शिमला: हिमाचल के दो जजों को सुप्रीम राहत, रद्द नहीं होंगी नियुक्तियां

सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश ज्युडिशियल सर्विस के तहत चयनित दो सिविल जजों को बड़ी राहत देते हुए उनकी नियुक्तियां रद्द करने से इनकार कर दिया। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने दोनों जजों की नियुक्तियों को चुनौती देने वाली याचिकाओं को स्वीकारते हुए उनके चयन और नियुक्ति को रद्द कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि हाईकोर्ट के फैसले को कानूनी रूप से सही ठहराया, परंतु उक्त जजों की 9 साल से अधिक की लंबी सेवा संबंधी तथ्य को ध्यान में रखते हुए उन्हें न्यायिक सेवा से बाहर करना उचित नहीं समझा।
दरअसल हिमाचल हाईकोर्ट ने इन सिविल जजों की नियुक्तियों को अवैध ठहराते हुए उनकी खारिज कर दिया था। इस फैसले को दोनों प्रार्थियों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने सिविल जज विवेक कायथ और आकांक्षा डोगरा की नियुक्तियों को रद्द करने का फैसला सुनाया था। दोनों जज वर्ष 2013 बैच के एचपीजेएस अधिकारी थे। मामलों का निपटारा करते हुए कोर्ट ने पाया था कि दोनों जजों की नियुक्तियां उन पदों के खिलाफ की गई, जिनका कोई विज्ञापन नहीं दिया गया।
बिना विज्ञापन के हुई थी भर्ती
1 फरवरी, 2013 को प्रदेश लोक सेवा आयोग ने सिविल जजों के 8 रिक्त पदों को भरने के लिए विज्ञापन के माध्यम से आवेदन आमंत्रित किए। इनमें 6 पद पहले से रिक्त थे और दो पद भविष्य में रिक्त होने थे। आयोग ने अंतिम परिणाम निकालकर कुल 8 अभ्यर्थियों की नियुक्तियों की अनुशंसा सरकार से की थी। इस बीच प्रदेश में दो सिविल जजों के अतिरिक्त पद सृजित किए गए। लोक सेवा आयोग ने इन दो पदों को सिलेक्ट लिस्ट से भरने की प्रक्रिया आरंभ की और विवेक कायथ और आकांक्षा डोगरा को नियुक्ति देने की अनुशंसा की। सरकार ने इन्हें नियुक्तियां भी दे दी थीं। लेकिन बिना विज्ञापन के इन पदों को भरने पर कोर्ट ने इन नियुक्तियों को रद्द कर दिया और हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग को चेताया कि भविष्य में ऐसी लापरवाही न करें।
सुप्रीम कोर्ट ने पलटा हाईकोर्ट का फैसला
हिमाचल हाईकोर्ट ने दोनों जजों की नियुक्तियों को रद्द करते हुए कहा था कि इन नए सृजित पदों को कानूनन विज्ञापित किया जाना जरूरी था, ताकि अन्य योग्यता रखने वाले अभ्यर्थियों को इन पदों के लिए प्रतिस्पर्धा का मौका भी मिलता। कोर्ट ने फैसले में स्पष्ट किया था कि इन जजों की नियुक्तियां रद्द होने से इन पदों को वर्ष 2021 की रिक्तियां माना जाए और इन्हें भरने की प्रक्रिया कानून के अनुसार की जाए। अब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस फैसले को पलट दिया है।