानवरों से बचाने के लिए फैंसिंग लगाने के लिए अनुदान देने की व्यवस्था की गई है। बगीचों में सिंचाई की सुविधा के लिए टैंक बनाने का काम जल शक्ति महकमा कर रहा है। बागवानी मंत्री इस पहल की सफलता को लेकर आश्वस्त है और नतीजे उम्मीद मुताबिक आएं तो हिमाचल की पहचान सिर्फ सेब राज्य की नहीं बल्कि फल राज्य की होगी।
व्यापक सुधार को सरकार प्रतिबद्ध
बागवानी मंत्री जगत सिंह नेगी का कहना है कि सरकार बागवानों की आय बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है और एचपीएमसी में हर स्तर पर व्यापक सुधार पर काम कर रही है l सरकार द्वारा नए प्लांट्स, नए सीए स्टोर्स बनाए जाएंगे l पुराने प्लांट्स को ठीक किया जाएगा व पराला में 100 करोड़ का एक नया प्लांट इस सीजन में तैयार किया जाएगा जिसकी क्रशिंग कैपेसिटी 22 टन प्रतिदिन होगी l वहीं एप्पल वाइन प्रोडक्शन पर भी फोकस किया जाएगा l जगत सिंह नेगी नई सोच और नए विजन के साथ आगे बढ़ने पर जोर दे रहे है और उनका मानना है कि एचपीएमसी के प्रोडक्ट्स की मार्केटिंग पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए l
ताजा फलों की मार्केटिंग के अलावा एचपीएमसी की कार्यसूची में फ़ूड प्रोसेसिंग भी शामिल था। सरप्लस उत्पादन का जूस या अन्य उत्पाद बनाकर उसे मार्किट में बेचे जाने की दिशा में एचपीएमसी ने क्रांतिकारी कदम उठाया था। एक दौर था जब एचपीएमसी के फ्रूट जूस न केवल देशभर में लोकप्रिय थे बल्कि विदेशों में भी सप्लाई हो रहे थे। आज भी एचपीएमसी फ़ूड प्रोसेसिंग कर रहा है, लेकिन निसंदेह बीते दो दशक से इसका ग्राफ लगातार गिरा है। समय के साथ एचपीएमसी ने न टेक्नोलॉजी में सुधार किया और न ही मार्केटिंग तंत्र में। हालांकि आज भी एचपीएमसी एक प्रतिष्ठत ब्रांड है लेकिन लचर व्यवस्था के चलते काफी पीछे जरूर रह गया है।