"बंद करो मोमबत्ती जलाना" : नर्बदा ठाकुर
बंद करो मोमबत्ती जलाना
संस्कारों के दीये जलाओ तुम
दिन के उजाले में मोमबत्ती
रातों को कहर न ढाओ तुम
बंद करो सड़कों पर भीड़ लगाना
घरों में ही अपने सपूतों को समझाओ तुम
मत छीनों किसी असहाय की आबरू
सुनसान डगर पे
हो सकती है तुम्हारी माँ बहन भी उसकी जगह देखो इस नजर से
बहसी बनना छोड़ दो,
नेक इंसान बन जाओ तुम
बंद करो मोमबत्ती जलाना
संस्कारों के दीये जलाओ तुम
हाथों में है मोमबत्ती
मन में कपट का घोर अंधेरा है
चौराहे पर रैली, वीराने में लूट
क्या यही भारत मेरा है?
दूधमुंही बच्ची हो या 80 वर्ष की दादी अम्मा
सबको बहसियों की गंदी नजरों ने घेरा है
बंद करो यह नकली रोशनी
जब मन में विलासिता का अँधेरा है
अपने अंतर्मन में ज्ञान का एलईडी लगाओ तुम
बंद करो मोमबत्ती जलाना
संस्कारों के दीये जलाओ तुम
दिन के उजाले में मोमबत्ती जलाते हो
रात के अँधेरे में बहसी बन जाते हो
क्यों आज बेटियां घरों में ही सुरक्षित नहीं है
होती है आए दिन ऐसी घटनाएं,
इनसे कौन परिचित नहीं है
नारी है कोई भोग का सामान नहीं,
इस सोच से ऊपर उठ जाओ तुम
बंद करो मोमबत्ती जलाना
संस्कारों के दीये जलाओ तुम
धिक्कार है ऐसी सोच पर,
क्यों सूरज को रोशनी दिखाते हो
दिन भर सड़कों पर रैली,
रात को लूट मचाते हो
मैं कहती हूॅ॑, मत बनो देवता!
इंसान ही बन जाओ तुम
सुनसान अँधेरी सड़कों पर
किसी मासूम का आँचल
तार-तार न बनाओ तुम
बंद करो मोमबत्ती जलाना
संस्कारों के दीये जलाओ तुम।
रचनाकार : नर्बदा देवी ठाकुर भाषा
शिक्षिका राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय कोट तुंगल
तहसील कोटली जिला मण्डी हिमाचल प्रदेश