अपनी कल्पनाओं को मूर्ति का रूप देकर पाया पद्मश्री सम्मान, अब स्थानीय हस्तशिल्पियों को तराशेंगे करतार सिंह सौंखले
हमीरपुर, 05 फरवरी। चुनौतियों को स्वीकार करने का ज़ज्बा अगर दिल में हो तो कोई भी मंजिल मुश्किल नहीं होती और सफलता हरदम आपके कदम चूमती है। इसे साबित कर दिखाया है हमीरपुर जिला के नौहंगी गांव में रहने वाले श्री करतार सिंह सौंखले ने। कांच की बोतलों में बांस की लकड़ी से अपनी कल्पनाओं को मूर्त रूप देने वाले करतार सिंह के शौक ने उन्हें पद्य श्री सम्मान से अलंकृत होने का गौरव प्रदान किया है।
गलोड़ के नारा नटनेड़ गांव में पिता परस राम व माता जानकी देवी के घर में जन्में करतार सिंह तीन भाईयों में सबसे छोटे हैं और इनकी चार बहनें हैं। इनके पूर्वज कभी राजस्थान से महाराणा की सेना में शामिल होकर हमीरपुर पहुंचे और यहीं के होकर रह गए। पिता परस राम तीन दशकों से अधिक समय तक सरपंच रहे। परिवार में पत्नी सुनीता स्कूल प्रवक्ता हैं और इकलौता बेटा केतन सौंखले फिजियोथैरेपिस्ट।
करतार सिंह कहते हैं कि वे बचपन से ही चुनौतियां स्वीकार करने में आगे रहे और छिटपुट तकनीकी कार्य स्वयं करते थे। एक तरह से जैक ऑफ ऑल ट्रेड करतार सिंह की लकड़ी की पहली कृति एक उखड़े पेड़ को देखकर उनके दिमाग में कौंधी थी। याद करते हुए बताते हैं कि शायद वे तब दसवीं कक्षा में पढ़ते थे। घर के आंगन में पढ़ाई करने बैठे थे और सामने तेज़ हवा के कारण जड़ से उखड़ा एक पेड़ देखा तो उसमें कुछ आकृति नजर आई। बाद में इसने एक शेर की शक्ल अख्तियार की जो आज भी उनकी ऑर्ट गैलरी की शोभा बढ़ा रही है।
धीरे-धीरे उनका रुझान बांस की कलाकृत्तियां बनाने की ओर बढ़ा। वर्ष 1986 में वे फार्मासिस्ट के पद पर राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (तत्कालीन क्षेत्रीय इंजीनियरिंग कॉलेज), हमीरपुर में तैनात हुए। यहां वे कभी पेन स्टैंड तो कभी कोई अन्य कलाकृत्ति गढ़ते और संस्थान के छात्रों को उपहार में दे भी देते। वर्ष 2000 के आस-पास उन्होंने कांच की बोतलों में बांस की सूक्ष्म (मीनियेचर कार्विंग) कृत्तियां उकेरनी प्रारम्भ की। इसका मजेदार किस्सा वे सुनाते हैं कि एक दिन घर के समीप राह चलते एक विशेष डिजायन की खाली बोतल पड़े देखी तो उठाकर घर ले आए। उसमें उन्होंने बांस से कृत्ति बनानी शुरू की और इसने शिमला के रिज पर स्थित चर्च का आकार लिया। प्रथम सफलता से उत्साहित करतार सिंह ने इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा और आज बांस की अनेकोंनेक सूक्ष्म कृत्तियों को संजोकर उन्होंने इस अनूठी कला को राष्ट्रीय व विश्व स्तर पर पहुंचाने का कार्य किया है।
करतार सिंह अपनी इस कला को निखारने में किए गए प्रयासों को संघर्ष नहीं मानते बल्कि इस कार्य को करने में उन्हें आनंद की अनुभूति होती है। बकौल करतार सिंह लगातार 18-18 घंटे काम करने के बावजूद कभी थकान महसूस नहीं की। कई बार घंटों मेहनत के बावजूद आकृत्तियां मनचाहा स्वरूप नहीं ले पाती तो कुछ देर के लिए सोने चले जाते। इसी बीच जैसे ही किसी नए आकार का विचार मन में आता तो झट से उठकर आधी रात को भी काम करने लग जाते। उनकी इसी लगन व जुनून ने उन्हें इस कला में सिद्धहस्त कर दिया। वे जोड़ते हैं कि मेडिकल प्रोफेशन में होने के बावजूद इसी कला ने मुझे खींचा और मैं इसमें डूबता चला गया।
उनकी कृत्तियों में हिमाचल के ग्रामीण जीवन, मंदिर व पहाड़ी भवन-निर्माण शैली की झलक दिखाते यहां के पुरातन एवं ऐतिहासिक भवन, देवी-देवताओं के स्वरूप तो मिल ही जाएंगे, साथ में सामाजिक संदेश देती कृत्तियां उनके भावों को भी अभिव्यक्त करती हैं। पारदर्शी कांच की बोतल में शांतचित्त विराजे शिव-पार्वती की कृत्ति आज भी उनके दिल के काफी करीब है। वहीं मां से लिपटे बच्चों की कलाकृत्ति एक विशेष सामाजिक संदेश देती है। करतार सिंह के शब्दों में “बचपन में मां मेरी, बड़े होने पर मां तेरी”। चंद शब्दों में कही उनकी बात आज की युवा पीढ़ी को मां-बाप की निरंतर सेवा का संदेश देती है, वहीं उन्हें सचेत भी करती है।
प्रधानमंत्री के आह्वान से हुए प्रेरित
कोरोना काल में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी से लेकर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर तक की प्रतिकृत्तियां उनकी कांच की बोतलों में आकार ले चुकी हैं। करतार सिंह बताते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “बैस्ट फ्रॉम वेस्ट” (बेकार में से सर्वोत्तम) तथा “आपदा में भी अवसर” के मंत्र से वे खासे प्रभावित हुए और लॉकडाऊन अवधि में उन्होंने खाली पड़ी कांच की बोतलों में बांस की सूक्ष्म कलाकृत्तियां बनाकर समय का सदुपयोग किया। स्थानीय सांसद एवं केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर के प्रोत्साहन को भी वे अमूल्य मानते हैं।
पद्य श्री करतार सिंह कहते हैं कि उन्होंने पैसों के बजाय शौक को हमेशा आगे रखा और यही कारण रहा कि उन्होंने कभी व्यवसायिक तौर पर अपनी कलाकृत्तियों की बिक्री के बारे में नहीं सोचा। देश का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान मिलने से उत्साहित वे कहते हैं कि उनकी जीवन यात्रा सही मायने में अब यहां से प्रारम्भ हुई है। इस सम्मान ने उन्हें नई ऊर्जा प्रदान की है तथा कला के क्षेत्र में और बेहतर करने की प्रेरणा भी मिली है।
उनका कहना है कि युवाओं के लिए कला का क्षेत्र अपने विचारों को अभिव्यक्त करने का सशक्त माध्यम है और इसमें स्वरोजगार के भी बेहतर अवसर हैं। भविष्य में वे इस कला को पर्यटन से जोड़कर इसके विस्तार के लिए सरकार के साथ सहयोग करने की सोच रखते हैं। पर्यटन विभाग के माध्यम से इन विशिष्ट उत्पादों को होटलों इत्यादि में प्रदर्शित करने के साथ ही बिक्री से आय भी हो सकती है। इसका कुछ लाभांश उत्पादों की कारीगरी से जुड़े लोगों में बांट कर उनकी आजीविका भी चलाई जा सकती है।
स्थानीय हस्तशिल्पियों को देंगे प्रशिक्षण
करतार सिंह अब भारत सरकार की ओर से संचालित एकीकृत हस्तशिल्प विकास एवं प्रोत्साहन परियोजना (इंटेग्रेटिड प्रोजेक्ट फॉर ड्वल्पमेंट एंड प्रोमोशन ऑफ हैंडीक्राफ्ट्स) के साथ स्थानीय स्तर पर जुड़ रहे हैं। जिला उद्योग केंद्र हमीरपुर इस परियोजना के अंतर्गत 8 फरवरी, 2021 से एक विशेष प्रशिक्षण शिविर आयोजित कर रहा है। इस शिविर में 30 प्रशिक्षु कारीगरों को बैंबू क्राफ्ट (बांस शिल्प कला) पर प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा, जिसमें बतौर मास्टर ट्रेनर करतार सिंह उन्हें कला की बारीकियों से रू-ब-रू करवाएंगे। यह शिविर नादौन क्षेत्र की ग्राम पंचायत झलाण के घड़ोह गांव में 8 फरवरी से 13 मार्च, 2021 तक आयोजित किया जा रहा है।
बांस कला का जादूगर
मुख्यमंत्री श्री जयराम ठाकुर की पहल पर भाषा, कला, संस्कृति विभाग की ओर से शिमला के बैंटनी कैसल में वर्ष 2018 में आयोजित “ग्राम शिल्प मेला” में इनकी कलाकृत्तियों को काफी सराहना मिली। इसके अतिरिक्त ऊना, मंडी एवं हमीरपुर में भी कलाकृत्तियों का प्रदर्शन विभाग के माध्यम से किया गया। अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त रौरिक आर्ट गैलरी, नग्गर (कुल्लू) में भी वे अपनी कलाकृत्तियां प्रदर्शित कर चुके हैं। वहां के क्यूरेटर ने उन्हें “बांस कला का जादूगर” कहा था, क्योंकि इनकी हस्तकला अन्य विधाओं से भिन्न है। यह कला इस बात से भी अचम्भित करती है कि शीशे की पारदर्शी छोटी सी बोतल के अंदर बड़े आकार की कृत्तियां कैसे बना देते हैं। उनकी कारीगरी हिमाचल प्रदेश की स्थापत्य कला एवं सांस्कृतिक धरोहरों का भी ज्ञान कराती हैं। वर्ष 2012 से 2016 तक राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान हमीरपुर में कला प्रदर्शनी का अवसर मिला।
लॉकडाऊन में मेहनत से बने ग्रांड मास्टर
इंडियन बुक ऑफ रिकॉर्ड्स की ओर से उन्हें सितम्बर, 2020 में शीशे की पारदर्शी बोतल में बांस की सूक्ष्म कृत्तियां बनाने के लिए नया रिकॉर्डधारी घोषित कर “इंडियन एक्सीलेंसी अवार्ड” से भी नवाजा गया। इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में उन्होंने आइफिल टॉवर, मंदिरों, भवनों, तोप, मगरमच्छ इत्यादि की बांस की 80 अनुकृत्तियां बनाने तथा शीशे की बोतल में गांधी जी की प्रतिकृति, कुर्सी, समुद्री जहाज इत्यादि उकेरने का रिकॉर्ड बनाया। एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स के अंतर्गत उन्हें लॉकडाऊन के दौरान शीशे की बोतलों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, गुरू नानक देव एवं साईं बाबा की कुल 6 प्रतिकृत्तियां बनाने के लिए “ग्रांड मास्टर” की उपाधि दी गई। स्थानीय स्तर पर “हमीर गौरव अवार्ड” से भी सम्मानित हो चुके हैं।