किसी को मज़बूत तो किसी को मजबूर करेंगे नगर निगम शिमला चुनाव के नतीजे

ये उम्मीदों का चुनाव है, ये जन अपेक्षाओं का चुनाव है, ये सामर्थ्य का चुनाव है और ये चुनाव है शक्ति के आंकलन का। शिमला नगर निगम चुनाव के नतीजे बहुत कुछ तय करेंगे, कहीं ये हवा तय करेंगे, तो कहीं ये दिशा तय करेंगे। ये नतीजे किसी को और मजबूत कर सकते है, तो किसी को मजबूर। ये ही कारण है कि कांग्रेस हो या भाजपा, दोनों इस चुनाव में पूरी ताकत झोंकते दिखे है। अहम् बात ये है कि राजनैतिक दलों के लिए तो ये जीत जरूरी है ही, कई चेहरों की सियासी रौनक भी इन्हीं नतीजों पर निर्भर करेगी।
शिमला नगर निगम का चुनाव विधानसभा चुनाव के बाद पहला और लोकसभा चुनाव से पहले संभवतः आखिरी महत्वपूर्ण चुनाव है। जाहिर है ऐसे में दोनों दल जीत की ऊर्जा के साथ आगे बढ़ना चाहेंगे। नई - नई सत्तासीन हुई कांग्रेस जहाँ दस साल बाद नगर निगम में वनवास खत्म करना चाहती है, तो भाजपा शिकस्त के सिलसिले को थाम नगर निगम पर कब्ज़ा बरकरार रखने को जोर आजमाइश कर रही है। बहरहाल किसके अरमान पूरे होंगे, ये चार मई को स्पष्ट होगा।
पार्टीवार बात करें तो विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस शिमला नगर निगम क्षेत्र में पूरे जोश में है। दरअसल नगर निगम के 34 वार्ड तीन निर्वाचन क्षेत्रों के अधीन आते है, शिमला शहरी, शिमला ग्रामीण और कसुम्पटी। पहली बार इन तीनो क्षेत्रों में किसी एक ही पार्टी के विधायक है और वो है कांग्रेस। इससे भी दिलचस्प बात ये है कि इन विधायकों में से दो मंत्री है, विक्रमादित्य सिंह और अनिरुद्ध सिंह। वहीं सीएम सुक्खू खुद कभी नगर निगम में पार्षद थे, तो प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह भी शिमला में ही रहती है। पार्टी ने शिमला नगर निगम की ज़िम्मेदारी रोहित ठाकुर को सौंपी जो पूरी ईमानदारी से कांग्रेस की जीत सुनिश्चित करने में डटे हुए है l जाहिर है कांग्रेस जोश से लबरेज है। पर इस जोश के बीच भी पार्टी या किसी नेता विशेष के पास होश गंवाने की कोई गुंजाईश नहीं है। यदि नतीजे जरा भी इधर - उधर हुए तो संभव है पहली आवाज पार्टी के भीतर से ही उठे।
उधर, बीच चुनाव में प्रदेश अध्यक्ष बदलने के बावजूद भाजपा की अपनी चुनौतियां है। जाहिर है नए अध्यक्ष को अपने अनुसार निर्णय लेने का समय मिला है और न ही रणनीतिक खाका खींचने का। विधानसभा चुनाव में शहरी विकास मंत्री रहे सुरेश भारद्वाज सहित पार्टी के तीनों उम्मीदवार बड़े अंतर से परास्त हुए है और निसंदेह इसका प्रभाव आम कार्यकर्त्ता के मनोबल पर भी हुआ है। बावजूद इसके इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि भाजपा ने इस चुनाव में पूरी ताकत जरूर झोंकी है। एक-एक वार्ड में पार्टी के दिग्गज पहुंचे है और भरपूर जतन हुआ है। नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने तो मोर्चा संभाला ही है, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर भी प्रचार के लिए पहुंचे है। ये दिखाता है कि बेशक नतीजा जो भी रहे, पार्टी ने चुनाव गंभीरता से लड़ा है। हालांकि जमीनी स्तर की बात करें तो एक सवाल इस चुनाव में घूम घूम कर भाजपा के सामने आया है, और वो है ट्रिपल इंजन का रिपोर्ट कार्ड। दरअसल करीब पांच वर्ष तक केंद्र, प्रदेश और शिमला नगर निगम तीनों जगह भाजपा का राज रहा, तो जाहिर है शिमला की हर परेशानी, हर शिकायत का पहला जवाब भी उन्हें ही देना पड़ा है।
बहरहाल नगर निगम का ये चुनाव बेशक विधानसभा या लोकसभा चुनाव के बनिस्पत बेहद छोटा चुनाव हो लेकिन इसके मायने बेहद व्यापक है। दोनों मुख्य राजनैतिक दलों की भीतरी राजनीति पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा। उधर, चुनाव लड़ रहे सीपीआईएम और आम आदमी पार्टी अगर ठीक ठाक भी नहीं कर पाते है, तो हिमाचल में उनके भविष्य को लेकर भी सवाल उठना तो लाजमी होगा।