प्रहलाद के पोते महाबली के स्वागत में प्रति वर्ष आयोजित किया जाता है ओणम

ओणम केरल का एक प्रमुख त्यौहार है। ओणम का उत्सव सितम्बर में राजा महाबली के स्वागत में प्रति वर्ष आयोजित किया जाता है जो दस दिनों तक चलता है। ओणम में केरल के प्रत्येक घर के आँगन में फूलों की पंखुड़ियों से सुन्दर-सुन्दर रंगोलिया (पूकलम) डाली जाती हैं। युवतियां उन रंगोलियों के चारों तरफ वृत्त बनाकर उल्लास पूर्वक नृत्य (तिरुवाथिरा कलि) करती हैं। इस पूकलम का प्रारंभिक स्वरुप पहले (अथम के दिन) तो छोटा होता है परन्तु हर रोज इसमें एक और वृत्त फूलों का बढ़ा दिया जाता है। इस तरह बढ़ते-बढ़ते दसवें दिन (तिरुवोनम) यह पूकलम वृहत आकार धारण कर लेता है। इस पूकलम के बीच त्रिक्काकरप्पन (वामन अवतार में विष्णु), राजा महाबली तथा उसके अंग रक्षकों की प्रतिष्ठा होती है जो कच्ची मिट्टी से बनायीं जाती है। ओणम एक सम्पूर्णता से भरा हुआ त्योहार है जो सभी के घरों को ख़ुशहाली से भर देता है।
ओणम पर पौराणिक कथा
महाबली प्रहलाद के पोते थे। प्रहलाद जो हिरण्यकश्यप असुर के बेटे थे लेकिन फिर भी प्रहलाद विष्णु के भक्त थे। महाबली भी प्रहलाद की तरह भगवान विष्णु के भक्त थे। समय आगे बढ़ता गया और वे बड़े होते गये। उनका साम्राज्य स्वर्ग तक फैला हुआ था ,इस बात से उनकी प्रजा बहुत खुश थी। एक बार विष्णु भगवान वामन के वेश में उनके सामने गये। विष्णु जी ने तीन पग मीन का दान माँगा था। राजा महाबली इस बात को बहुत ही साधारण समझ रहे थे लेकिन यह साधारण बात नहीं थी। जब राजा महाबली ने तीन पग जमीन देने के लिए हामी भर दी तो भगवान विष्णु ने अपना विराट रूप ले लिया। उन्होंने अपने एक पग से पूरी धरती को नापा और दूसरे पग से आकाश को लेकिन तीसरे पग के लिए कुछ नहीं बचा तो राजा बलि ने अपना शरीर अर्पित कर दिया क्योंकि राजा बली ने अपना सब कुछ दान कर दिया था तो वे धरती पर नहीं रह सकते थे। विष्णु भगवान ने उन्हें पाताल लोक जाने के लिए कहा लेकिन जाने से पहले भगवान विष्णु ने उनसे एक वरदान मांगने के लिए कहा। राजा बली गरीबों को बहुत दान देते थे। राजा बली अपनी प्रजा से बहुत प्यार करते थे तो उन्होंने साल में एक दिन धरती पर आकर अपनी प्रजा को देखने का वरदान माँगा। भगवान विष्णु ने उनके इस वरदान को स्वीकार कर लिया। ऐसा माना जाता है कि श्रावण मास के श्रवण नक्षत्र में राजा बली अपनी प्रजा को देखने के लिए खुद धरती पर आते हैं। मलयालम में श्रवण नक्षत्र को ओणम कहते हैं इसीलिए इस पर्व का नाम भी ओणम पड़ गया। तभी से इस त्यौहार को ओणम के नाम से मनाया जाने लगा।
ओणम त्यौहार के पीछे चाहे कोई भी कहानी हो लेकिन यह बात तो स्पष्ट हैं कि यह हमारी संस्कृति का एक आईना है। यह हमारी भव्य विरासिता का प्रतीक होता है।
ओणम का पर्व इसलिए भी होता है खास
-ओणम का पर्व फसल उत्सव भी होता है। यह त्यौहार आमतौर पर अगस्त या फिर सितंबर के महीने में आता है। ओणम त्यौहार के दिन कई तरह के नृत्य प्रस्तुत करने की परम्परा है। इस दिन केरल का सबसे लोकप्रिय कथकली नृत्य किया जाता है।
-इस दिन औरतें सफेद साड़ी पहनती हैं और बालों पर फूलों की वेणियों को सजाकर नृत्य करती हैं। ये सभी कार्यक्रम इस दिन व्यापक रूप से किए जाते हैं। इन कार्यक्रमों में सभी लोग बहुत ही बढ़-चढकर हिस्सा लेते हैं। ओणम का त्यौहार अपने साथ सुख-समृद्धि, प्रेम-सौहार्द और परस्पर प्यार और सहयोग का संदेश लेकर आता है।