रक्षा क्षेत्र में फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट के मुद्दे पर आर एस एस चुप क्यों : राम लाल ठाकुर

पूर्व मंत्री व विधायक राम लाल ठाकुर ने केंद्र सरकार व उसकी सहयोगी संस्थाओं पर जबरदस्त वैचारिक हमला करते हुए कहा है कि देश के रक्षा क्षेत्र में फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट को मंजूरी दे गई है अब क्या आर. एस. एस. गहन निंद्रा में सो गया है, वह रक्षा क्षेत्र में फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट के मुद्दे पर चुप क्यों है? उन्होंने कहा कि क्यों अब केंद्र की सरकार स्वदेसी अपनाने का ढिंढोरा पीट रही है और दूसरी और फॉरेन इन्वेस्टमेंट को मंजूरी दे रही है यह दोहरी मानसिकता नहीं तो और क्या है।
राम लाल ठाकुर ने कहा कि आर. एस. एस. एक अम्ब्रेला ऑर्गेनाइजेशन है जिसके अधीन अनेको अन्य संस्थाए काम करती है जिसमे से भाजपा एक है और वर्ष 1991 में बनी स्वदेशी जगरण मंच भी है, लेकिन अब न तो विदेशी निवेश के मुद्दे पर स्वदेशी जागरण मंच बोल रहा है और आर एस एस की तो बोलती ही बंद हो गई है।
उन्होंने कहा कि जब वर्ष 1984 में स्वर्गीय राजीव गांधी जी देश मे कंप्यूटर क्रान्ति की बात करते थे तो भाजपा और आर. एस. एस. बैलगाड़ी की बात करते थे, अब वही भाजपा व आर.एस.एस. फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप व ट्विटर को अपनी ढाल बना कर बैठे है। अब कहां है वह आर. एस. एस के विचारक जो स्वदेशी की बात करते थे? कोविड19 जैसी विश्वव्यापी आपदा के समय आर एस एस जैसी संस्थाए क्यों गायब हो गई है। क्यों आर एस एस एक ऐसी संस्था बन गई है जो सिर्फ भाजपा को चुनवों में समर्थन दिलाने व आमजन को बरगलाने तक सीमित रह गई है, क्योंकि अब यह साफ हो गया है कि आर एस एस की कथनी व करनी में वर्ष 1925 से ही यह अंतर रहा है। अब जब देश मे मज़दूरों का पलायन हो रहा है जिनकी संख्या करीब दस करोड़ चालीस लाख है तो अभी तक क्यों नहीं मजदूरों के लिए केंद्र सरकार ने राहत शिविर लगाए है। जबकि इतिहास गवाह है कि जब 1947 में देश का विभाजन हुआ था तो उन लोगों के पलायन की संख्या दोनों देश के बीच करीब 75-75 लाख थी तब भी उस समय की तत्कालीन नेहरू सरकार ने जगह जगह राहत शिविरों के माध्यम से लोगों को सुविधाएं प्रदान की थी लेकिन दूसरी तरफ अब जहां पर भारतीय मजदूर संघ अपने सदस्यता करीब डेढ़ करोड़ होने का दावा कर रहा है तो अभी भी केंद्र की भाजपा सरकार इस पलायन से भयभीत मजदूरों को राहत देने की जगह विदेशी निवेश पर जोर दे रही यह कहां का न्याय है।
आखिर अब इस देश मे आर एस एस, स्वदेशी जागरण मंच व भारतीय मजदूर संघ कहाँ है वह क्यों नहीं अपनी सहभागिता से बनाई गई केंद्र की भाजपा की सरकार को देश की बुनयादी समस्याओं के बारे में पूछ पा रहे है? इसके दो ही कारण हो सकते है या तो आर एस एस व सहयोगी संस्थाओं ने अपनी संस्कृति व विचारधारा बदल ली है या फिर केंद्र की भाजपा सरकार के आगे घुटने टेक दिए हैं और केंद्र की भाजपा सरकार आकड़ो के जंजाल में फंसा कर देश के लोगों को जीना सिखा रही है। जबकि ठीक इसके विपरीत महात्मा गांधी की ग्राम स्वरोजगार अवधारणा को यू. पी. ए. की मनमोहन सिंह सरकाए ने अमलीजामा पहना कर मनरेगा जैसी बुनियादी फायदा देने वाली व ग्रमीण रोजगार को बढ़ाने वाली यह योजना इस देश को दी थी। जब वर्ष 2014 को भाजपा और एन डी ए की सरकार बनी थी तब मनरेगा जैसी आधारभूत योजना को हाशिये पर धकेल दिया गया था, पर अब जब देश महामारी के दौर से गुजर रहा है तो मनरेगा जैसी योजना के लिए चालीस हजार करोड़ जैसे बड़े बजट का प्रावधान करना कहीं न कहीं महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज की धारणा को बल देता है न कि जाति धर्म के आधार पर बंटवारे को।