•   Thursday Feb 06
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when sofat fought the case but party gave ticket to bindal
In Politics

जब सोफत की मेहनत बिंदल के काम आई

एक नेता महज़ 26 वोट से चुनाव हार गया... हार नहीं मानी और इस नतीजे को हाईकोर्ट में चुनौती दे डाली... वहां राहत नहीं मिली तो सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया... 2 साल की लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव रद्द कर दिया और दोबारा चुनाव के आदेश दिए... मगर इस बार पार्टी ने उस नेता का ही टिकट काट दिया... इसे ही तो सियासत कहते हैं। साल 2000 में भाजपा नेता और पूर्व मंत्री महेंद्र नाथ सोफत के साथ जो हुआ, वह किसी भी नेता के लिए किसी डरावने सपने से कम नहीं। दरअसल, सोफत साल 1998 के विधानसभा चुनाव में सोलन विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के प्रत्याशी थे। वहीं, कांग्रेस ने कृष्णा मोहिनी को चुनावी रण में उतारा था। मुकाबला बेहद रोमांचक था। मतगणना के बाद पहले भाजपा प्रत्याशी महेंद्र नाथ सोफत को महज़ एक वोट से विजयी घोषित कर दिया गया। लेकिन यह जीत चंद मिनटों की ही मेहमान निकली। कांग्रेस प्रत्याशी कृष्णा मोहिनी ने तुरंत आवेदन दिया और फिर रिकाउंटिंग हुई। इस बार नतीजा पलट गया—अब सोफत हार गए और कृष्णा मोहिनी महज़ 26 वोट से जीत गईं। महेंद्र नाथ सोफत इस हार को स्वीकार नहीं कर पाए। उन्होंने पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। वर्ष 2000 में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव में अनियमितताओं को स्वीकार करते हुए फिर से चुनाव करवाने का आदेश दिया। सोफत ने इसे अपनी जीत समझा। लेकिन कहानी में एक और मोड़ था। भाजपा ने 2000 में हुए सोलन उपचुनाव के लिए प्रत्याशी ही बदल दिया। दरअसल, जब तक सोफत यह मुकदमा जीते, तब तक प्रदेश की राजनीति में सब कुछ बदल चुका था। अब प्रदेश की सियासत में शांता कुमार नहीं बल्कि धूमल का दौर था। तो महेंद्र नाथ सोफत की जगह डॉ. राजीव बिंदल को टिकट दे दिया गया। कहा जाता है कि बिंदल को कभी खुद सोफत राजनीति में लेकर आए थे। यानी गुरु गुड़ रह गया और चेला शक्कर हो गया... इस तरह सोफत भाजपा में ठिकाने लगा दिए गए और हिमाचल की सियासत में बिंदल की एंट्री हुई... जो आज भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं।

taylor swift swiftnomics
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टेलर स्विफ्ट का Swift-Effect....... वो मॉडर्न पॉप सेंसेशन जो किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में फूंक देती हैं जान

टेलर स्विफ्ट कई देशों को मंदी के दौर से उबार रही हैं... यह सुनने में काफी अजीब लग रहा है... मगर बिल्कुल सच है। दरअसल, टेलर स्विफ्ट की लोकप्रियता का आलम यह है कि वह जिस भी शहर या देश में परफॉर्म करती हैं, वहां की जीडीपी को एकदम से बूस्ट कर देती हैं। यह कहानी शुरू हुई दक्षिण-पूर्व एशिया के छोटे से देश सिंगापुर से, जिसे 2023 में मंदी का खतरा नजर आने लगा था। यह वह समय था जब टेलर स्विफ्ट अपने वर्ल्ड टूर की योजना बना रही थीं। जब सिंगापुर की सरकार को पता चला कि टेलर स्विफ्ट कॉन्सर्ट के लिए एशिया के किसी ऐसे देश की तलाश कर रही हैं, तो सिंगापुर के प्रधानमंत्री ने टेलर स्विफ्ट के साथ छह शो को लेकर एक एग्रीमेंट साइन किया। इस एग्रीमेंट के तहत सिंगापुर में एक शो के बदले स्विफ्ट को लाखों डॉलर दिए गए, लेकिन साथ ही शर्त रखी गई कि वह अपने Eras Tour को सिंगापुर के अलावा किसी अन्य दक्षिण-पूर्व एशियाई देश में लेकर नहीं जाएंगी। स्विफ्ट मान गईं। सिंगापुर में टेलर स्विफ्ट के छह शो ने कमाल कर दिया और हिचकोले खा रही सिंगापुर की अर्थव्यवस्था को इससे 375 मिलियन डॉलर (37.5 करोड़ डॉलर) का सीधा फायदा हुआ। कैसे? वह भी समझते हैं। कई सालों से मंदी की आशंका से घिरे देश में लोग कंजूस बन बैठे थे। बाजार वीरान पड़े थे, लोग खरीदारी करने से परहेज कर रहे थे। लेकिन जैसे ही टेलर स्विफ्ट के कॉन्सर्ट की खबर सार्वजनिक हुई, लोग टिकट खरीदने के लिए उमड़ पड़े। आसपास के देशों से पर्यटक सिंगापुर पहुंचने लगे। होटलों की बुकिंग में तेजी से इजाफा हुआ। तीन लाख से ज्यादा लोग इस कॉन्सर्ट में शामिल हुए थे। अकेले मार्च 2024 में सिंगापुर में 14 लाख से ज्यादा पर्यटक पहुंचे थे। फूड और ड्रिंक्स पर खर्च 30% बढ़ गया। होटलों के किराए में 10% तक की वृद्धि हुई थी। टेलर स्विफ्ट का The Eras Tour अब तक पांच महाद्वीपों की यात्रा कर चुका है और टेलर अलग-अलग देशों में 149 शो कर चुकी हैं। स्विफ्ट की इसी लोकप्रियता को दुनियाभर में Swift-Effect और Swiftonomics का नाम दिया गया है। इसे कॉन्सर्ट इकोनॉमी भी कहा जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हाल ही में 'कॉन्सर्ट इकोनॉमी' का जिक्र किया था। उन्होंने यह जिक्र भारत में कोल्डप्ले बैंड के कॉन्सर्ट की शानदार सफलता के बाद किया था और कॉन्सर्ट इकोनॉमी में जबरदस्त संभावनाओं पर जोर दिया था। यह कॉन्सर्ट इकोनॉमी भारत की जीडीपी के लिए भी बूस्टर का काम कर सकती है। उदाहरण के तौर पर, भारतीय कलाकार दिलजीत दोसांझ के कॉन्सर्ट्स से भी इकोनॉमी को बढ़ावा मिला है। इसी तरह, यह छोटे राज्यों के लिए भी फायदेमंद साबित हो सकता है। अगर हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य में भी इस तरह के कॉन्सर्ट्स आयोजित किए जाएं, तो यहां भी पर्यटन और अर्थव्यवस्था दोनों का विकास होगा।

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'मासूम' कांग्रेस पांच साल जयराम की 'ब्रांडिंग' करती रही !

मंडी में कांग्रेस 'ठंडी' ...क्या है कांग्रेस का रिकवरी प्लान ?  चंद्रशेखर इकलौते विधायक, तो ठाकुर कौल सिंह अब भी सबसे बड़ा चेहरा क्या दोनों का सियासी बल बढ़ाकर पटरी पर लौटेगी कांग्रेस ?         2022 के विधानसभा चुनाव से पहले मंडी में कांग्रेस के हालत-ए-हाल पर फर्स्ट वर्डिक्ट मीडिया ने एक विश्लेषण किया था, शीर्षक था "ख़ाक होने का अंदेशा है ख़ुदा ख़ैर करें"  तब कांग्रेस के कई नेताओं को ये शीर्षक खूब चुभा, जाहिर है वे इससे इत्तेफ़ाक़ नहीं रखते थे। फिर नतीजे आएं तो शीर्षक पर जनता की मुहर लग गई। दरअसल, विपक्ष में रहते कांग्रेस खुद ढोल पिटती रही कि जयराम ठाकुर तो सिर्फ मंडी के मुख्यमंत्री है, सारा विकास सिर्फ मंडी में हो रहा है। यानी एक किस्म से पांच साल कांग्रेस के नेताओं ने मंडी में भाजपा के काम का जमकर प्रचार किया, जयराम ठाकुर को मंडी में ब्रांड बना दिया। इस पर हिमाचल कांग्रेस की मासूमियत देखिये, 2022 में वही कांग्रेस उम्मीद कर रही थी कि मंडी की जनता उन्हें वोट देगी। तब कांग्रेसी नेताओं ने बात समझते-समझते बहुत देर कर दी।        चलो, जो बीत गई गई सो बात गई। बरहहाल बात करते है मंडी में कांग्रेस के लिए आगे क्या सम्भावना है। क्या मंडी में कांग्रेस के लिए कुछ तुरुस्त हुआ है ? क्या अब मंडी के मर्ज को कांग्रेस समझ पाई है ? क्या भविष्य के लिए कांग्रेस तैयार है ? हकीकत ये है कि अब भी दस सीटों वाला जिला मंडी हिमाचल कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी दिखता है। इसके दो कारण है, पहला है जयराम ठाकुर जो बीजेपी का प्राइम फेस है और इसका एडवांटेज बीजेपी को मंडी में मिल रहा है। दूसरा कारण है कांग्रेस में कोई मजबूत फेस का न होना। दरअसल सियासत में ताकत पद से मिलती है। जिला में पार्टी के इकलौते विधायक है चंद्रशेखर, जिनकी क्षमता पर भी कोई संदेह नहीं। विधायक महोदय को पार्टी ने सरकार में तो कोई अहम् पद नहीं दिया, लेकिन संगठन में कार्यकारी अध्यक्ष जरूर बनाया था। अब कांग्रेस संगठन में कार्यकारी अध्यक्ष पद का औचित्य क्या और कितना रहा है, ये अलग से विवेचना का विषय है। पर लब्बोलुआब ये है कि इसका ख़ास जमीनी असर मंडी में नहीं दिखा। वहीँ ,अब भी मंडी में कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे की बात करें तो बगैर किसी संकोच के ठाकुर कौल सिंह का नाम जुबां पर आता है, लगातार दो चुनाव हारने के बावजूद। वे भी एक किस्म से साइडलाइन है।    माहिर मानते है कि मंडी में कांग्रेस अपने इकलौते विधायक चंद्रशेखर और धरोहर नेता ठाकुर कौल सिंह की ताकत बढ़ा कर रिकवरी का ब्लू प्रिंट तैयार कर सकती है। अगर अप्रैल के बाद पीसीसी चीफ को बदला जाता है तो मुमकिन है चंद्रशेखर के नाम पर गंभीरता से विचार हो। यानी मंडी को कांग्रेस संगठन की कमान दी जा सकती है। जहाँ तक सवाल कैबिनेट में चंद्रशेखर की एंट्री का है, इसकी सम्भावना फिलहाल कम है। अगर मंडी संसदीय हलके से किसी की एंट्री के लिए पार्टी गुंजाईश बनती भी है तो संभव है कुल्लू विधायक सूंदर ठाकुर ही पहली पसंद हो। फिर भी इस सम्भावना को पूरी तरह  ख़ारिज नहीं किया जा सकता। इसी तरह वरिष्ठ नेता ठाकुर कौल सिंह को भी किसी महत्वपूर्ण बोर्ड निगम में एडजस्ट करने की चर्चा काफी वक्त से है। बहरहाल सरकार और संगठन में मंडी को कितना अधिमान मिलेगा, इसी पर निर्भर करेगा भविष्य में मंडी कांग्रेस पर कितनी मेहरबान रहती है। 

when virbhadra singh lost election
In Politics

सिटींग सीएम वीरभद्र सिंह भी हार गए थे चुनाव !

बहुत कम लोगों को मालूम है कि हिमाचल प्रदेश के छह बार मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह भी एक बार विधानसभा चुनाव हार गए थे। 1990 के विधानसभा चुनाव में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। यही नहीं, खुद वीरभद्र सिंह भी जुब्बल-कोटखाई से चुनाव हार गए। लेकिन इसके बावजूद वे विधानसभा पहुंचे।  कैसे? आइए जानते हैं... इस चुनाव में वीरभद्र सिंह ने एक नहीं, बल्कि दो विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़ा—शिमला जिले के रोहड़ू और जुब्बल-कोटखाई। इसे हार का डर कहें या अपनी लोकप्रियता पर भरोसा, लेकिन यह हिमाचल प्रदेश की राजनीति का दिलचस्प दौर था। रोहड़ू सीट पर वीरभद्र सिंह ने एकतरफा जीत दर्ज की, लेकिन जुब्बल-कोटखाई में उन्हें मात्र 1500 वोटों से हार का सामना करना पड़ा। दिलचस्प बात ये है की वीरभद्र सिंह को हराने वाले कोई और नहीं, बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री ठाकुर रामलाल थे—वही ठाकुर रामलाल, जिन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाकर वीरभद्र सिंह पहली बार सीएम बने थे। दरअसल, मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद ठाकुर रामलाल को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बना दिया गया था, जिससे वे प्रदेश की राजनीति से दूर हो गए। समय के साथ ठाकुर रामलाल और कांग्रेस के बीच दूरियां बढ़ीं और उन्होंने जनता दल का दामन थाम लिया। 1990 में जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ते हुए ठाकुर रामलाल ने जुब्बल-कोटखाई से वीरभद्र सिंह को हराया। इसी चुनाव में मुख्यमंत्री पद के दूसरे दावेदार शांता कुमार ने भी दो सीटों से चुनाव लड़ा—सुलह और पालमपुर। दिलचस्प बात यह रही कि वे दोनों सीटों से चुनाव जीत गए।

Haridas does not agree
In Politics

"नहीं मानता हरिदास"......... वो मंत्री जो दस्तखत के साथ अपना फैसला भी लिखते थे!

हिमाचल प्रदेश की राजनीति में कई दिलचस्प शख्सियतें हुई हैं, लेकिन इन मंत्री जी का अंदाज बिल्कुल अलग था। ये मंत्री फाइलों पर महज दस्तखत नहीं करते थे, बल्कि अपना स्पष्ट निर्णय भी लिखते थे। हम बात कर रहे हैं यशवंत सिंह परमार की सरकार में मंत्री रहे हरिदास की। हरिदास न सिर्फ अपनी सादगी बल्कि अपने अनोखे फैसलों के लिए भी मशहूर थे। हरिदास अगर किसी प्रस्ताव से सहमत होते, तो लिखते— "मान गया हरिदास", और यदि असहमत होते, तो दो टूक जवाब देते— "नहीं मानता हरिदास"! हरिदास ज़्यादा पढ़े-लिखे तो नहीं थे, मगर उनका विज़न कमाल का था। उनकी समझ सिर्फ प्रशासन तक सीमित नहीं थी, वे ज़मीन से जुड़े नेता थे। जब उन्हें पता चला कि बिलासपुर और उसके आसपास की मिट्टी में कुछ खास है, तो वे उसका एक ढेला उठाकर विधानसभा पहुँच गए। विधानसभा का माहौल हमेशा की तरह गर्म था। जब हरिदास ने अपनी बात रखनी शुरू की, तो कई लोग मुस्कुराने लगे। उन्होंने मिट्टी का वह ढेला दिखाकर कहा, "इसकी जांच होनी चाहिए। मुझे लगता है कि यह साधारण मिट्टी नहीं है, इसका व्यावसायिक इस्तेमाल हो सकता है!" कुछ विधायकों ने ठहाके लगाए, कुछ ने मजाक में कहा, "मंत्री जी, अब आप मिट्टी में भी संभावनाएँ ढूँढने लगे?" लेकिन हरिदास बिना विचलित हुए अपनी बात पर अडिग रहे। हरिदास की जिद पर आखिरकार मिट्टी की जांच करवाई गई। जब रिपोर्ट आई, तो सभी चौंक गए। यह मिट्टी उच्च गुणवत्ता वाले सीमेंट निर्माण के लिए उपयुक्त थी! जल्द ही इस खोज ने उद्योगपतियों का ध्यान आकर्षित किया। देखते ही देखते बिलासपुर और उसके आसपास के इलाकों में बड़े-बड़े सीमेंट प्लांट लगने लगे। बरमाणा में एसीसी सीमेंट प्लांट और दाड़लाघाट में अंबुजा सीमेंट प्लांट स्थापित हुए, जिससे न केवल हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली, बल्कि हजारों लोगों को रोजगार भी मिला। वही लोग, जो कभी ठाकुर हरिदास की खिल्ली उड़ाते थे, अब उनकी दूरदृष्टि की तारीफ कर रहे थे।

 Hamirpur's Surendra Wins the Heart of a Foreign Bride, Marries Dubai’s Marian in a Traditional Hindu Ceremony
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हमीरपुर के छोरे को भा गई विदेशी कन्या, दुबई की मरियन के साथ हिंदू रीति-रिवाज से की शादी

हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले के सनेड गांव के सुरेंद्र का प्यार दुबई की मरियन को इस कदर भा गया कि वह सात समंदर पार आकर उससे शादी कर बैठी। दोनों ने भराड़ी माता मंदिर में हिंदू रीति-रिवाज से सात फेरे लिए और सात जन्मों तक साथ निभाने का वादा किया। मरियन के परिवार को भी इस शुभ अवसर में शामिल होना था, लेकिन वीजा न मिलने के कारण वे भारत नहीं आ सके। हालांकि, शादी के बाद सुरेंद्र के घर में पारंपरिक धाम का आयोजन किया गया, जिसमें रिश्तेदारों और गांववालों ने खुशी-खुशी भाग लिया। विदेशी बहू के आगमन से घर में जश्न का माहौल बना रहा। 27 वर्षीय सुरेंद्र और 26 वर्षीय मरियन की पहली मुलाकात दुबई में हुई थी। दोनों होटल इंडस्ट्री में कार्यरत हैं और वहीं एक-दूसरे के करीब आए। धीरे-धीरे यह दोस्ती गहरे प्रेम में बदल गई, जिसकी भनक उन्हें खुद भी नहीं लगी। जब दोनों ने अपने-अपने परिवारों को इस रिश्ते के बारे में बताया, तो बातचीत के बाद परिजनों ने शादी को अपनी स्वीकृति दे दी। दो दिनों तक शादी की धूमधाम के बाद नवविवाहित जोड़ा कुछ समय के लिए हमीरपुर में रहेगा और फिर दोनों एक साथ अपनी ड्यूटी पर लौट जाएंगे। इस अनोखी प्रेम कहानी ने गांव में खूब सुर्खियां बटोरीं और लोग इस जोड़ी को आशीर्वाद देने उमड़ पड़े।

Himachal: Ration card holders will also get oil for weddings and events.
In Himachal

हिमाचल : राशनकार्ड धारकों को शादी व आयोजनों के लिए भी मिलेगा तेल

हिमाचल में राशनकार्ड धारकों को डिपो में मिलेगा सरसों और रिफाइंड तेल हिमाचल प्रदेश के राशनकार्ड उपभोक्ताओं के लिए राहत भरी खबर है। अब डिपो में सरसों के तेल के साथ रिफाइंड तेल भी उपलब्ध कराया जाएगा। प्रदेश सरकार ने सरसों तेल का सप्लाई ऑर्डर जारी कर दिया है, जबकि रिफाइंड तेल की आपूर्ति के लिए निविदा प्रक्रिया पूरी की जा रही है। सरकार का उद्देश्य है कि उपभोक्ताओं को हर राशनकार्ड पर एक लीटर सरसों और एक लीटर रिफाइंड तेल मिले। हिमाचल प्रदेश के करीब 19.5 लाख राशनकार्ड धारकों को सरकार की ओर से सस्ती दरों पर आवश्यक वस्तुएं उपलब्ध कराई जाती हैं। इनमें आटा, चावल, चीनी, दालें और तेल शामिल हैं। हालांकि, बीते तीन महीनों से डिपो में सरसों तेल उपलब्ध नहीं था। खाद्य आपूर्ति निगम ने बताया है कि 10 फरवरी से डिपो में तेल उपलब्ध होगा, और उपभोक्ता तीन महीने का कोटा एक साथ ले सकेंगे। शादी व आयोजनों के लिए भी मिलेगा तेल सरकार ने यह भी प्रावधान किया है कि शादी और अन्य आयोजनों के लिए उपभोक्ता डिमांड के अनुसार तेल प्राप्त कर सकेंगे। खाद्य आपूर्ति निगम के प्रबंध निदेशक राजेश्वर गोयल ने कहा कि सरसों तेल का ऑर्डर जारी हो चुका है और रिफाइंड तेल के लिए निविदाएं मांगी जा रही हैं। सरकार राशनकार्ड धारकों को दो लीटर तेल, तीन तरह की दालें (मलका, माश और चना), चीनी, और एक किलो नमक सस्ते दामों पर उपलब्ध कराती है। जबकि आटा और चावल केंद्र सरकार की ओर से दिया जाता है। सरकार की इस पहल से लाखों उपभोक्ताओं को राहत मिलने की उम्मीद है। अब लोगों को डिपो से आसानी से सरसों और रिफाइंड तेल मिलने लगेगा।

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जब सोफत की मेहनत बिंदल के काम आई

In Politics
when sofat fought the case but party gave ticket to bindal

एक नेता महज़ 26 वोट से चुनाव हार गया... हार नहीं मानी और इस नतीजे को हाईकोर्ट में चुनौती दे डाली... वहां राहत नहीं मिली तो सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया... 2 साल की लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव रद्द कर दिया और दोबारा चुनाव के आदेश दिए... मगर इस बार पार्टी ने उस नेता का ही टिकट काट दिया... इसे ही तो सियासत कहते हैं। साल 2000 में भाजपा नेता और पूर्व मंत्री महेंद्र नाथ सोफत के साथ जो हुआ, वह किसी भी नेता के लिए किसी डरावने सपने से कम नहीं। दरअसल, सोफत साल 1998 के विधानसभा चुनाव में सोलन विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के प्रत्याशी थे। वहीं, कांग्रेस ने कृष्णा मोहिनी को चुनावी रण में उतारा था। मुकाबला बेहद रोमांचक था। मतगणना के बाद पहले भाजपा प्रत्याशी महेंद्र नाथ सोफत को महज़ एक वोट से विजयी घोषित कर दिया गया। लेकिन यह जीत चंद मिनटों की ही मेहमान निकली। कांग्रेस प्रत्याशी कृष्णा मोहिनी ने तुरंत आवेदन दिया और फिर रिकाउंटिंग हुई। इस बार नतीजा पलट गया—अब सोफत हार गए और कृष्णा मोहिनी महज़ 26 वोट से जीत गईं। महेंद्र नाथ सोफत इस हार को स्वीकार नहीं कर पाए। उन्होंने पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। वर्ष 2000 में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव में अनियमितताओं को स्वीकार करते हुए फिर से चुनाव करवाने का आदेश दिया। सोफत ने इसे अपनी जीत समझा। लेकिन कहानी में एक और मोड़ था। भाजपा ने 2000 में हुए सोलन उपचुनाव के लिए प्रत्याशी ही बदल दिया। दरअसल, जब तक सोफत यह मुकदमा जीते, तब तक प्रदेश की राजनीति में सब कुछ बदल चुका था। अब प्रदेश की सियासत में शांता कुमार नहीं बल्कि धूमल का दौर था। तो महेंद्र नाथ सोफत की जगह डॉ. राजीव बिंदल को टिकट दे दिया गया। कहा जाता है कि बिंदल को कभी खुद सोफत राजनीति में लेकर आए थे। यानी गुरु गुड़ रह गया और चेला शक्कर हो गया... इस तरह सोफत भाजपा में ठिकाने लगा दिए गए और हिमाचल की सियासत में बिंदल की एंट्री हुई... जो आज भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं।

मोदी की स्वास्थ्य गारंटी : आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन से जुड़े 56.67 करोड़ लोग

In Health
guarantee: 56.67 crore people connected to Ayushman Bharat Digital Mission

पीएम मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने साल 2021 में आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन की शुरुआत की थी। मोदी के नेतृत्व में ही 2021-2022 से 2025-2026 तक 5 वर्षों के लिए 1,600 करोड़ रुपये की डिजिटल स्वास्थ्य इकोसिस्टम बनाने के लिए आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन शुरू किया गया था। इसकी वजह से पीएम मोदी के गारंटी का भी असर देखने को साफ मिला और इस योजना के तहत 29 फरवरी, 2024 तक 56.67 करोड़ लोगों के आयुष्मान भारत स्वास्थ्य खाते बनाए जा चुके हैं। इसके अलावा आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन ने लैंगिक समानता हासिल करने की दिशा में भी प्रगति की है। 29 फरवरी, 2024 तक, 27.73 करोड़ महिलाएं और 29.11 करोड़ पुरुषों को आभा कार्ड से लाभ हुआ है। वहीं 34.89 करोड़ से अधिक स्वास्थ्य दस्तावेजों को इससे जोड़ा गया है। क्या है आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन  आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन का उद्देश्य देश में यूनिफाइड डिजिटल स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे की मदद करने के लिए जरूरी आधार तैयार करना है। इससे सीमित इंटरनेट कनेक्टिविटी वाले क्षेत्रों में आयुष्मान भारत स्वास्थ्य खाता खोलने के लिए ऑफलाइन मोड को मदद पहुंचती है। इसके अलावा भारत सरकार ने स्वास्थ्य सुविधा के लिए आभा ऐप और आरोग्य सेतु जैसे विभिन्न एप्लिकेशन भी लॉन्च किए गए हैं, जो आम लोगों को मदद पहुंचाती है। आभा ऐप एक प्रकार का डिजिटल स्टोरेज है, जो किसी भी व्यक्ति के मेडिकल दस्तावेजों का रखने का काम आता है। इस ऐप के जरिए मरीज रजिस्टर्ड स्वास्थ्य पेशेवरों से संपर्क भी कर सकते हैं।    भारत में बीजेपी की मोदी सरकार ने बीते 10 सालों के अपनी सरकार में कई सारे मील के पत्थर हासिल किया है। इन 10 सालों में पीएम मोदी के विजन ने भारत को अगले 23 साल बाद यानी साल 2047 तक विकसित भारत बनाने के ओर मजबूती से कदम भी बढ़ा लिया है। पीएम मोदी के नेतृत्व में बीजेपी सरकार ने देश के हित में जो भी फैसले लिए है, उनमें से हेल्थ सेक्टर को सर्वोच्च प्राथमिकता देने का प्रयास किया गया है।        

हिमाचल: सीएम सुक्खू बोले, विद्यार्थियों के समग्र विकास के लिए शिक्षा प्रणाली में किए जा रहे हैं सुधार

In Education
Himachal: CM Sukhu said, reforms are being made in the education system for the overall development of students.

राज्य सरकार के प्रयासों से विद्यार्थियों में जागृत होगी देशभक्ति की भावनाः मुख्यमंत्री प्रदेश सरकार विद्यार्थियों का समग्र एवं समावेशी विकास सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। विद्यार्थियों में राष्ट्रीयता और देशभक्ति की भावना जागृत करने के लिए राज्य सरकार ने प्रदेश के सभी स्कूलों में राष्ट्रगान के साथ प्रातःकालीन प्रार्थना सभा आयोजित का निर्णय लिया है। इसके अतिरिक्त, सभी उच्च और वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों में प्रतिदिन अनिवार्य रूप से राष्ट्रीय ध्वज फहराने का भी निर्णय लिया गया है। मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने कहा कि इस प्रकार की गतिविधियों से युवा पीढ़ी में एकता और देशभक्ति की भावना जागृत हो। इससे विद्यार्थी भविष्य में राष्ट्र के जिम्मेदार नागरिक बनेंगे। उन्होंने कहा कि वर्तमान प्रदेश सरकार ने कार्यभार ग्रहण करने के उपरांत शिक्षा प्रणाली में विभिन्न सुधारात्मक कदम उठाए हैं और शिक्षा प्रणाली में इन निर्णयों के सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। प्रदेश सरकार ने विद्यार्थियों का शारीरिक विकास सुनिश्चित करने के लिए शारीरिक शिक्षा और योग को पाठ्यक्रम में अनिवार्य विषय बनाने का निर्णय लिया है। इससे सभी स्कूलों में विद्यार्थी प्रतिदिन कम से कम 15 मिनट शारीरिक व्यायाम करेंगे। इस दौरान शारीरिक शिक्षक एवं अन्य अध्यापक विद्यार्थियों को व्यायाम करवाना सुनिश्चित करेंगे। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य एवं आयुष विभाग के सहयोग से विद्यार्थियों को सीपीआर एवं प्राथमिक उपचार का प्रशिक्षण भी दिया जाएगा, जिससे विद्यार्थियों कोे जीवन रक्षक कौशल का ज्ञान मिलेगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि यह सुधार राज्य सरकार की समग्र शिक्षा प्रदान करने की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करते हैं। प्रदेश सरकार की पहल से विद्यार्थियों को शैक्षणिक ज्ञान के साथ-साथ शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनाने और उनमें आदर्श नागरिक की जिम्मेदारियां पैदा करने में सहायता मिलेगी। सरकार का लक्ष्य विद्यार्थियों की दिनचर्या में इन गतिविधियों को शामिल कर उनमें राष्ट्रीयता की भावना जागृत कर अखंड भारत के निर्माण के लिए तैयार करना है।

जेम्स एंडरसन 700 विकेट लेने वाले दुनिया के पहले फास्ट बॉलर बने

In Sports
James Anderson became the world's first fast bowler to take 700 wickets.

** धर्मशाला में खेले जा रहे भारत-इंग्लैंड टेस्ट मैच में बना रिकॉर्ड ** इससे पहले दो स्पिन गेंदबाजों मुरलीधरन और शेन वार्न ने लिए हैं 700 से अधिक विकेट हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला स्टेडियम में खेले जा रहे भारत-इंग्लैंड टेस्ट श्रृंखला के अंतिम एवं 5वें मैच में एक नया रिकॉर्ड बना है। मैच के तीसरे दिन इंग्लैंड के फास्ट बॉलर जेम्स एंडरसन 700 विकेट लेने वाले दुनिया के पहले तेज गेंदबाज बन गए हैं। 700 विकेट लेने वाले वे इग्लैंड के भी पहले गेंदबाज हैं।    एंडरसन से पहले भी दो गेंदबाजों ने यह आंकड़ा छुआ है, लेकिन वे दोनों  स्पिनर हैं। इससे पहले श्रीलंका के मुथैया मुरलीधरन और आस्टे्रलिया के शेन वार्न ने क्रमश: 800 और 700 विकेट का आंकड़ा छुआ है।    बता दें कि भारत के खिलाफ टेस्ट सीरीज में तेज गेंदबाज जेम्स एंडरसन ने पहला मैच नहीं खेला था। इसके बाद के तीन मैच खेले हैं। अब धर्मशाला में चल रहे पांचवें मैच में खेल रहे हैं। दूसेर मैच में उन्होंने पांच विकेट लिए थे। तीसरे मैच में वे सिर्फ एक विकेट ले सके, जबकि रांची में खेले चौथे मैच में एंडरसन ने दो विकेट लिए थे।  

स्टीव जॉब्स से विराट कोहली तक, नीम करोली बाबा के आश्रम में सब नतमस्तक

In First Blessing
NEEM-KARORI-BABA

  नीम करोली बाबा के आश्रम में स्टीव जॉब्स और मार्क जुकरबर्ग को मिली आध्यात्मिक शान्ति भारत में कई ऐसे पावन तीर्थ हैं, जहां पर श्रद्धा एवं भक्ति के साथ जाने मात्र से व्यक्ति के समस्त मनोरथ पूरे हो जाते हैं। ऐसा ही एक पावन तीर्थ देवभूमि उत्तराखंड की वादियों में है, जिसे लोग 'कैंची धाम' के नाम से जानते हैं। कैंची धाम के नीब करौरी बाबा (नीम करौली) की ख्याति विश्वभर में है। नैनीताल से लगभग 65 किलोमीटर दूर कैंची धाम को लेकर मान्यता है कि यहां आने वाला व्यक्ति कभी भी खाली हाथ वापस नहीं लौटता। यहां पर हर मन्नत पूर्णतया फलदायी होती है। यही कारण है कि देश-विदेश से हज़ारों लोग यहां हनुमान जी का आशीर्वाद लेने आते हैं। बाबा के भक्तों में एक आम आदमी से लेकर अरबपति-खरबपति तक शामिल हैं। बाबा के इस पावन धाम में होने वाले नित-नये चमत्कारों को सुनकर दुनिया के कोने-कोने से लोग यहां पर खिंचे चले आते हैं। बाबा के भक्त और जाने-माने लेखक रिचर्ड अल्बर्ट ने मिरेकल आफ लव नाम से बाबा पर पुस्तक लिखी है। इस पुस्तक में बाबा नीब करौरी के चमत्कारों का विस्तार से वर्णन है। इनके अलावा हॉलीवुड अभिनेत्री जूलिया राबर्ट्स, एप्पल के फाउंडर स्टीव जाब्स और फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग जैसी बड़ी विदेशी हस्तियां बाबा के भक्त हैं।  कुछ माह पूर्व स्टार क्रिकेटर विराट कोहली और उनकी पत्नी और अभिनेत्री अनुष्का शर्मा के यहां पहुंचते ही इस धाम को देखने और बाबा के दर्शन करने वालों की होड़ सी लग गई। 1964 में बाबा ने की थी आश्रम की स्थापना  नीम करोली बाबा या नीब करोली बाबा की गणना बीसवीं शताब्दी के सबसे महान संतों में की जाती है। इनका जन्म स्थान ग्राम अकबरपुर जिला फ़िरोज़ाबाद उत्तर प्रदेश में हुआ था। कैंची, नैनीताल, भुवाली से 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बाबा नीब करौरी ने इस आश्रम की स्थापना 1964 में की थी। बाबा नीम करौरी 1961 में पहली बार यहां आए और उन्होंने अपने पुराने मित्र पूर्णानंद जी के साथ मिल कर यहां आश्रम बनाने का विचार किया। इस धाम को कैंची मंदिर, नीम करौली धाम और नीम करौली आश्रम के नाम से जाना जाता है। उत्तराखंड में हिमालय की तलहटी में बसा एक छोटा सा आश्रम है नीम करोली बाबा आश्रम। मंदिर के आंगन और चारों ओर से साफ सुथरे कमरों में रसीली हरियाली के साथ, आश्रम एक शांत और एकांत विश्राम के लिए एकदम सही जगह प्रस्तुत करता है। यहाँ कोई टेलीफोन लाइनें नहीं हैं, इसलिए किसी को बाहरी दुनिया से परेशान नहीं किया जा सकता है। श्री हनुमान जी के अवतार माने जाने वाले नीम करोरी बाबा के इस पावन धाम पर पूरे साल श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, लेकिन हर साल 15 जून को यहां पर एक विशाल मेले व भंडारे का आयोजन होता है। यहां इस दिन इस पावन धाम में स्थापना दिवस मनाया जाता है। कई चमत्कारों के किस्से सुन खींचे आते है भक्त  मान्यता है कि बाबा नीम करौरी को हनुमान जी की उपासना से अनेक चामत्कारिक सिद्धियां प्राप्त थीं। लोग उन्हें हनुमान जी का अवतार भी मानते हैं। हालांकि वह आडंबरों से दूर रहते थे। न तो उनके माथे पर तिलक होता था और न ही गले में कंठी माला। एक आम आदमी की तरह जीवन जीने वाले बाबा अपना पैर किसी को नहीं छूने देते थे। यदि कोई छूने की कोशिश करता तो वह उसे श्री हनुमान जी के पैर छूने को कहते थे। बाबा नीब करौरी के इस पावन धाम को लेकर तमाम तरह के चमत्कार जुड़े हैं। जनश्रुतियों के अनुसार, एक बार भंडारे के दौरान कैंची धाम में घी की कमी पड़ गई थी। बाबा जी के आदेश पर नीचे बहती नदी से कनस्तर में जल भरकर लाया गया। उसे प्रसाद बनाने हेतु जब उपयोग में लाया गया तो वह जल घी में बदल गया। ऐसे ही एक बार बाबा नीब करौरी महाराज ने अपने भक्त को गर्मी की तपती धूप में बचाने के लिए उसे बादल की छतरी बनाकर, उसे उसकी मंजिल तक पहुंचवाया। ऐसे न जाने कितने किस्से बाबा और उनके पावन धाम से जुड़े हुए हैं, जिन्हें सुनकर लोग यहां पर खिंचे चले आते हैं। बाबा के दुनियाभर में 108 आश्रम  बाबा नीब करौरी को कैंची धाम बहुत प्रिय था। अक्सर गर्मियों में वे यहीं आकर रहते थे। बाबा के भक्तों ने इस स्थान पर हनुमान का भव्य मन्दिर बनवाया। उस मन्दिर में हनुमान की मूर्ति के साथ-साथ अन्य देवताओं की मूर्तियाँ भी हैं। यहां बाबा नीब करौरी की भी एक भव्य मूर्ति स्थापित की गयी है। बाबा नीब करौरी महाराज के देश-दुनिया में 108 आश्रम हैं। इन आश्रमों में सबसे बड़ा कैंची धाम तथा अमेरिका के न्यू मैक्सिको सिटी स्थित टाउस आश्रम है। स्टीव जॉब्स को आश्रम से मिला एप्पल के लोगो का आईडिया ! भारत की धरती सदा से ही अध्यात्म के खोजियों को अपनी ओर खींचती रही है। दुनिया की कई बड़ी हस्तियों में भारत भूमि पर ही अपना सच्चा आध्यात्मिक गुरु पाया है। एप्पल कंपनी के संस्थापक स्टीव जॉब्स 1974 से 1976 के बीच भारत भ्रमण पर निकले। वह पर्यटन के मकसद से भारत नहीं आए थे, बल्कि आध्यात्मिक खोज में यहां आए थे। उन्हें एक सच्चे गुरु की तलाश थी।स्टीव पहले हरिद्वार पहुंचे और इसके बाद वह कैंची धाम तक पहुंच गए। यहां पहुंचकर उन्हें पता लगा कि बाबा समाधि ले चुके हैं। कहते है कि स्टीव को एप्पल के लोगो का आइडिया बाबा के आश्रम से ही मिला था। नीम करौली बाबा को कथित तौर पर सेब बहुत पसंद थे और यही वजह थी कि स्टीव ने अपनी कंपनी के लोगों के लिए कटे हुए एप्पल को चुना। हालांकि इस कहानी की सत्यता के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है। जुकरबर्ग को मिली आध्यात्मिक शांति, शीर्ष पर पहुंचा फेसबुक  बाबा से जुड़ा एक किस्सा फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्ग ने 27 सितंबर 2015 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बताया था, तब पीएम मोदी फेसबुक के मुख्यालय में गए थे। इस दौरान जुकरबर्ग ने पीएम को भारत भ्रमण की बात बताई। उन्होंने कहा कि जब वे इस संशय में थे कि फेसबुक को बेचा जाए या नहीं, तब एप्पल के फाउंडर स्टीव जॉब्स ने इन्हें भारत में नीम करोली बाबा के स्थान पर  जाने की सलाह दी थी। जुकरबर्ग ने बताया था कि वे एक महीना भारत में रहे। इस दौरान वह नीम करोली बाबा के मंदिर में भी गए थे। जुकरबर्ग आए तो यहां एक दिन के लिए थे, लेकिन मौसम खराब हो जाने के कारण वह यहां दो दिन रुके थे। जुकरबर्ग मानते हैं कि भारत में मिली अध्यात्मिक शांति के बाद उन्हें फेसबुक को नए मुकाम पर ले जाने की ऊर्जा मिली। बाबा की तस्वीर को देख जूलिया ने अपनाया हिन्दू धर्म  हॉलिवुड की मशहूर अदाकारा जूलिया रॉबर्ट्स ने 2009 में हिंदू धर्म अपना लिया था। वह फिल्म ‘ईट, प्रे, लव’ की शूटिंग के लिए भारत आईं थीं। जूलिया रॉबर्ट्स ने एक इंटरव्यू में यह खुलासा किया था कि वह नीम करौली बाबा की तस्वीर से इतना प्रभावित हुई थीं कि उन्होंने हिन्दू धर्म अपनाने का फैसला कर डाला। जूलिया इन दिनों हिन्दू धर्म का पालन कर रही हैं।    

मूवी RRR के नाटू-नाटू सॉन्ग ने जीता ऑस्कर अवॉर्ड

In Entertainment
Movie-RRR-Natu-Natu-Song-won-Oscar-Award

एसएस राजामौली की चर्चित मूवी ररर के नाटू-नाटू गाने को ऑस्कर अवॉर्ड मिला है। भारत के लिए ये ऐतिहासिक पल है। फिल्ममेकर नाटू नाटू ने ओरिजनल सॉन्ग कैटेगिरी में अवॉर्ड जीता है। एमएम कीरावणी अवॉर्ड लेते हुए बेहद एक्साइटेड नजर आए। उनकी स्पीच भी चर्चा में बनी हुई है। इस जीत के बाद पूरे देश में खुशी का माहौल है। मेकर्स ने RRR मूवी के ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर जीत की खुशी जताई है। उन्होंने लिखा- 'हम धन्य हैं कि आरआरआर सॉन्ग नाटू-नाटू के साथ बेस्ट सॉन्ग कैटेगरी में भारत का पहला ऑस्कर लाने वाली पहली फीचर फिल्म है। कोई भी शब्द इस अलौकिक पल को बयां नहीं कर सकते। धन्यवाद। जय हिंद। 'वहीं 'नाटू नाटू' के ऑस्कर जीतने पर फिल्म के लीड एक्टर जूनियर एनटीआर ने भी रिएक्ट किया है। उन्होंने कहा- 'मेरे पास अपनी खुशी व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं हैं। ये सिर्फ आरआरआर की जीत नहीं है बल्कि एक देश के तौर पर भारत की जीत है। ये तो अभी शुरुआत है कि भारतीय सिनेमा कितनी दूर जा सकता है। एमएम कीरावनी और चंद्रबोस को बधाई।'

टेलर स्विफ्ट का Swift-Effect....... वो मॉडर्न पॉप सेंसेशन जो किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में फूंक देती हैं जान

In News
taylor swift swiftnomics

टेलर स्विफ्ट कई देशों को मंदी के दौर से उबार रही हैं... यह सुनने में काफी अजीब लग रहा है... मगर बिल्कुल सच है। दरअसल, टेलर स्विफ्ट की लोकप्रियता का आलम यह है कि वह जिस भी शहर या देश में परफॉर्म करती हैं, वहां की जीडीपी को एकदम से बूस्ट कर देती हैं। यह कहानी शुरू हुई दक्षिण-पूर्व एशिया के छोटे से देश सिंगापुर से, जिसे 2023 में मंदी का खतरा नजर आने लगा था। यह वह समय था जब टेलर स्विफ्ट अपने वर्ल्ड टूर की योजना बना रही थीं। जब सिंगापुर की सरकार को पता चला कि टेलर स्विफ्ट कॉन्सर्ट के लिए एशिया के किसी ऐसे देश की तलाश कर रही हैं, तो सिंगापुर के प्रधानमंत्री ने टेलर स्विफ्ट के साथ छह शो को लेकर एक एग्रीमेंट साइन किया। इस एग्रीमेंट के तहत सिंगापुर में एक शो के बदले स्विफ्ट को लाखों डॉलर दिए गए, लेकिन साथ ही शर्त रखी गई कि वह अपने Eras Tour को सिंगापुर के अलावा किसी अन्य दक्षिण-पूर्व एशियाई देश में लेकर नहीं जाएंगी। स्विफ्ट मान गईं। सिंगापुर में टेलर स्विफ्ट के छह शो ने कमाल कर दिया और हिचकोले खा रही सिंगापुर की अर्थव्यवस्था को इससे 375 मिलियन डॉलर (37.5 करोड़ डॉलर) का सीधा फायदा हुआ। कैसे? वह भी समझते हैं। कई सालों से मंदी की आशंका से घिरे देश में लोग कंजूस बन बैठे थे। बाजार वीरान पड़े थे, लोग खरीदारी करने से परहेज कर रहे थे। लेकिन जैसे ही टेलर स्विफ्ट के कॉन्सर्ट की खबर सार्वजनिक हुई, लोग टिकट खरीदने के लिए उमड़ पड़े। आसपास के देशों से पर्यटक सिंगापुर पहुंचने लगे। होटलों की बुकिंग में तेजी से इजाफा हुआ। तीन लाख से ज्यादा लोग इस कॉन्सर्ट में शामिल हुए थे। अकेले मार्च 2024 में सिंगापुर में 14 लाख से ज्यादा पर्यटक पहुंचे थे। फूड और ड्रिंक्स पर खर्च 30% बढ़ गया। होटलों के किराए में 10% तक की वृद्धि हुई थी। टेलर स्विफ्ट का The Eras Tour अब तक पांच महाद्वीपों की यात्रा कर चुका है और टेलर अलग-अलग देशों में 149 शो कर चुकी हैं। स्विफ्ट की इसी लोकप्रियता को दुनियाभर में Swift-Effect और Swiftonomics का नाम दिया गया है। इसे कॉन्सर्ट इकोनॉमी भी कहा जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हाल ही में 'कॉन्सर्ट इकोनॉमी' का जिक्र किया था। उन्होंने यह जिक्र भारत में कोल्डप्ले बैंड के कॉन्सर्ट की शानदार सफलता के बाद किया था और कॉन्सर्ट इकोनॉमी में जबरदस्त संभावनाओं पर जोर दिया था। यह कॉन्सर्ट इकोनॉमी भारत की जीडीपी के लिए भी बूस्टर का काम कर सकती है। उदाहरण के तौर पर, भारतीय कलाकार दिलजीत दोसांझ के कॉन्सर्ट्स से भी इकोनॉमी को बढ़ावा मिला है। इसी तरह, यह छोटे राज्यों के लिए भी फायदेमंद साबित हो सकता है। अगर हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य में भी इस तरह के कॉन्सर्ट्स आयोजित किए जाएं, तो यहां भी पर्यटन और अर्थव्यवस्था दोनों का विकास होगा।

फंस गए केजरीवाल - सिसोदिया और आतिशी ....क्या पास कर पाएंगे चुनावी अग्निपरीक्षा !

In National News
Kejriwal - Sisodia and Atishi are stuck...will they be able to pass the election test?

'येन केन प्रकारेण' बीजेपी जीतना चाहेगी तीनों दिग्गजों की सीटें कांग्रेस के संदीप दीक्षित और अलका लाम्बा ने भी बना दिया है चुनाव !   ये चुनाव नहीं आसाँ बस इतना समझ लीजिए, एक आग का दरियाँ है और डूब के जाना है। कुछ ऐसी ही स्थिति इस बार दिल्ली में आम आदमी पार्टी की नज़र आ रही है। इस बार दिल्ली में आप की राह आसान नहीं है और दिलचस्प बात ये है कि पार्टी के तीनों मुख्य चहेरे, यानी सीएम आतिशी, पूर्व व प्रोजेक्टेड सीएम अरविन्द केजरीवाल और पूर्व डिप्टी व  प्रोजेक्टेड डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया भी अपनी -अपनी सीटों पर फंसे देख रहे है । इन तीनों दिग्गजों की सीटों पर इस बार मुकाबला टक्कर का है। 'येन केन प्रकारेण' बीजेपी इन सीटों को जीतना चाहती है और जमीनी स्तर पर इसका असर दिख भी रहा है।     सिलसिलेवार बात करें तो नई दिल्ली से, अरविन्द केजरीवाल के सामने बीजेपी और कांग्रेस, दोनों ने पूर्व मुख्यमंत्रियों के पुत्रों को मैदान में उतारा है। बीजेपी से पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा है तो दूसरी तरफ कांग्रेस से पूर्व सीएम शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित। ये दोनों ही दो -दो मर्तबा सांसद भी रहे है और दोनों ने ही पूरी ताकत झोंकी है। ऐसे में इस सीट पर केजरीवाल की राह आसान जरा भी नहीं है।   वहीं कालका जी सीट में भी आतिशी और भाजपा प्रत्याशी रमेश बिधूड़ी तो आमने-सामने थे ही, लेकिन इस सीट पर अब कांग्रेस प्रत्याशी अलका लाम्बा भी मजबूती से लड़ रही है। यहाँ भी मुकाबला त्रिकोणीय है और माहिर भविष्यवाणी करने से बचते दिख रहे है।      बात मनीष सिसोदिया की करें तो इस बार आप ने उन की सीट बदल दी है और उन्हें पटपड़गंज की जगह जंगपुरा से मैदान में उतारा है। इस सीट पर बीजेपी के तरविंदर सिंह तो बेहद मजबूती के साथ चुनाव लड़ ही रहे है, कांग्रेस के फरहाद सूरी को भी हल्का नहीं लिया जा सकता। माहिर मान रहे है कि सूरी इस सीट पर सिसोदिया संकट में है।      चर्चा सिसोदिया की पटपड़गंज सीट की भी करते है जहाँ से इस बार आप ने अवध ओझा को मैदान में उतारा है। यहाँ मुख्य रूप से यहाँ मुकाबला अवध ओझा और बीजेपी से रविंद्र नेगी के बीच माना जा रहा है। पिछले चुनाव में भी नेगी ने सिसोदिया को कड़ी टक्कर दी थी और इस बार भी ओझा यहाँ उलझे दिखे है। बहरहाल कल मतदान है और आठ फरवरी को नतीजा सामने होगा। अब आप के ये तीन दिग्गज इस चुनावी अग्नि परीक्षा को पास करते है या नहीं, ये जनता तय करेगी।

टेलर स्विफ्ट का Swift-Effect....... वो मॉडर्न पॉप सेंसेशन जो किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में फूंक देती हैं जान

In International News
taylor swift swiftnomics

टेलर स्विफ्ट कई देशों को मंदी के दौर से उबार रही हैं... यह सुनने में काफी अजीब लग रहा है... मगर बिल्कुल सच है। दरअसल, टेलर स्विफ्ट की लोकप्रियता का आलम यह है कि वह जिस भी शहर या देश में परफॉर्म करती हैं, वहां की जीडीपी को एकदम से बूस्ट कर देती हैं। यह कहानी शुरू हुई दक्षिण-पूर्व एशिया के छोटे से देश सिंगापुर से, जिसे 2023 में मंदी का खतरा नजर आने लगा था। यह वह समय था जब टेलर स्विफ्ट अपने वर्ल्ड टूर की योजना बना रही थीं। जब सिंगापुर की सरकार को पता चला कि टेलर स्विफ्ट कॉन्सर्ट के लिए एशिया के किसी ऐसे देश की तलाश कर रही हैं, तो सिंगापुर के प्रधानमंत्री ने टेलर स्विफ्ट के साथ छह शो को लेकर एक एग्रीमेंट साइन किया। इस एग्रीमेंट के तहत सिंगापुर में एक शो के बदले स्विफ्ट को लाखों डॉलर दिए गए, लेकिन साथ ही शर्त रखी गई कि वह अपने Eras Tour को सिंगापुर के अलावा किसी अन्य दक्षिण-पूर्व एशियाई देश में लेकर नहीं जाएंगी। स्विफ्ट मान गईं। सिंगापुर में टेलर स्विफ्ट के छह शो ने कमाल कर दिया और हिचकोले खा रही सिंगापुर की अर्थव्यवस्था को इससे 375 मिलियन डॉलर (37.5 करोड़ डॉलर) का सीधा फायदा हुआ। कैसे? वह भी समझते हैं। कई सालों से मंदी की आशंका से घिरे देश में लोग कंजूस बन बैठे थे। बाजार वीरान पड़े थे, लोग खरीदारी करने से परहेज कर रहे थे। लेकिन जैसे ही टेलर स्विफ्ट के कॉन्सर्ट की खबर सार्वजनिक हुई, लोग टिकट खरीदने के लिए उमड़ पड़े। आसपास के देशों से पर्यटक सिंगापुर पहुंचने लगे। होटलों की बुकिंग में तेजी से इजाफा हुआ। तीन लाख से ज्यादा लोग इस कॉन्सर्ट में शामिल हुए थे। अकेले मार्च 2024 में सिंगापुर में 14 लाख से ज्यादा पर्यटक पहुंचे थे। फूड और ड्रिंक्स पर खर्च 30% बढ़ गया। होटलों के किराए में 10% तक की वृद्धि हुई थी। टेलर स्विफ्ट का The Eras Tour अब तक पांच महाद्वीपों की यात्रा कर चुका है और टेलर अलग-अलग देशों में 149 शो कर चुकी हैं। स्विफ्ट की इसी लोकप्रियता को दुनियाभर में Swift-Effect और Swiftonomics का नाम दिया गया है। इसे कॉन्सर्ट इकोनॉमी भी कहा जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हाल ही में 'कॉन्सर्ट इकोनॉमी' का जिक्र किया था। उन्होंने यह जिक्र भारत में कोल्डप्ले बैंड के कॉन्सर्ट की शानदार सफलता के बाद किया था और कॉन्सर्ट इकोनॉमी में जबरदस्त संभावनाओं पर जोर दिया था। यह कॉन्सर्ट इकोनॉमी भारत की जीडीपी के लिए भी बूस्टर का काम कर सकती है। उदाहरण के तौर पर, भारतीय कलाकार दिलजीत दोसांझ के कॉन्सर्ट्स से भी इकोनॉमी को बढ़ावा मिला है। इसी तरह, यह छोटे राज्यों के लिए भी फायदेमंद साबित हो सकता है। अगर हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य में भी इस तरह के कॉन्सर्ट्स आयोजित किए जाएं, तो यहां भी पर्यटन और अर्थव्यवस्था दोनों का विकास होगा।

'पयर्टन के लिए किलों का पुनरुद्धार' - लेखिका शीला सिंह

In Kavya Rath
'Revival of forts for tourism' - Author Sheela Singh

पयर्टन की दृष्टि से हिमाचल प्रदेश देशभर के मुख्य स्थलों में सबसे ऊपर है। इसी के अन्तर्गत जिला बिलासपुर भी किसी से कम नहीं, जहाँ पर्यटन स्थलों की लम्बी सूची देखी जा सकती है। इस दृष्टि से बिलासपुर जिला में राजाओं के समय बनाये गए किले अपना विशेष महत्व रखते हैं जिनका पहाड़ी के शीर्ष पर पर्यावरणीय और प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण वातावरण में स्थापन किया गया है। जिला बिलासपुर की तहसील घुमारवीं के त्यून खास का किला उनमें से एक है। त्यून किले के अवशेष त्यून श्रेणी के नाम से जानी जाने वाली पहाड़ी जो सतरह किलोमीटर लम्बी है के शिखर पर स्थित है। घुमारवीं से इसकी दूरी लगभग दस किलोमीटर है और बिलासपुर मुख्यालय से लगभग पैंतालीस किलोमीटर है। खण्डहरनुमा यह किला अपने भीतर डरा देने वाली अनेक कहानियों/स्मृतियों को समेटे हुए हैं। यह आज भी उस प्राचीन युद्ध मय अशान्त समय की याद दिलाता है,जहाँ विशाल मालखाना था और वहाँ पर राजाओं के समय में बड़ी संख्या में हथियार जमा किये जाते थे।इस क्षेत्र में युद्ध एक नियमित विशेषता थी। राजा काहन चंद ने इस का निर्माण 1142 विक्रमी संवत में करवाया था। किले का क्षेत्रफल लगभग 14 हेक्टेयर है और आकार में यह आयताकार है। इसकी लम्बाई 400 मीटर और चौडा़ई 200 मीटर है ।  इस किले की दीवारों की ऊँचाई 2 से लेकर 10 मीटर तक लगभग है। किले के मुख्य द्वार की ऊँचाई 3 मीटर व चौड़ाई 5 या 5 1/2मीटर है। पानी की व्यवस्था हेतु दो टैंक और दो बड़े-बड़े अन्न भण्डार थे जिनमें लगभग 3000 कि0 ग्रा0 से भी अधिक अन्न रखा जा सकता था। आज इन ऐतिहासिक किलों को पयर्टन की दृष्टि से विकसित करने के लिए कार्य किया जा सकता है।  फोरलेन से लगते गाँव पनोह से त्यून किले तक करीब 10किलोमीटर पैदल टरैक बनाया जा सकता है। ताकि पयर्टक इस पर ट्रैकिंग कर सकें। पनोह से किरतपुर -नेरचौक- कुल्लू मनाली  फोरलेन गुजर रहा है। इसे जब ट्रैक से जोड़ा जायेगा  तो देश विदेश से लोग इस किले के सौंदर्य को निहारने के लिए त्यून खास अवश्य पहुंचेंगे। इस प्रकार इन किलों को पयर्टन के लिए विकसित किया जियेगा तो जनता को सुविधाएं और सरकार को आय का साधन बनेगा।  

धर्मशाला: अब विदेशों में भी मिलेंगे नगरोटा के युवाओं को रोजगार के अवसर : आरएस बाली

In Job
Dharamshala: Now the youth of Nagrota will get employment opportunities in foreign countries also: RS Bali

29 व 30 जनवरी को होगा रोजगार मेले का आयोजन दुबई के लिए 100 से ज्यादा सिक्योरिटी गार्ड के लिए होगा साक्षात्कार होटल प्रबंधन में शेफ, कैटरिंग, हाउस कीपर, सर्विस-स्टाफ के लिए इंटरव्यू पर्यटन निगम के अध्यक्ष कैबिनेट रैंक आरएस बाली ने कहा कि अब विदेशों में भी नगरोटा के युवाओं को रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाए जाएंगे। उन्होंने कहा कि इस बाबत दुबई की कुछ कंपनियों के साथ हिमाचल सरकार ने करार किया है। उन्होंने कहा कि नगरोटा के आईपीएच के विश्राम गृह में 29 तथा 30 जनवरी को नगरोटा विस क्षेत्र के युवाओं के लिए रोजगार मेला आयोजित किया जाएगा, इसमें दुबई की विभिन्न कंपनियों के लिए 100 से ज्यादा सिक्योरिटी गार्ड के पदों के लिए भर्ती की जाएगी। इसके साथ ही होटल प्रबंधन में शैफ, कैटरिंग, हाउस कीपर, सर्विस स्टाफ के पदों के लिए भी भर्ती की जाएगी।           आरएस बाली ने कहा कि युवाओं को रोजगार उपलब्ध करवाना उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है। उन्होंने कहा कि चुनावों से पहले रोजगार संघर्ष यात्रा भी नगरोटा बगबां से ही आरंभ की गई थी। उन्होंने कहा कि नगरोटा विस क्षेत्र में वर्ष में दो बार रोजगार मेले आयोजित किए जाएंगे ताकि ज्यादा से ज्यादा युवाओं को घर द्वार पर रोजगार के अवसर मिल सकें। पर्यटन निगम के अध्यक्ष आरएस बाली ने कहा कि नगरोटा विस क्षेत्र में विकास पुरूष स्व जीएस बाली के जन्म दिन पर जुलाई माह में पहला दो दिवसीय रोजगार मेला आयोजित किया गया था जिसमें आयोजित रोजगार मेले के पहले दिन 670 युवाओं को नामी गिरामी कंपनियों में रोजगार के लिए चयनित किया गया। दूसरे दिन रोजगार मेले में 450 युवाओं का चयन किया था।      रोजगार मेले के समन्वयक अमित कुमार ने बताया कि पर्यटन निगम के अध्यक्ष कैबिनेट रैंक आरएस बाली तथा सरकार के अथक प्रयासों से दुबई की कंपनियों के साथ रोजगार के लिए करार किया गया है उसी के आधार पर 29 तथा 30 जनवरी को नगरोटा में दुबई की विभिन्न कंपनियों के लिए सिक्योरिटी गार्ड्स के लिए इंटरव्यू लिए जाएंगे इसमें 24 से 35 आयु वर्ग के युवा भाग ले सकते हैं, दस जमा दो उत्तीर्ण होना जरूरी है। न्यूनतम उंचाई पांच फुट सात इंच तथा वजन साठ किलो होना चाहिए। इस के लिए सैलरी 50 हजार से लेकर 70 हजार प्रतिमाह होगी तथा सिलेक्टिड अभ्यर्थियों को 15 दिन बिलासपुर तथा 15 दिन बाराणसी में प्रशिक्षण दिया जाएगा इसके साथ ही स्किल डिवल्पमेंट के तहत वीजा तथा हवाई टिकट भी सरकार की ओर से वहन किया जाएगा। इसके साथ ही होटल प्रबंधन में भी विभिन्न पदों के लिए साक्षात्कार लिए जाएंगे।

शिमला:जवाहर बाल मंच के स्टेट चीफ कॉडिनेटर बने महेश सिंह ठाकुर

In Banka Himachal
शिमला:जवाहर बाल मंच के स्टेट चीफ कॉडिनेटर बने महेश सिंह ठाकुर

हिमाचल प्रदेश यूथ कांग्रेस के महासचिव एवं सिस्को संस्था के अध्यक्ष महेश सिंह ठाकुर को जवाहर बाल मंच का राज्य मुख्य संयोजक नियुक्त किया गया है। चीफ स्टेट कॉडिनेटर बनाए जाने पर महेश सिंह ठाकुर ने कांग्रेस अध्यक्ष  मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी,प्रदेश के सीएम सुखविन्दर सिंह सूक्खु , राष्ट्रीय प्रभारी केसी वेणुगोपाल,जवाहर बाल मंच के राष्टीय अध्यक्ष जी.वी. हरि. सहित अन्य नेताओं के प्रति आभार जताया है।  महेश ठाकुर ने कहा कि जवाहर बाल मंच का मुख्य उद्देश्य 7 वर्षों से लेकर 17 वर्ष के आयु के लड़के लड़कियां तक भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के विचार को पहुंचना।  उन्होंने कहा कि जिस तरीके से मौजूदा सरकार के द्वारा देश के इतिहास के साथ छेड़छाड़ हो रहा है देश के युवाओं को भटकाया जा रहा है जो की देश के लिए एक बहुत बड़ा चिन्ता का विषय है कांग्रेस पार्टी ने इस विषय को गंभीरता से लिया और राहुल गांधी के निर्देश पर डॉ जीवी हरी के अध्यक्षता में देशभर में जवाहर बाल मंच के द्वारा युवाओं के बीच में नेहरू जी के विचारों को पहुंचाया जाएगा। उन्होंने कहा वर्ष 2024 के चुनाव में कांग्रेस भारी बहुमत हासिल कर केंद्र से भाजपा को हटाने का काम करेगी। इसमें हिमाचल प्रदेश राज्य की भी प्रमुख भुमिका रहेगी।  उन्होंने कहा कि पूरे देश में महंगाई के कारण आमलोगों का जीना मुश्किल हो गया है। गरीब व मध्यम वर्गीय परिवार पर इस महंगाई का व्यापक असर पड़ रहा है। ऐसे में केंद्र सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंग रही है।  

'मासूम' कांग्रेस पांच साल जयराम की 'ब्रांडिंग' करती रही !

In Siyasatnama
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मंडी में कांग्रेस 'ठंडी' ...क्या है कांग्रेस का रिकवरी प्लान ?  चंद्रशेखर इकलौते विधायक, तो ठाकुर कौल सिंह अब भी सबसे बड़ा चेहरा क्या दोनों का सियासी बल बढ़ाकर पटरी पर लौटेगी कांग्रेस ?         2022 के विधानसभा चुनाव से पहले मंडी में कांग्रेस के हालत-ए-हाल पर फर्स्ट वर्डिक्ट मीडिया ने एक विश्लेषण किया था, शीर्षक था "ख़ाक होने का अंदेशा है ख़ुदा ख़ैर करें"  तब कांग्रेस के कई नेताओं को ये शीर्षक खूब चुभा, जाहिर है वे इससे इत्तेफ़ाक़ नहीं रखते थे। फिर नतीजे आएं तो शीर्षक पर जनता की मुहर लग गई। दरअसल, विपक्ष में रहते कांग्रेस खुद ढोल पिटती रही कि जयराम ठाकुर तो सिर्फ मंडी के मुख्यमंत्री है, सारा विकास सिर्फ मंडी में हो रहा है। यानी एक किस्म से पांच साल कांग्रेस के नेताओं ने मंडी में भाजपा के काम का जमकर प्रचार किया, जयराम ठाकुर को मंडी में ब्रांड बना दिया। इस पर हिमाचल कांग्रेस की मासूमियत देखिये, 2022 में वही कांग्रेस उम्मीद कर रही थी कि मंडी की जनता उन्हें वोट देगी। तब कांग्रेसी नेताओं ने बात समझते-समझते बहुत देर कर दी।        चलो, जो बीत गई गई सो बात गई। बरहहाल बात करते है मंडी में कांग्रेस के लिए आगे क्या सम्भावना है। क्या मंडी में कांग्रेस के लिए कुछ तुरुस्त हुआ है ? क्या अब मंडी के मर्ज को कांग्रेस समझ पाई है ? क्या भविष्य के लिए कांग्रेस तैयार है ? हकीकत ये है कि अब भी दस सीटों वाला जिला मंडी हिमाचल कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी दिखता है। इसके दो कारण है, पहला है जयराम ठाकुर जो बीजेपी का प्राइम फेस है और इसका एडवांटेज बीजेपी को मंडी में मिल रहा है। दूसरा कारण है कांग्रेस में कोई मजबूत फेस का न होना। दरअसल सियासत में ताकत पद से मिलती है। जिला में पार्टी के इकलौते विधायक है चंद्रशेखर, जिनकी क्षमता पर भी कोई संदेह नहीं। विधायक महोदय को पार्टी ने सरकार में तो कोई अहम् पद नहीं दिया, लेकिन संगठन में कार्यकारी अध्यक्ष जरूर बनाया था। अब कांग्रेस संगठन में कार्यकारी अध्यक्ष पद का औचित्य क्या और कितना रहा है, ये अलग से विवेचना का विषय है। पर लब्बोलुआब ये है कि इसका ख़ास जमीनी असर मंडी में नहीं दिखा। वहीँ ,अब भी मंडी में कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे की बात करें तो बगैर किसी संकोच के ठाकुर कौल सिंह का नाम जुबां पर आता है, लगातार दो चुनाव हारने के बावजूद। वे भी एक किस्म से साइडलाइन है।    माहिर मानते है कि मंडी में कांग्रेस अपने इकलौते विधायक चंद्रशेखर और धरोहर नेता ठाकुर कौल सिंह की ताकत बढ़ा कर रिकवरी का ब्लू प्रिंट तैयार कर सकती है। अगर अप्रैल के बाद पीसीसी चीफ को बदला जाता है तो मुमकिन है चंद्रशेखर के नाम पर गंभीरता से विचार हो। यानी मंडी को कांग्रेस संगठन की कमान दी जा सकती है। जहाँ तक सवाल कैबिनेट में चंद्रशेखर की एंट्री का है, इसकी सम्भावना फिलहाल कम है। अगर मंडी संसदीय हलके से किसी की एंट्री के लिए पार्टी गुंजाईश बनती भी है तो संभव है कुल्लू विधायक सूंदर ठाकुर ही पहली पसंद हो। फिर भी इस सम्भावना को पूरी तरह  ख़ारिज नहीं किया जा सकता। इसी तरह वरिष्ठ नेता ठाकुर कौल सिंह को भी किसी महत्वपूर्ण बोर्ड निगम में एडजस्ट करने की चर्चा काफी वक्त से है। बहरहाल सरकार और संगठन में मंडी को कितना अधिमान मिलेगा, इसी पर निर्भर करेगा भविष्य में मंडी कांग्रेस पर कितनी मेहरबान रहती है। 

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