नादौन स्थित गुरुद्वारे का इतिहास
ऐतिहासिक गुरुद्वारा साहिब नादौन के कारण ही नादौन नगरी की पहचान विश्व पटल पर की जाती है। नादौन में स्थित इस ऐतिहासिक गुरूद्वारा में स्थानीय लोगों सहित अन्य प्रदेशों के लोगों में भी गहरी आस्था है। इतिहास गवाह है की पहाड़ी राजाओं के आह्वान पर दशम पातशाही श्री गुरु गोविंद सिंह जी नादौन पधारे तथा मुगल सेनापति आलिफ खां को अपनी सेना सहित यहां से भागने के लिए मजबूर कर दिया था। गुरू जी ने राजा भीम चंद के आग्रह पर सन 1687 में मुगलों के साथ युद्ध किया था। श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने मुगल सैनिकों को खदेड़ने के बाद अपने साथ लाए सैनिकों सहित 9 दिनों तक यहां विश्राम किया था। आज उसी स्थल पर यह भव्य गुरुद्वारा बना हुआ है। जहां भारत सहित पूरे विश्व भर के लोग पहुंचकर नतमस्तक होकर मन्नत मानते हैं और गुरु जी से अपने व अपने परिवार के उज्जवल भविष्य की प्राथर्नाएं करते हैं। गुरु जी ने इसी काल में लिखित अपनी पावन पुस्तक विचित्र नाटक के कुछ पन्ने इसी स्थल पर ब्यास नदी के किनारे स्थित मनोरम स्थान पर लिखे थे। स्थल के पास ही गुरु जी ने अपने सिंह सैनिकों को साथ लेकर मुगल सेनापति अलिफ खां की सेना पर बाघ की तरह दहाड़ते हुए उन्हें भागने पर मजबूर कर दिया था। आज यह स्थान उसी याद में बाघ नाला के नाम से जाना जाता है। वहीं गुरुद्वारे से चार किलोमीटर दूर गुरु जी ने मुगल सैनिकों पर फतेह का तीर छोड़ा था और विजय हासिल की थी। उस स्थान का नाम आज भी फतेहपुर के नाम से जाना जाता है। आज भी यहां गुरूद्वारा में फतेह दिवस धूमधाम से मनाया जाता है। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार बिलासपुर के तत्कालीन राजा व अन्य राजाओं ने मुगलों को कर देने से इंकार कर दिया था, जिसे पहाड़ी राजाओं ने गुरुजी से उनकी सहायता के लिए तुरंत नादौन पहुंचने की गुहार लगाई थी। गुरु जी ने नादौन पहुंचकर मुगल सैनिकों के छक्के छुड़ा दिए थे और पहाड़ी राजाओं को अभय दान दिया था। गौर हो कि इसी गुरुद्वारा साहिब के कारण नादौन शहर को विश्व भर में एक अलग पहचान मिली है। सबसे पहले महाराजा रणजीत सिंह ने यहां एक छोटे गुरूद्वारा का निर्माण करवाया था परंतु बाद में काफी समय तक यहां के महंतों व पुजारियों ने इसकी देखभाल की। 1925 से 1928 तक अमृतसर के विसाखा सिंह ने दिल्ली के ठेकेदार राय सिंह को प्रेरित करके यहां गुंबद वाले गुरूद्वारा का निर्माण करवाया था। आजकल इस गुरुद्वारे का संचालन शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी अमृतसर द्वारा चलाया जा रहा है। गुरुद्वारे में अटूट लंगर की व्यवस्था है। भिक्खोवाल के बाबा द्वारा भव्य सराय का निर्माण किया गया है, जहां श्रद्धालुओं को नि:शुल्क विश्राम की व्यवस्था रहती है। यही नहीं गुरुद्वारे के पास ही ब्यास नदी का दृश्य मन को मोह लेता है और निकट ही बल्ला नामक स्थल पर प्राचीन साइबेरियन पक्षियों को नदी में तैरते हुए देखना किसी कुदरत के करिश्मे से कम नहीं है।