'न रहेगी जगमाता अगर तो पंच्चामृत कैसे बनाओगे' : एक महिला पुलिस कर्मी की कलम से
निच्छल आँखे मद्धम साँसे, प्यार से प्यारी सूरत है।
सहस्त्र देवों का वास देह पर, श्रद्धा की वो मूरत है।
मात्र दूध नही, मल-मूत्र भी पावन है जिसका,
अमृतदायिनी वो गौमाता धरा की मूल जरूरत है।।
क्या अलंकरण करें उसका ,जो सवयं देवदेहधारी है।
नव रस क्या गुणगान करें उसका,जो सवयं पयोनिधी सारी है।
देवता भी जिसकी सेवा मे है नतमस्तक,
ऋषि विशिष्ठ नें रक्षा मे उसकी सौ पूत्रों की जान वारी है।।
मैया कहलाई गुरू गोरखनाथ की,पूत्र गजानन गणेश।
कंठ में विष्णु, पीठ में ब्रह्मा, मुख मे बसे महेश।
लक्ष्मी चरण में, मुत्र में नदियां, नेत्र में रवि राकेश।
धरा को सवर्ग बनाने वाली माँ का अदभुत है भेस।।
गौसेवा प्रसाद राजा दिलीप ने पाया,तभी रामलल्ला आए।
कान्हा ने गौऊए चराई वृदावन में, शिव को नंदी भाए।
गौदान आधार सनातन धर्म का, भवसागर पार लगाए।
समुन्द्र मंथन के अमुल्य रतन ‘कामधेनू’ को
कलियूग में मूढ़ मानव मगर समझ न पाए।।
सोम्यता की मूरत सुरभि, खुन के अश्रु रो रही है।
कोई कटती कत्लखानों में, कोई सड़क में सो रही है।।
जग को अमृत पिलाने वाली, सवंय बिष पी रही है।
अपनी संतानों से होकर प्रताडित, वेदना में जी रही है।।
कभी राजनिति के गलियारों ने, कभी अखबार-समाचारों ने।
चर्चा का विषय बनाया जगमाता को धर्म के पेहरेदारों ने।
ममतामयी माँ ने दूध पिलाया सबको,
मगर धर्मांधता में काटा उसको देश के गद्दारों ने।।
न रहेगी जगमाता अगर तो पंच्चामृत कैसे बनाओगे।
कैसे पालोगे शिशुओ को, ईद में सैवइयां कैसे बनाओगे।
जगमाता विहीन जग में, न ममता न प्यार रहेगा।
धर्मग्रंथ कहते है, गौमाता के बिना नही संसार रहेगा।।
सुनिता ठाकुर
महिला पुलिस कर्मी