देहरा : खेरियां में 50 किसानों को दिए दालचीनी के 3000 पौधे

विनायक ठाकुर । देहरा
सीएसआईआर-हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा देहरा, कांगड़ा में दालचीनी पौधे वितरण-आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक कदम उठाया है। सिनामोन, जिसे लोकप्रिय रूप से 'दालचीनी' के नाम से जाना जाता है, एक सदाबहार झाड़ीदार पेड़ हैं, जिसकी छाल और पत्तियों में एक मीठी-मसालेदार सुगंध होती है। पेड़ का मुख्य भाग इसकी छाल होती है, जिसका प्रयोग मुख्यतः मसाले के रूप में किया जाता है। एशियाई और यूरोपीय व्यंजनों में इसके उपयोग के अलावा, दवा और प्रतिरक्षा बढ़ाने में इसके महत्वपूर्ण उपयोग हैं। असली दालचीनी सिनामोमम वेरम से प्राप्त होती है। सिनामोमम कैसिया एक अन्य प्रजाति है, जिसकी छाल का उपयोग असली दालचीनी के स्थान पर किया जाता है। हालांकि, सिनामोमम कैसिया में उच्च कुमेरिन की मात्रा है जो स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है। सिनामोमम वेरम मुख्य रूप से श्रीलंका में उगाया जाता है, जबकि छोटे उत्पादक देशों में सेशेल्स, मेडागास्कर और भारत शामिल हैं। भारत प्रति वर्ष चीन, श्रीलंका, वियतनाम, इंडोनेशिया और नेपाल से 45,318 टन (909 करोड़ रुपए मूल्य की) दालचीनी का आयात करता है।
आश्चर्यजनक रूप से, भारत कुल 45,318 टन आयात में से, 37,166 टन सिनामोमम कैसिया (हानिकारक कैसिया) का वियतनाम, चीन और इंडोनेशिया से आयात करता है। देश में दालचीनी के बड़े आयात को देखते हुए और यह कि भारत में आयात किया जाने वाला सिनामोमम कैसिया है न कि सिनामोमम वेरम, इसकी खेती के लिए संभावित क्षेत्रों की पहचान की गई तथा देश में उत्पादन क्षेत्र का विस्तार करने की योजना बनाई गई। हमारे डेटा के अनुसार हिमाचल प्रदेश के ऊना, बिलासपुर, कांगड़ा, हमीरपुर और सिरमौर जिलों में इसकी खेती के लिए संभावित क्षेत्र हैं। यह ध्यान देने योग्य है कि देश में दालचीनी की कोई सुसंगठित खेती अथवा प्रसंस्करण नहीं है।
तदनुसार, सीएसआईआर-हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान, पालमपुर ने हिमाचल प्रदेश में सिनामोमम वेरम की खेती की शुरूआत और प्रसंस्करण के लिए अथक प्रयास किए। इस परियोजना की परिकल्पना सीएसआईआर-हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान, पालमपुर द्वारा की गई है। जिला कांगड़ा के ब्लॉक देहरा गांव खेरियां में 50 प्रगतिशील किसानों को पायलट परियोजना के माध्यम से दालचीनी के 3000 पौधे द्वारा वितरित किए गए। इसके अलावा दालचीनी की खेती पर प्रशिक्षण कार्यक्रम का भी आयोजन किया जिसमें सीएसआईआर-आईएचबीटी के वैज्ञानिक डॉ रमेश और डॉ सतबीर सिंह ने किसानों को दालचीनी की खेती के लिए प्रशिक्षित किया।