'वो मौन रहकर सब सह गई' - नर्बदा ठाकुर
वो मौन रहकर सब सह गई,
उसकी चुप्पी बहुत कुछ कह गई।
ये सबक इनसानों के लिए कम नहीं है,
तीन दिन तक तड़पती रही वो पानी में ये मंजर देखकर किस की आॅ॑खे नम नहीं है।
आज इंसानियत शर्मसार हुई है,
एक बेजुबान माॅ॑ की कोख में पटाखों की बौछार हुई है।
धोखा दे गए बेजुबान को,
अरे!क्या कहूं मैं ऐसे इनसान को
नहीं बख्शा उसकी नन्ही जान को।
जॅ॑गल से आई थी बस्ती की ओर
सोचा था यहाॅ॑ इनसान रहते हैं,
उसे क्या पता था ,नहीं छोड़ेंगे उस मासूम को यहाॅ॑ हैवान रहते हैं।
मुखौटा पहना था इनसानों का
हैवान निकले,
इनकी आत्मा में जानवर बसते हैं
यहाॅ॑ जानवर तो क्या इनसान भी तरसते हैं
राज्य शिक्षित हो सकता है पर लोग अशिक्षित हैं
मल्लापूरम में मौत का तांडव देखकर इनसानियत शर्मसार हुई है
एक भूखी माॅ॑ की चीख-पुकार जानवरों की बस्ती में बेकार हुई है
कब तक चढ़ते रहेंगे ये बेजुबान स्वार्थ की भेंट
क्रूरता की हद हो गई है
आई थी एक माॅ॑ दया की भीख मांगने,
आज वो मौत के आगोश में सो गई है।
नन्हा बच्चा कहे कोख से माँ इन बहसी मनुष्यों के बीच कभी ना आना तू,
ये सिर्फ मुखौटा पहने हुए हैं इनसानियत का,
फिर कभी न धोखा खाना तू
इस नफरत की दुनिया को छोड़ कर,प्यार की दुनिया में आवाद रहना तू
यहाॅ॑ इनसान की सूरत में भेड़िए हैं,
तू कभी इनके भरोसे मत रहना
अरे! घटनाएं अभी पुरानी नहीं हुई थी,
जब अमेजन के जंगलों में जिंदा जीव जला दिए
ऑस्ट्रेलिया में भी हजारों ऊँट पानी के बहाने मार दिए
हर बेजुबान की जुबान होती है
वह भोजन मांगने आई थी अपने पेट में पल रहे बच्चे के खातिर,
उसे क्या पता था तुम निकलोगे फरिश्ते के वेश में कातिल
अरे! क्यों इनसानियत को शर्मसार करते हो?
क्यों हमेशा बेजुबानों पर वार करते हो?
वह निकली थी अपने पेट की आग बुझाने को
तुम्हें शर्म नहीं आई उसे जिंदा बम बनाने को
तेरी बेदर्द मौत ने मानवता पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं
खाना माँगा था मौत मिल गई मूर्खों ने बवाल खड़े कर दिए हैं
पटाखे खिला दिए फल की आड़ में
खाक पढ़े लिखे हो तुम तुम्हारी पढ़ाई जाए भाड़ में
वह शिक्षा ही क्या जिसमें दया का भाव न हो
कुछ ऐसा पाठ पढ़ाओ जिसमें मानवता का अभाव न हो
पढ़े-लिखे राज्य में लोग कैसे अशिक्षित हो गए?
मार दिया भूखी माॅ॑ को क्या यह विक्षिप्त (पागल) हो गए?
बहुत सुनते हैं केरल पढ़ा लिखा राज्य है,
नर्बदा कहती है सिर्फ पढ़ना लिखना ही पढ़ाई नहीं होती
जिसमे इनसानियत न हो, काश! ऐसी शिक्षा उन्हें दिलाई न होती
तो इन मूर्खों ने अन्नानास में भरकर मासूम केे पेट में पटाखों की बौछार करवाई न होती
जिसमें दूसरों के दर्द का एहसास न हो वह पढ़ाई नहीं होती,
यह सच में शिक्षित होते तो आज एक बेजुबान माॅ॑ ने अपनी जान गॅ॑वाई न होती
निरर्थक है वह शिक्षा जिसमें मानवता का कोई पाठ न हो
चाॅ॑द पर पहुंच गए तो क्या हुआ?
मानवता की खोज अभी बाकी है,
जिसके सीने में दर्द न हो बेजुबानों के लिए ,घोर नाइंसाफी है।
नाम और औधे से कुछ नहीं होता आदमी बन जाओ तुम,
जिसमें दया का भाव न हो ऐसी शिक्षा न दिलाओ तुम।
एक अनपढ़ कबीर मानवता का पाठ पढ़ा गए,
तुम पढ़े लिखे हो कर जिंदा जीवो को जला गए।
आज एक हथिनी के रुप में इनसानियत मरी है,
मल्लापूरम के शिक्षितों ने अशिक्षितों की मिसाल गढ़ी है।
तड़पते हुए बच्चा कहे, सुन ले मेरी दास्तां,
कभी न आना इस बस्ती में मेरी माॅ॑।
रचनाकार:- नर्बदा ठाकुर
जिला मंडी, हिमाचल प्रदेश