अभी 6 राज्यों में भाजपा सरकार, 2022 लेगा असल इम्तिहान
2022 में देश के सात राज्यों में चुनाव होने है। ये राज्य है गोवा, मणिपुर, पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और गुजरात। चुनावी अखाड़े में एक दूसरे को पटखनी देने के लिए राजनीतिक दलों ने अभी से कमर कस ली है। कहां किन राज्यों में किस पार्टी से हाथ मिलाना है, किन पुराने दुश्मनों को दोस्त बनाना है और किसे आखिरी वक्त पर झटका देना है, इन सारे मुद्दों पर पर्दे के पीछे खेल शुरू हो गया है। फिलहाल इन 7 में से 6 राज्यों में भाजपा की सरकार है। स्पष्ट है कि ये दबदबा कायम रखने के लिए बीजेपी हर संभव प्रयास करेगी। या यूँ कहे कि प्रयास और परिश्रम दोनों शुरू हो चुके है। दिलचस्प बात ये है कि हालहीं में इनमें से दो राज्यों में तो पार्टी मुख्यमंत्री बदल चुकी है। लग रहा है मानों एंटी इंकम्बैंसी ख़त्म करने के लिए चेहरे बदलने की रणनीति पर पार्टी आगे बढ़ने का मन बना चुकी है।
हिमाचल प्रदेश : उपचुनाव पर टिकी सबकी नज़र
हिमाचल में भी 2022 में विधानसभा चुनाव होने है। बीते 2017 के विधानसभा चुनाव में जनता ने भाजपा को जीतवा दिया लेकिन सीएम फेस प्रो प्रेमकुमार धूमल को हराकर नेतर्त्व परिवर्तन की राह प्रशस्त कर दी। इसके पश्चात मुख्यमंत्री के तौर पर एंट्री हुई जयराम ठाकुर की। अब तक के अपने कार्यकाल में जयराम ठाकुर हर चुनौती का पूरी ताकत से सामना करते आए है। पहले मंत्रिमंडल और फिर धीरे धीरे संगठन पर भी मुख्यमंत्री ने नियंत्रण बना लिया। जो धूमल समर्थक मंत्री बनने का सपना देख रहे थे वो या तो कम में सेटलमेंट को राज़ी गए, या साइडलाइन कर दिए गए। कुछ समय पहले तक सब ठीक लग रहा था परन्तु अब प्रदेश में लगातार बढ़ रही धूमल की सक्रियता और केंद्र की सियासत में बढ़ रहे धूमल पुत्र अनुराग ठाकुर के कद ने समीकरण कुछ बदले जरूर है। भाजपाइयों की निष्ठा दो तबकों में बंटती नज़र आ रही है। पर ख़ास बात ये है कि विधानसभा चुनाव से पहले हिमाचल में उपचुनाव होने है, जिस पर सबकी नज़र है।
उत्तर प्रदेश : यहाँ लगातार दूसरी बार कोई सीएम नहीं बना
देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में आगामी फरवरी-मार्च में चुनाव संभावित है। 403 सीट वाली उत्तर प्रदेश विधानसभा में साल 2017 के चुनाव में बीजेपी ने एकतरफा जीत दर्ज की थी। तब बीजेपी को 312 सीटों पर जीत मिली थी। हालांकि तब सत्तारूढ़ सपा और कांग्रेस में गठबंधन हुआ था पर जनता ने उस गठबंधन को तारे दिखा दिए थे। चुनाव के बाद भाजपा से योगी आदित्यनाथ के अलावा दिनेश शर्मा और केशव प्रसाद मौर्य भी सीएम पद के दावेदार थे, लेकिन आलाकमान का आशीर्वाद मिला योगी आदित्यनाथ को। अब योगी के चेहरे पर ही भाजपा फिर मैदान में है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को चुनाव प्रभारी की कमान सौंपी गई है। इनके आलावा राज्य में सात सह प्रभारी नियुक्त किए गए है, जिसमें केंद्रीय मंत्री और हमीरपुर से सांसद अनुराग ठाकुर भी शामिल है। उत्तर प्रदेश के चुनावी इतिहास में कोई भी मुख्यमंत्री लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री नहीं चुना गया है। हालाँकि योगी लगातार दावा कर रहे है की वो ही दूसरी बार मुख्यमंत्री चुने जाएंगे। पर उनकी राह आसान नहीं होनी। उत्तर प्रदेश में कई ऐसे कारण है जो योगी की मुश्किल बढ़ा सकते है, पहला है पार्टी के भीतर से उठ रहे विरोध के स्वर। हालांकि बाहरी तौर पर योगी आदित्यनाथ इन्हें साधने में कामयाब जरूर दिख रहे है पर जगजाहिर है की कुछ माह पूर्व तक उत्तर प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन तक के कयास लग रहे थे। ब्राह्मण समुदाय की तथाकथित नाराज़गी भी उत्तर प्रदेश में एक प्रभावी फैक्टर हो सकता है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बहुजन समाज पार्टी ने भी चुनाव अभियान की शुरुआत में ब्राह्मण समुदाय को साधने के लिए 'प्रबुद्ध वर्ग के सम्मान में विचार गोष्ठी' नामक आयोजन किया है। वहीं अन्य पार्टियां भी पीछे नहीं है। समाजवादी पार्टी अभी से मुस्लिम -यादव वोट को एकजुट रखने का प्रयास करती दिख रही है और यदि ऐसा हो पाया तो भाजपा की चुनौती जरूर बढ़ेगी। हालांकि ओवैसी अगर मुस्लिम वोट में सेंध लगा पाए तो भाजपा को इसका लाभ होना लाज़मी होगा। ऐसे में मुस्लिम वोट बंटता है या एकजुट रहेगा, इस पर सभी विश्लेषकों की नज़र रहेगी। किसान आंदोलन भी भाजपा के सामने बड़ी चुनौती है। किसान वर्ग पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 60 से अधिक सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाता है। भाजपा अभी से किसान और जाट वोट को साधने को प्रयासरत दिख रही है। बहरहाल दिल्ली की गद्दी का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है। ऐसे में भाजपा उत्तर प्रदेश में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहेगी।
गोवा : चुनाव सिर पर हैं और पार्टी सचेत
गोवा में भी अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। छोटा राज्य होने के बावजूद गोवा में राजनीतिक उठापटक ज्यादा होती है। गोवा में बीजेपी के मौजूदा मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत के साथ-साथ राज्य के स्वास्थ्य मंत्री विश्वजीत राणे भी 2022 के सीएम पद के दावेदार के तौर पर अपने आपको पेश कर रहे हैं। कोरोना प्रबंधन को लेकर दोनों ही नेताओं के बीच खींचतान की खबरें भी आई थी। विश्वजीत राणे पूर्व मुख्यमंत्री प्रताप सिंह राणे के पुत्र हैं और कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी यहां बहुमत से दूर हो गई थी, लेकिन नंबर गेम के जरिए वो सरकार बनाने में सफल रही। बहरहाल गोवा में चुनाव सिर पर हैं और पार्टी सचेत। पिछले दिनों बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सियासी अनुमान लेने के लिए गोवा का दौरा भी किया था। उन्होंने दोनों नेताओं के बीच बेहतर तालमेल पर जोर दिया था। प्रमोद सावंत के कोरोना प्रबंधन को लेकर खूब सवाल उठे थे। गोवा के अस्पतालों से जैसी तस्वीरें सामने आईं वैसी बीजेपी शासित किसी दूसरे राज्य में नहीं दिखीं। माहिर मानते है कि पार्टी आलाकमान सुनिश्चित करना चाहेगा कि इसका खामियाजा विधानसभा चुनाव में न भुगतना पड़े।
पंजाब : थोड़ी ही सही मौजूदगी तो हो
पंजाब में फिलहाल कांग्रेस की सरकार है। पिछली बार यहां बीजेपी गठबंधन को करारी हार का सामना करना पड़ा था। कांग्रेस को 77 सीटों पर जीत मिली थी। जबकि दूसरे नंबर पर आम आदमी पार्टी रही थी। बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल गठबंधन को सिर्फ 15 सीटों पर जीत मिली थी। इस बार बीजेपी और अकाली दल का गठबंधन टूट गया है। पंजाब में लंबे समय से अकाली दल के साथ छोटे भाई की भूमिका में रहने के चलते भाजपा अपना राज्य में विस्तार नहीं कर पाई है। अब जबकि अगले साल राज्य में चुनाव होने हैं तो अकाली दल से अलग होने के बाद उसके सामने अपने अस्तित्व का संकट खड़ा है। कोई भी नेता विश्वास के साथ यह नहीं कह सकता है कि भावी पंजाब विधानसभा में उनकी उपस्थिति कितनी होगी? पंजाब में भाजपा अब हरियाणा की तर्ज पर खुद को मजबूत करने की तैयारी में हैं, हालांकि इस काम में उसे बहुत लम्बा समय लगेगा। कोई बड़ा प्रयोग भी पंजाब में भाजपा की नैया पार करवाता नहीं दिख रहा। फिलवक्त पंजाब में भाजपा की और से गजेंद्र सिंह शेखावत को चुनाव प्रभारी बनने का मौका मिला है। यहां तीन सह प्रभारी भी बनाए गए हैं। इनमें हरदीप सिंह पुरी, मीनाक्षी लेखी और विनोद चावड़ा का नाम शामिल है। भाजपा की कोशिश शायद ये ही रहेगी कि थोड़ी ही सही विधानसभा में उनकी मौजूदगी तो रहे।
उत्तराखंड : प्रदेश इसी साल में देख चूका है तीन सीएम
उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव से पहले दूसरी बार प्रचंड बहुमत पाकर सत्ता में वापसी का दावा करने वाली बीजेपी के भीतर शह मात का खेल शुरू हो गया है। पार्टी दो धड़ों में विभाजित नज़र आ रही है। एक धड़ा जो कांग्रेस से आये लोगों का है तो दूसरा पुराना भाजपाइयों का। ऐसे में आपसी कलह फिर सामने आ रही है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और राष्ट्रीय महामंत्री संगठन बीएल संतोष हर महीने उत्तराखंड का दौरा कर रहे हैं, मगर स्थिति नियंत्रण में आती नहीं दिख रही है। गौरतलब है की उत्तराखंड में बीजेपी ने कुछ ही महीने के भीतर दो बार मुख्यमंत्री को बदला है। सबसे पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाकर उनकी जगह तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया। बीजेपी को लगा था कि त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में पार्टी अपना जनाधार खो देगी इसलिए नए सीएम के तौर पर तीरथ सिंह को सामने लाया गया था। पर तीरथ सिंह रावत मुश्किल से चार महीने ही कुर्सी पर रह पाए थे कि एक बार फिर केंद्रीय नेतृत्व के फरमान ने उनकी सीएम की कुर्सी ले ली। कारण चाहे संवैधानिक संकट बताया गया हो पर शायद पार्टी को लगा हो कि तीरथ सिंह को सीएम बनाने का फैसला गलत था। इसके बाद मार्च में कुर्सी संभालने वाले तीरथ जुलाई की शुरुआत में ही अपना पद खो बैठे। आलाकमान ने उनकी जगह पुष्कर सिंह धामी को उत्तराखंड की कमान सौंप दी। मगर पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में भी भाजपा में अंतर्कलह कम होती नहीं दिखाई दे रही। धामी के लिए पार्टी को सत्ता में लाना किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगा।
गुजरात : पटेल वोट और एंटी इंकम्बेंसी, दोनों साधने की कवायद
बीजेपी ने गुजरात विधानसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले ना सिर्फ सरकार का कप्तान बदला बल्कि पूरी टीम ही बदल डाली। गुजरात में बीजेपी ने फिर राजनीतिक प्रयोग की इबारत लिखते हुए मंत्रिमंडल के सिर्फ चेहरे ही नहीं बदले गए बल्कि जातिगत और क्षेत्रीय बैलेंस का भी बखूबी ख्याल रखा। पटेल मुख्यमंत्री ही नहीं बल्कि कैबिनेट में भी पटेल समुदाय को खूब जगह दी गई है। पटेल वोट का असर पार्टी 2017 के विधानसभा चुनाव में खूब देख चुकी है जहाँ कांग्रेस ने उसे कड़ी टक्कर दी थी। वहीँ कंप्लीट मेक ओवर करके पार्टी शायद संभावित सत्ता विरोधी लहर को भी समाप्त करना चाहती है। पार्टी का ये प्रयोग निकाय चुनाव में सफल भी रहा था। बेशक भाजपा पटेल समुदाय को तवज्जो देकर उनका दिल जीतना चाहती हो लेकिन बड़ा सवाल ये भी है कि कहीं ऐसा कर भाजपा अन्य की नाराज़गी तो मोल नहीं ले रही ? दूसरा, मुख्यमंत्री सहित जिन मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाया गया है कहीं उनकी नाराज़गी पार्टी को भारी तो नहीं पड़ेगी ? बहरहाल गुजरात खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गढ़ है, सियासत के चाणक्य अमित शाह का गृह राज्य है, और शायद ये ही कारण है कि भाजपा ने इतना बड़ा प्रयोग करने का जोखिम उठाया है। भाजपा के लिए मोदी है तो मुमकिन है।
मणिपुर : यहाँ भी मिशन रिपीट आसान नहीं
मणिपुर विधानसभा की 60 सीटों के लिए 2022 में चुनाव होने है। भाजपा ने केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को मणिपुर का प्रभारी बनाया है। मणिपुर में भाजपा की सरकार है और एन बिरेन मुख्यमंत्री है । 2017 के चुनाव में भाजपा को 21 कांग्रेस को 19, एनपीपी को चार सीटें और एनपीएफ को 4 सीटें मिली थी। एनपीपी के सभी चार विधायकों ने भाजपा का समर्थन किया। बीरेन ने बारी-बारी से उन सभी को कैबिनेट मंत्री भी बनाया। हालांकि, नागा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) के चार विधायक जिन्होंने बीरेन को समर्थन दिया था, वे इस बात से खुश नहीं है क्योंकि उनमें से सिर्फ दो को मंत्री बनाया गया था। बाद के घटनाक्रम में, एनपीपी के सभी चार विधायकों को हटा दिया गया और दो को कैबिनेट मंत्री बनाया गया। परन्तु अब एनपीपी गठबंधन के मूड में नहीं दिख रहा। एनपीपी का प्रतिनिधित्व करने वाले पूर्व शिक्षा और स्वास्थ्य मंत्री एल जयंतकुमार ने कहा है कि किसी भी पार्टी के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन नहीं होगा। इसके अलावा हाल ही में मणिपुर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष गोविंददास कोंथौजैम भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए हैं जो भाजपा के लिए अच्छी खबर है।