'जीने की असली उम्र तो 60 साल है, बुढ़ापे में ही असली ठाठ है।'
एक कारगिल योद्धा सूबेदार मेजर, आनरेरी कप्तान का, वेटरन इंडिया एवं सर्व साधारण बुजुर्गो के लिए समर्पित, संग्रहित, एक छोटी सी कहानी
जीने की असली उम्र तो 60 साल है।
बुढ़ापे में ही असली ठाठ है।
ना बचपन का होम वर्क,
ना जवानी का संघर्ष,
ना 40 की परेशानियां,
बेफिक्र दिन, और सुहानी रात।
जीने की असली उम्र तो...
ना स्कूल की जल्दी,
ना ऑफिस की किट किट,
ना बस की लाइन, ना ट्रैफिक का झमेला,
सुबह रामदेव का योगा,
दिन भर खुली धूप,
दोस्तों यारों के साथ,
राजनीति पर चर्चा आम है।
जीने की असली उम्र तो ....
ना ममी डैडी की डांट,
ना ऑफिस में बॉस की फटकार,
पोतो पोतियों के खेल में,
बेटे बहू का प्यार,
इज़त से झुकते सिर,
सबके लिए आशीर्वाद व दूवाओं की भरमार।
जीने की असली उम्र तो ....
ना स्कूल की डिसिप्लिन,
ना ऑफिस में बोलने कि कोई पाबन्दी, ना घर पर बुजुर्गो की रोक टोक, खुली हवा में हंसी के ठहाके, बेफिक्र बातें,
किसी को भी कहने के लिए आजाद है।
जीने की असली उम्र तो,60 साल है।
दोस्तों,
मैं किसी से बेहतर करू,
क्या फ़र्क पड़ता है ।
मैं किसी का बेहतर करू,
बहुत फ़र्क पड़ता है ।
जय हिन्द, जय भारतीय सेना, जय वेटरन इंडिया ।
कप्तान शाम लाल शर्मा
शिमला