श्यामा शर्मा: वो महिला नेता जो धारा के विरुद्ध तैरती रही

श्यामा शर्मा... हिमाचल की वह अकेली महिला नेता, जो आपातकाल के दौर में जेल गईं। जब पूरे देश में डर और चुप्पी का सन्नाटा था, तब श्यामा ने न सिर्फ आवाज़ उठाई, बल्कि जेपी आंदोलन की सक्रिय सिपाही बनकर सत्ता से टकराईं। वह कहती थीं, "मैं अपने हिस्से की लड़ाई स्वयं लड़ती हूं और हमेशा धारा के विरुद्ध लड़ने का सामर्थ्य रखती हूं।" वह न किसी राजनीतिक विरासत की मोहताज थीं, न किसी पहचान की। उन्होंने अपनी पहचान खुद बनाई, संघर्ष से, साहस से, संकल्प से।
उनकी कहानी शुरू होती है वर्ष 1948 में, सिरमौर के छोटे से गांव सरोगा से। किसान और जमींदार पंडित दुर्गादत्त की बेटी श्यामा बचपन से ही अलहदा थीं। जब बाकी लड़कियां गुड़ियों से खेलती थीं, श्यामा कानून, समाज और राजनीति की किताबों में डूबी रहती थीं। पढ़ाई के लिए उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय, फिर इलाहाबाद और आगरा तक का सफर तय किया। विधि स्नातक की डिग्री ली और जब घर लौटीं, तो सबने सोचा अब ये वकील बनेगी। लेकिन श्यामा की मंजिल कुछ और थी, क्रांति का रास्ता।
साल 1975, देश में आपातकाल लग चुका था। लोकतंत्र की आवाज़ दबा दी गई थी, अखबारों की सुर्खियां सेंसर थीं और डर हर दिशा में फैला था।
लेकिन श्यामा चुप नहीं बैठीं। वह जेपी आंदोलन से जुड़ीं और खोदरी माजरी यमुना हाइड्रो प्रोजेक्ट में हो रहे मजदूरों के शोषण के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। यहां छह महीने तक मजदूरों से बिना वेतन काम करवाया जा रहा था। श्यामा ने विरोध शुरू किया, भाषण दिए, लोगों को संगठित किया और सरकार की नजरों में आ गईं। जब पुलिस उन्हें पकड़ने खोदरी माजरी पहुंची, तो श्यामा उफनती टोंस नदी को तैर कर पार कर गईं।
वह उत्तराखंड के जौनसार बाबर पहुंचीं, फिर दिल्ली और इलाहाबाद में छिप छिपकर आंदोलन चलाती रहीं। पूरे एक साल भूमिगत रहीं, लेकिन आवाज़ बंद नहीं हुई। पिता की मृत्यु पर जब वह घर लौटीं, तो सरकार ने उन पर मीसा और डीआईआर जैसी कठोर धाराएं लगा दीं। उन्हें गिरफ्तार कर कई दिन लॉकअप में रखा गया। फिर उन्हें भेजा गया सेंट्रल जेल नाहन, जहां वह शांता कुमार, जगत सिंह नेगी, महेंद्र नाथ सोफत और मुन्नीलाल वर्मा के साथ जेल में रहीं, लेकिन अकेली महिला आंदोलनकारी वही थीं।
जेल में रहते हुए भी उन्होंने आवाज़ उठाना नहीं छोड़ा। वह जनता की नेता बनीं, इतिहास की मिसाल भी। वर्ष 1977 में देश को आपातकाल से मुक्ति मिली। श्यामा ने नाहन से चुनाव लड़ा और सिरमौर की पहली महिला विधायक बन गईं। शांता कुमार की सरकार में उन्हें राज्य मंत्री बनाया गया। बाद में 1980 और 1990 में वह दोबारा विधायक बनीं। वर्ष 1982 से 1984 तक लोक लेखा समिति की अध्यक्ष रहीं और वर्ष 2000 से 2003 तक योजना बोर्ड की उपाध्यक्ष रहीं।