करसोग : पांगणा में धूमधाम से मनाया गया "माड़" पर्व
सतलुज घाटी क्षेत्र के अंतर्गत सुकेत क्षेत्र में गोपूजा के वैदिक पर्व "माड़" का आज भी पारम्परिक ढंग से आयोजन होता है। सुकेत संस्कृति साहित्य एवम् जन-कल्याण मंच पांगणा के अध्यक्ष डाॅक्टर हेमेंद्र बाली "हिम" का कहना है कि "माड़" का पर्व गोपूजा का पर्व है। इसका आयोजन भव सागर से मुक्ति के निमित किया जाता है। चूंकि सुकेत में "माड़" पर्व पर गाये जाने वाले "माड़" गीतों में गोमाता से अपनी मुक्ति की कामना की जाती है। "माड़" पर्व वैदिक पर्व है, ऋग्वैदिक काल में राजा भी गोधन को प्राप्त करने के लिये युद्ध किया करते थे, जिसे "गविष्टि" कहा जाता है। पुरातत्व चेतना संघ मंडी द्वारा स्वर्गीय चंद्रमणी कश्यप पुरातत्व चेतना राज्य पुरस्कार से सम्मानित डाक्टर जगदीश शर्मा का कहना है कि ऐतिहासिक नगरी पांगणा में यूं तो हर मौसम में अलग-अलग पर्व मनाए जाते है। लेकिन पशुधन से संबंधित "माड़" पर्व मनाने का तरीका कुछ अलग ही है।
इस पर्व की शुरुआत "माड़ पुन्या" से आठ दिन पहले हो जाती है। रात को महिलाएं भोजन आदि से निवृत्त होकर किसी एक घर में इकट्ठी होकर "तू ता "माड़े" केता देशा आई हो-2, हां ता "माड़े" कुुल्लू कलंदरा देशा आई हो-2, "माड़" "नैहरी कुल्ह" गीत गाती हैं। यह दौर "माड़"की पूर्व रात्रि तक चलता है। आज "माड़" के पावन अवसर पर ब्रह्म मुहूर्त में उठकर महिला-पुरुषों-बच्चों ने जागते ही उत्साह में भर मशालों की रोशनी के साथ पशुधन को खेतों में चरने छोड़ा। खेतों में अलाव जलाकर-"माड़ो"-"माड़ो"-"माड़ो" के उद्घोष उच्चारित कर खुशियां मनायी। "माड़ो"-"माड़ो" की स्वर धाराओं से लगा कि पहाड़ों की संस्कृति के अद्भुत अध्याय में"माड़" भी एक है। चारों ओर अलाव ही अलाव, एक दूसरे से बढ़कर अलाव। ऐसे में पांगणा की पहाड़ियों मे अलावों से प्रकृति की अनुपम छटा बिखर गई। इस दौरान महिला-पुरुष गौशाला की सजावट में जुट जाते हैं।सूर्योदय से पूर्व पशुधन के चरागाह से लौटते ही प्रमुख रुप से गाय को फूलों की मालायें पहनाकर कुंकुम, अक्षत, पुष्प से पूजा की गई। इसके उपरांत गाय को नवान्न मिलाकर चोकर खिलाई गई। गौ पूजा के बाद अन्य पशुधन की पूजा-अर्चना कर उन्हें "दाड़ा" (चोकर) खिलाई गई।
कहा जाता है कि जिन घरों मे "माड़"के अवसर पर गाय की पूजा होती है, उस घर मे कामधेनु मां की कृपा अवश्य होती है। मन्नोवाञ्छित फल देने वाली मां कामधेनु अपनी अलौकिक प्रकाश के साथ उस घर मे नित्य विराजमान रहती है। "माड़" पर्व से घर में श्रद्धा भक्ति का विकास होता है। मन्नोवाञ्छित फल देने वाली मां कामधेनु अपनी अलौकिक प्रकाश के साथ उस घर मे नित्य विराजमान रहती है। "माड़" पर्व से घर में श्रद्धा भक्ति का विकास होता है। सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की जिला सलाहकार लीना शर्मा, रमेश शास्त्री, व्यापार मंडल पांगणा के अध्यक्ष सुमित गुप्ता व अध्यापक लक्ष्मी दत्त चौहान का कहना है कि आज के भौतिक युग में जहां गोधन सड़कों पर भटकने के लिये अभिशप्त है ऐसे में सुकेत-पांगणा का माड़ पर्व गोधन रक्षा व पूजन के लिये समर्पित है।