लॉकडाउन के दौरान बातचीत से सुलझाएं घरेलू हिंसा के 90 फीसदी मामले
आनी, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग नेलॉकडाउन के दौरान पेश आए घरेलु हिंसा के मामलों को बेहतर तरीके से निपटाया है। इस दौरान सामने आए मामलों में से 90 फीसदी को विभाग ने पत्नी पत्नी के बीच आपसी बातचीत से ही सुलझाया है। इन मामलों के तहत नित्थर सीडीपीओ कार्यालय में 10 मामले सामने आए थे। इन सभी मामलों को प्रोटेक्शन ऑफिसर ने बातचीत करके ही सुलझा दिया। वहीं आनी सीडीपीओ कार्यालय के तहत 13 मामले सामने आए। इनमें से 11 मामले प्रोटेक्शन ऑफिसर ने बातचीत के द्वारा हल कर दिए और 2 मामलों को कोर्ट को ट्रांसफर कर दिया गया है। घरेलु हिंसा के मामलों पर त्वरित कार्रवाई करते हुए विभाग ने अधिकतर मामलों में दंपतियों के बीच सहमति से विवाद को हल किया है।
गौर हो कि लॉकडाउन के बाद महिलाओं के खिलाफ हिंसा में बढ़ौतरी के शिकायतें लगातार सामने आ रही थी। सरकार ने इन शिकायतों पर कड़ा संज्ञान लेते हुए कार्रवाई के निर्देश जारी किए हैं। इसी कड़ी में आउटर सिराज के तहत लॉकडाउन लगने के बाद 31 मई तक पेश आए मामलों को विभाग ने निपटा दिया है। इन मामलों को बातचीत द्वारा सुलझाने पर गौर करें तो 90 फीसदी से अधिक को विभाग ने सुलझा दिया है। प्राथमिक तौर पर घरेलु हिंसा के मामलों को सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के तहत महिला एवं बाल विकास निदेशालय संभालता है। यदि किसी महिला के साथ घरेलु हिंसा होती है उसके पास दो विकल्प रहते हैं, पुलिस में एफआईआर दर्ज करें या फिर प्रोटेक्शन ऑफिसर को बताएं।
सीडीपीओ कार्यालय के अधीन आंगनबाड़ी में तैनात सुपरवाइजर को इसके तहत प्रोटेक्शन ऑफिसर तैनात किया गया है। पुलिस में एफआईआर दर्ज होने के बाद भी मामला प्रोटेक्शन ऑफिसर को भेजा जाता है। महिलाएं सीधे तौर पर प्रोटेक्शन ऑफिसर को भी शिकायत दे सकती है। इसके पश्चात प्रोटेक्शन ऑफिसर बातचीत के माध्यम से कुछ शर्तों के साथ मामले सुलझाने का प्रयास करती हैं। यदि किसी घरेलु हिंसा के मामले पर बात नहीं बनती है तो उसे कोर्ट में पेश किया जाता है, जहां विभिन्न कानूनी प्रावधानों के तहत घरेलु हिंसा पीडिता को संरक्षण प्राप्त होता है। सीडीपीओ आनी विपाशा भाटिया का कहना है पति-पत्नी के बीच बराबरी का रिश्ता होता है। फिर भी कई बार रिश्तों में खटास आ जाती है लेकिन ऐसे समय में पति-पत्नि दोनों को समझदारी से काम लेना होता है। एक दूसरे का सम्मान करते हुए दंपति किसी भी विवाद को सुलझा सकते हैं।
उनका कहना है कि कई बार बात कुछ ज्यादा बढ़ जाती है तो महिलाओं के साथ घरेलु हिंसा के मामले देखने को मिलते हैं। विभाग उनको सुल्झाने का पूरा प्रयास कर रहा है और आगामी समय में भी इन मामलों को बातचीत के स्तर पर सुलाझाने के लिए विभाग प्रयासरत रहेगा।
घरेलू हिंसा क्या है?
घरेलू हिंसा अर्थात् कोई भीऐसा कार्य जो किसी महिला एवं बच्चे (18 वर्ष से कम आयु के बालक एवंबालिका) के स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन पर संकट, आर्थिक क्षति और ऐसी क्षति जो असहनीय हो तथा जिससे महिला व बच्चे को दुःख एवं अपमान सहन करना पड़े, इन सभी को घरेलू हिंसा के दायरे में शामिल किया जाता है। घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत प्रताड़ित महिला किसी भी वयस्क पुरुष को अभियोजित कर सकती है अर्थात उसके विरुद्ध प्रकरण दर्ज करा सकती है।
क्या हैं पीड़ित के हक?
पीड़ित आधिकारिक सेवा प्रदाताओं की सहायता ले सकती है, पीड़ित संरक्षण अधिकारी से संपर्क कर सकती है, पीड़ित निशुल्क क़ानूनी सहायता की मांग कर सकती है, पीड़ित भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत क्रिमिनल याचिकाभी दाखिल कर सकती है, इसके तहत प्रतिवादी को तीन साल तक कीजेल हो सकती है, इसके तहत पीड़ित को गंभीर शोषण सिद्धकरने की आवश्यकता हैl