शिमला लोकसभा सीट भाजपा के लिए 'अग्निपथ'..

सोलन नगर निगम चुनाव, भाजपा हारी। अर्की और जुब्बल कोटखाई उपचुनाव, भाजपा हारी। विधानसभा चुनाव में शिमला संसदीय क्षेत्र की 17 में से सिर्फ 14 सीटें भाजपा हारी, और अब शिमला नगर निगम चुनाव में भी भाजपा को शिकस्त मिली। बीते दो साल में शिमला संसदीय क्षेत्र में भाजपा के लिए कुछ भी अच्छा नहीं घटा है। पार्टी सिंबल पर हुआ हर चुनाव भाजपा हारी है। वो भी तब तक प्रदेश अध्यक्ष की कमान शिमला संसदीय क्षेत्र के सांसद सुरेश कश्यप के हाथ में थी। नतीजे बयां कर रहे है कि शिमला संसदीय क्षेत्र में मिशन 2024 भाजपा के लिए अग्निपथ है। वहीँ सांसद सुरेश कश्यप के लिए भी राह आसान नहीं होने वाली।
हिमाचल प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के लिए कांग्रेस को इस बार सबसे ज़्यादा लीड शिमला संसदीय क्षेत्र से मिली है। 17 विधानसभा सीटों में से 13 सीटों पर कांग्रेस का परचम लहराया है। हालाँकि वर्तमान में इस सांसदीय क्षेत्र से सांसद भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप है। ऐसे में जाहिर है कि शिमला सांसदीय क्षेत्र में भाजपा की शिकस्त का ठीकरा उनके सर ही फूटा है। विधानसभा चुनाव के बाद शिमला नगर निगम पर भी भाजपा को करारी हार मिली है। अब बैक टू बैक झटके खा रही भाजपा की राह 2024 के लोकसभा चुनाव में भी आसान नहीं होने वाली है। ऐसे में ये देखना रोचक होगा कि 2024 में शिमला संसदीय क्षेत्र में इस दफा भाजपा किस रणनीति पर आगे बढ़ेगी। यहाँ ये भी जहन में रखना होगा कि सत्ता परिवर्तन के साथ ही प्रदेश के सियासी समीकरण बदल चुके है, ऐसे में लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा को फूंक -फूंक कर कदम बढ़ाना होगा।
भाजपा के संभावित उम्मीदवारों की लिस्ट में मौजूदा सांसद सुरेश कश्यप और पूर्व सांसद वीरेंद्र कश्यप के अलावा भी कई नाम है। दरअसल 2009 के लोकसभा चुनाव में वीरेंद्र कश्यप ने ही दशकों बाद शिमला संसदीय क्षेत्र में कमल खिलाया था और 2014 मे भी वीरेंद्र कश्यप ही यहाँ से सांसद बने थे। ऐसे में वीरेंद्र कश्यप एक मजबूत दावेदार माने जा रहे है। इसके अलावा डॉ राजीव सैजल का नाम भी अभी से चर्चा में है। डॉ राजीव सैजल पूर्व जयराम सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे है, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का मुँह देखना पड़ा। बावजूद इसके सैजल की दावेदारी कमतर नहीं आंकी जा सकती।
कांग्रेस में कौन होगा चेहरा ?
विधानसभा चुनाव की जीत से उत्साहित कांग्रेस अभी से इलेक्शन मोड में नज़र आ रही है। यूँ तो शिमला संसदीय क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ माना जाता है, लेकिन पिछले तीन लोकसभा चुनाव में यहाँ कांग्रेस लगातार हारी है। अब तख़्त पलटने के लिए यहाँ कांग्रेस को भी किसी मजबूत चेहरे की दरकार है। कांग्रेस के उम्मीदवारों कि लिस्ट में पूर्व सांसद केडी सुल्तानपुरी के बेटे विनोद सुल्तानपुरी भी शामिल माने जा रहे है। विनोद सुल्तानपुरी इस दफा पूर्व मंत्री डॉ राजीव सैजल को हराकर विधानसभा पहुंचे है और लोकसभा चुनाव के लिए एक दमदार चेहरा माने जा रहे है। इसके अलावा इस लिस्ट में कई और नाम शामिल है जो कांग्रेस के संभावित उम्मीदवार हो सकते है। मोहन लाल ब्राक्टा, विनय कुमार भी इस फेहरिस्त में है। एक और नाम जिसका जिक्र करना जरूरी है वो नाम है कर्नल धनीराम शांडिल, जो पहले भी दो बार लोकसभा चुनाव जीत चुके है।
सुक्खू मंत्रिमंडल में 5 मंत्री शिमला संसदीय क्षेत्र से
जिला शिमला के कोटखाई के विधायक रोहित ठाकुर, कुसुम्पटी के विधायक अनिरूद्ध सिंह और शिमला ग्रामीण के विधायक विक्रमादित्य सिंह को सुक्खू कैबिनेट में शामिल किया गया है, जबकि रोहड़ू के विधायक मोहन लाल ब्राक्टा को सीपीएस बनाया गया है। 5 में से 4 सीटें कांग्रेस को देने वाले सोलन जिला से सोलन के विधायक कर्नल धनीराम शांडिल मंत्री बने हैं तो अर्की के विधायक संजय अवस्थी और दून के विधायक रामकुमार चौधरी को सीपीएस का पद दिया गया है। वहीँ सिरमौर जिला से शिलाई के विधायक हर्षवर्धन चौहान मंत्री बने हैं।
शिमला संसदीय सीट का इतिहास
इतिहास पर नज़र डाले तो अब तक 2009, 2014 और 2019 में ही भाजपा को इस सीट पर जीत मिली है। इस सीट पर कांग्रेस के कृष्णदत्त सुल्तानपुरी के नाम लगातार छह बार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड रहा है।1977 में भारतीय लोक दल के प्रत्याशी बालकराम ने जीत हासिल की थी, लेकिन 1980 से 1998 तक लगातार कृष्णदत्त सुल्तानपुरी ने इस सीट पर कांग्रेस को ही काबिज रखा फिर 1999 में कर्नल धनीराम शांडिल ने हिमाचल विकास कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। 2004 में कर्नल शांडिल कांग्रेस के टिकट पर फिर मैदान में उतरे और जीत दर्ज करने में कामयाब रहे। 200 9 में इतिहास बदला और पहली दफा इस सीट पर भाजपा काबिज़ हुई। तब भाजपा से वीरेंद्र कश्यप ने जीत दर्ज कर ये सीट भाजपा की झोली में डाली। 2014 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर वीरेंद्र कश्यप भाजपा की सीट बचाने में कामयाब रहे और 2019 में भाजपा के सुरेश कश्यप ने फिर शिमला लोकसभा सीट पर भाजपा को ही जीत दिलाई।
एससी के लिए आरक्षित है शिमला संसदीय सीट
वर्तमान में शिमला संसदीय सीट एससी रिजर्व्ड सीट है। दरअसल 1967 में शिमला संसदीय एससी सीट बनी है। इससे पहले यह सीट मंडी-महासू लोकसभा सीट हुआ करती थी। फिर दूसरे चुनाव में इसे महासू कर दिया गया। 1962 में प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीरभद्र सिंह महासू सीट से अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़े थे और भारी मतों से जीत दर्ज कर सांसद बने थे।
विधानसभा चुनाव में 13 सीटों पर कांग्रेस काबिज
शिमला संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत 17 विधानसभा सीटें आती है। जिला सोलन और सिरमौर की सभी पांच -पांच विधानसभा सीट और जिला शिमला की 7 विधानसभा सीटें इस संसदीय क्षेत्र में आती है। अगर 2022 के विधानसभा के चुनावी परिणामों पर नजर डाले तो 17 विधानसभा सीटों में से 13 पर कांग्रेस को जीत मिली है, जबकि केवल 3 विधानसभा सीट भाजपा के खाते में गई है और एक विधानसभा सीट पर निर्दलीय ने बाजी मारी है। ये निश्चित तौर पर भाजपा के लिए चिंता का सबब है।
-अब तक के सांसद
1977 बालकराम भारतीय लोक दल
1980 कृष्णदत्त सुल्तानपुरी कांग्रेस
1984 कृष्णदत्त सुल्तानपुरी कांग्रेस
1989 कृष्णदत्त सुल्तानपुरी कांग्रेस
1991 कृष्णदत्त सुल्तानपुरी कांग्रेस
1996 कृष्णदत्त सुल्तानपुरी कांग्रेस
1998 कृष्णदत्त सुल्तानपुरी कांग्रेस
1999 धनीराम शांडिल हिमाचल विकास कांग्रेस
2004 धनीराम शांडिल कांग्रेस
2009 वीरेंद्र कश्यप भाजपा
2014 वीरेंद्र कश्यप भाजपा
2019 सुरेश कश्यप भाजपा
-शिमला संसदीय सीट पर जिला सोलन के उम्मीदवारों का दबदबा
इतिहास तस्दीक करता है कि शिमला सांसदीय सीट पर जिला सोलन के उम्मीदवारों का दबदबा रहा है। केवल दो ही मौके ऐसे रहे है जब शिमला संसदीय सीट पर सांसद जिला सोलन से न रहा हो। 1977 में जिला शिमला के बालक राम कश्यप ने शिमला संसदीय सीट पर जीत दर्ज की और 2019 में जिला सिरमौर से सुरेश कश्यप ने। 1980 से 1998 तक लगातार कृष्णदत्त सुल्तानपुरी शिमला से सांसद रहे है। कृष्णदत्त सुल्तानपुरी जिला सोलन के कसौली विधानसभा क्षेत्र से ताल्लुख रखते थे। 1999 में हिमाचल विकास कांग्रेस के प्रत्याशी धनीराम शांडिल ने इस सीट को फतह किया और 2004 में कांग्रेस के टिकट पर फिर जीत हासिल की। वे भी जिला सोलन से ही है। वहीँ शिमला संसदीय सीट को पहली दफा भाजपा की झोली में डालने वाले वीरेंद्र कश्यप भी जिला सोलन से ही संबंध रखते है।
उम्मीदवार पर मोदी फैक्टर को तवज्जो !
निसंदेह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा के लिए सबसे बड़े 'वोट कैचर' है और बीते दो लोकसभा चुनाव भी पार्टी ने उन्हीं के चेहरे पर जीते है। जनता ने उम्मीदवार पर मोदी नाम को तवज्जो दी है जो भाजपा की एकतरफा जीत का कारण बना है। बेशक माहिर मानते है कि दस साल की सत्ता के बाद भाजपा को कुछ एंटी इंकम्बैंसी का सामना करना पड़ सकता है लेकिन अगर मोदी लहर चलती है तो कांग्रेस के अरमानों पर फिर पानी फिर सकता है। बहरहाल मोदी फैक्टर पर सबकी निगाह रहने वाली है।