सीएम - डिप्टी सीएम पर होगा हमीरपुर में पराजय थामने का दारोमदार

हमीरपुर संसदीय क्षेत्र के चुनाव में अर्से से कांग्रेस की पराजय का दौर जारी है। दो उपचुनावों सहित पिछले 11 लोकसभा चुनावों में भाजपा यहाँ 10 बार जीती है। जबकि 1996 में आखिरी बार कांग्रेस को यहाँ जीत नसीब हुई थी। अब 2024 लोकसभा चुनाव का काउंटडाउन शुरू हो चुका है और अर्से बाद कांग्रेस हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में बेहतर करने को लेकर आशावान है या यूँ कहे कि अर्से बाद यहाँ कांग्रेस से अपेक्षाएं बढ़ी है। इसका कारण है पिछले विधानसभा चुनाव में इस संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस का शानदार प्रदर्शन।
2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हमीरपुर संसदीय क्षेत्र की 17 विधानसभा सीटों में से 10 पर जीत मिली है। वहीँ न केवल मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू हमीरपुर से आते है, बल्कि उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री भी इसी संसदीय क्षेत्र से है। ऐसे में इन दो सियासी दिग्गजों की मौजूदगी में कांग्रेस की उम्मीद तो लाजमी है।
अलबत्ता कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव में विधानसभा चुनाव के नतीजे दोहराना चाहती है, लेकिन यहाँ ये भी जहन में रखना होगा कि कांग्रेस की राह आसान जरा भी नहीं है। पार्टी के सामने कई बड़ी चुनौतियां रहने वाली है। जाहिर है चुनाव के लिए टिकट के तो कई तलबगार होंगे, लेकिन कांग्रेस को ऐसे दमदार चेहरे की दरकार है जो हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में पार्टी को जीत दिला सके। उधर भाजपा से चार बार के सांसद अनुराग ठाकुर अब केंद्रीय मंत्री बन चुके है और ये लगभग तय है कि 2024 में अनुराग ही फिर मैदान में हो। ऐसे में कांग्रेस के लिए ये चुनाव ज़रा भी आसान नहीं होने वाला है। यहाँ कांग्रेस ही नहीं बल्कि प्रदेश के सीएम और डिप्टी सीएम की साख भी दांव पर होने वाली है।
निसंदेह हमीरपुर संसदीय क्षेत्र भाजपा का मजबूत किला है। अब भाजपा के इस अभेद किले को भेदने के लिए कांग्रेस किस दिग्गज को मैदान में उतारती है, इस पर भी सबकी निगाहें टिकी हुई है। दरअसल पिछले चुनाव कांग्रेस उम्मीदवार रहे वरिष्ठ नेता राम लाल ठाकुर हमीरपुर सांसदीय क्षेत्र से चार दफा चुनाव लड़ चुके है। 1999, 2004, 2019 और 2007 के उपचुनाव में राम लाल ठाकुर ही कांग्रेस के उम्मीदवार रहे है, लेकिन हर बार राम लाल ठाकुर को शिकस्त ही मिली। वहीँ कांग्रेस के तेज़ तरार नेताओं में शुमार राजिंदर राणा भी 2014 में पार्टी टिकट पर हमीरपुर लोकसभा चुनाव लड़ चुके है, लेकिन राणा भी पार्टी को जीत दिलाने में असफल साबित हुए। हालांकि राणा की हार का अंतर एक लाख के भीतर था, और ऐसे में वे एक बार फिर पार्टी की पसंद हो सकते है। बहरहाल हमीरपुर में हार का सिलसिला थामने को कांग्रेस किस पर भरोसा करेगी, ये देखना रोचक होगा।
धूमल परिवार का दबदबा :
हमीरपुर संसदीय क्षेत्र के इतिहास पर निगाह डाले तो 1996 के अलावा 1989 से 2019 तक हुए हर चुनाव में भाजपा ने मोर्चा मारा है। 1989 में पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल ने यहां से जीत हासिल कर पहली बार बीजेपी का परचम लहराया था। इसके बाद वह 1991 में भी जीते। फिर 1996 में कांग्रेस के विक्रम सिंह ने बाजी मारी, लेकिन 1998 के बाद फिर से बीजेपी के ही सुरेश चंदेल जीत गए। 1999 और 2004 में भी वह जीते। इसके बाद 2007 में उनके इस्तीफे के बाद पूर्व सांसद प्रेम कुमार धूमल यहां से तीसरी बार सांसद बने, लेकिन प्रदेश के सीएम बनने के बाद उन्होंने सीट खाली कर दी। इसके बाद 2008 के उपचुनाव, 2009, 2014 और 2019 के आम चुनाव में अनुराग ठाकुर यहाँ से लगातार चार दफा सांसद बने है।
पांच जिलें आते है जद में :
हमीरपुर संसदीय क्षेत्र के तहत 17 विधानसभा क्षेत्र आते है। इनमे जिला हमीरपुर के पांच विधानसभा क्षेत्र, जिला बिलासपुर के चार विधानसभा क्षेत्र, जिला ऊना के पांच विधानसभा क्षेत्र, जिला मंडी का धर्मपुर विधानसभा क्षेत्र और जिला कांगड़ा के देहरा और जसवां परागपुर विधानसभा क्षेत्र शामिल है।
राष्ट्रीय मुद्दों पर होगा मतदान :
विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव के मुद्दे अलग होते है और प्रदेश की जनता दोनों चुनावों में अलग नजरिये से मतदान करती है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को यदि बेहतर करना है तो न सिर्फ प्रदेश कांग्रेस को बेहतर करना होगा अपितु राष्ट्रिय स्तर पर भी कांग्रेस को दमदार वापसी करनी होगी। बहरहाल तो राहुल गाँधी की सदस्यता रद्द होने के बाद कांग्रेस किस रणनीति पर आगे बढ़ेगी, ये भी स्पष्ट नहीं है। जाहिर है ऐसे में कांग्रेस की डगर कठिन जरूर होगी।