Attitude में बदलाव जरूरी, सरकार और नागरिक में दूरी न हो
सब कुछ बोल भी दिया जाएं और चुप्पी भी बरकरार रहे, ऐसी सियासी अदा कम ही नेताओं में देखने को मिलती है। पूर्व मुख्यमंत्री प्रो. प्रेमकुमार धूमल एक ऐसे ही सियासतगर है। नपे तुले अंदाज में अपनी बात रखने का उनका हुनर बेजोड़ है और उन्हें दूसरे से अलग बनाता है। यूँ ही कुछ भी बोल देना प्रो. धूमल का मिजाज नहीं है, वो जो भी बोलते है उसके गहरे मायने होते है। फर्स्ट वर्डिक्ट के लिए नेहा धीमान ने प्रो. प्रेम कुमार धूमल से एक्सक्लूसिव बातचीत की। सवालों का दौर चला तो मिशन रिपीट के दावों से लेकर उपचुनाव के जख्मों तक हर विषय पर चर्चा हुई। उनके निष्ठावानों की उपेक्षा पर भी बात हुई और जिक्र हावी अफसरशाही का भी हुआ। प्रोफेसर ने हर सवाल पर अपनी बात रखी। कहीं उनके जवाब में टीस और शिकायत झलकी तो कहीं व्यक्ति विशेष पर चर्चा न कर उन्होंने बता दिया कि क्यों उन्हें सियासत का भी प्रोफेसर कहा जाता है। जहां बोलना था वहां प्रो धूमल खुलकर बोले, नसीहत भी दी और अनुभव भी साझा किया। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश ...
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उपचुनाव हार के तीन कारण :
-टिकट का आवंटन गलत हुआ
-कार्यकर्ताओं की कम भागीदारी भी कारण
-नोटा फैक्टर भी बना वजह
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नसीहत :
- रवैये में बदलाव हो, याद रहे शासन नहीं सेवा के लिए है सत्ता
- शिकायत की ही शिकायत आना दुर्भाग्यपूर्ण
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Defeat is Orphan
उपचुनाव में भाजपा का सूपड़ा साफ होने के बाद जाहिर है पार्टी के मिशन रिपीट के दावों पर सवाल उठे है। भाजपा को तीन बार सत्ता में लाने वाले प्रो. धूमल ने इस हार पर खुलकर अपनी राय रखी। उन्होंने कहा कि Defeat is Orphan, सियासत में पराजय अनाथ होती है , कोई जिम्मेदारी नहीं लेता। वहीं, उपचुनाव प्रचार से उनकी दूरी के प्रश्न पर प्रो. धूमल ने खुलकर कहा कि उन्हें मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का फोन आया था और उन्होंने कहा की अर्की में एक दिन लगा देना। किन्तु करीबी रिश्तेदार के देहांत के चलते वे जा नहीं सके। अपनी ही चिर परिचित शैली में धूमल ये बताने से भी नहीं चूके कि अन्य स्थानों पर उन्हें प्रचार के लिए बुलाया ही नहीं गया था। धूमल कहते हैं कि शायद लगा होगा की कम लोगों से काम चल जायेगा।
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जरूरी नहीं सबको टैग मिले :
प्रो. प्रेमकुमार धूमल को सड़कों वाला मुख्यमंत्री कहा जाता है। धूमल कहते है कि इस तरह के टैग लोग लगाते है । जब कार्यकाल पूरा होता है तो जनता कोई एक टैग दे देती है, उन्होंने हर क्षेत्र में बहुत काम किया लेकिन जनता ने सड़कों वाला मुख्यमंत्री कहा। जब हमने उनसे पूछा, उनके अनुसार जयराम ठाकुर को कौनसा टैग मिलना चाहिए तो प्रो. धूमल ने कहा कि ये जनता तय करेगी। आगे धूमल कहते है " वैसे जरूरी नहीं है कि सबको टैग मिले। "
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घर नया हो तो भी काम का सामान रखा जाता है :
1998 से लेकर 2017 तक हुए पांच विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रो. प्रेमकुमार धूमल के चेहरे पर आगे बढ़ी। धूमल का फेस ही पार्टी का ग्रेस बढ़ाता रहा। इनमें से तीन बार भाजपा सत्ता कब्जाने में कामयाब रही। माना जाता हैं की 2017 में पार्टी आलाकमान बिना चेहरे के चुनाव में जाना चाहता था, लेकिन स्थिति ठीक न देखकर चुनाव से दस दिन पहले प्रो प्रेम कुमार धूमल को सीएम फेस बनाना पड़ा। दांव ठीक पड़ा और भाजपा सत्ता में आई, हालाँकि खुद धूमल चुनाव हार गए।
2017 में जयराम ठाकुर मुख्यमंत्री बने। इसके बाद से ही सियासी गलियारों में चर्चा आम रही है कि धूमल गुट उपेक्षा का शिकार हैं। इस मसले पर हमने प्रो. धूमल से सीधा सवाल किया। जवाब भी सीधा मिला, प्रो धूमल ने कहा कि " जब नेतृत्व बदलता हैं तो नया नेता अपने हिसाब से बदलाव करता हैं। पर पुराने काम के लोगों की उपेक्षा गलत हैं। नया भवन बनाइये लेकिन काम का सामान भी रखिये।"
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वृक्ष हैं संगठन तो जड़ हैं कार्यकर्ता
प्रो. प्रेमकुमार धूमल का राजनैतिक सफर किसी सियासी ग्रंथ से कम नहीं हैं। सरकार और संगठन दोनों पर उनकी समझ बेजोड़ हैं। चर्चा जब संगठन की चली तो प्रो. धूमल ने एक किस्सा साझा किया। पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद वे ठियोग जा रहे थे तभी रास्ते में एक कार्यकर्ता ने उन्हें एक पत्र दिया। गाड़ी में उन्होंने पत्र पढ़ा तो उसमें उक्त कार्यकर्ता ने लिखा था कि एक आम कार्यकर्ता संघर्ष करता हैं, जैसे -तैसे कर सरकार बनती हैं और फिर ढाई साल में गिर जाती है। ( 1977 और 1990 में शांता कुमार के नेतृत्व में बनी सरकारें अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई थी) प्रो. धूमल घर पहुंचे, देर रात 12 बजे तक काम निपटाया और फिर खुद उक्त खत के जवाब में एक पत्र लिखा। धूमल ने लिखा कि पार्टी एक वृक्ष है। कार्यकर्ता जड़े, मंत्री और पदाधिकारी फल और फूल। जब जड़े मजबूत होती है तो ही वृक्ष पनपता है। फल और फूल को लगता है कि वृक्ष की शोभा उनसे है लेकिन हकीकत ये हैं कि बिन जड़ वृक्ष ही नहीं हैं। जब जड़ को तरजीह नहीं मिलती तब अस्तित्व भी नहीं रहता। इस बीच एक माली आता है और उस वृक्ष को हटाकर दूसरा वृक्ष लगा देता है।
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सवाल : मौजूदा सरकार के कार्यकाल को 4 साल पूरे हो चुके है। ये वर्ष चुनावी वर्ष है और सियासत भी तेज़ हो गई है। 1985 के बाद से अब तक प्रदेश में कोई सरकार रिपीट नहीं कर पाई है, लेकिन इस बार मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ये दावा कर रहे है कि सरकार रिपीट करेगी। आप भाजपा के वरिष्ठ और अनुभवी नेता है, हम आपसे जानना चाहेंगे कि क्या ये सरकार रिपीट करने की स्थिति में है ?
जवाब : मैं व्यक्तियों पर चर्चा नहीं करता। मैं ये कहना चाहूंगा की भारतीय जनता पार्टी हमेशा इतिहास बनाती रही है। 1984 श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हमदर्दी की लहर चली और हमारे सिर्फ दो सांसद जीते थे, और पांच वर्ष के बाद 1989 में हम दो से 86 हो गए। इसी प्रकार से 77 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार अनेकों पार्टियों का गठबंधन था। जब 1990 में हमने सरकार बनाई तो हमारा गठबंधन जनता दल के साथ था। 1998 में हमारा गठबंधन हिमाचल विकास कांग्रेस के साथ था, लेकिन साल 2007 में पहली बार विशुद्ध भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनाई। वो भी एक रिकॉर्ड था। अब 2022 में हम चाहते है कि फिर रिकॉर्ड बनें। एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी की सरकार बने और हम फिर जनता की सेवा करें।
सवाल : जो नतीजे बीते नगर निगम चुनाव और उपचुनाव में भाजपा के लिए रहे है क्या उन्हें देखने के बाद भी आप यही कहेंगे कि भाजपा रिपीट करेगी ? और अगर रिपीट करना है तो उसके लिए क्या करना होगा ?
जवाब : हमारा संगठन सक्रीय है और सरकार के लेवल पर भी नगर निगम चुनाव और उपचुनाव के वक्त काम किया गया है। जब ठोकर लगती है तो इंसान संभालता है। सरकार ने भी हार के बाद अपने सबक लिए होंगे। जो लोग सत्ता में है, जो लोग सरकार चला रहे है वो देखेंगे कि क्या कमियां रही और उन कमियों को दूर कर पुनः चुनाव लड़ेंगे।
सवाल : आज प्रदेश की सियासत में रूचि रखने वाला हर व्यक्ति ये जानना चाहता है कि क्या प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल इस बार के चुनाव के मैदान में उतरेंगे ?
जवाब : यदि आप मेरा राजनैतिक जीवन देखे तो मैंने कभी पार्टी टिकट की मांग नहीं की। 1984 में जब इंद्रा जी का मर्डर हुआ तब बड़े- बड़े नेता मैदान छोड़ गए। कोई लड़ने के लिए तैयार नहीं था और उस वक्त मुझे कॉलेज से बुलाया गया और कहा की तुम लड़ोगे , तुम्हें लड़ना है और हम लड़े भी और हारे भी। उसके बाद से लगातार लोगों के बीच रहे। मैं तीन बार सांसद बना, दो बार मुख्यमंत्री बनकर प्रदेश की सेवा की। जब पार्टी ने बोला मैंने चुनाव लड़ा, जो बोला वो किया और आगे भी जो भी पार्टी हाईकमान का आदेश होगा वो मैं करूंगा।
सवाल : आपके समर्थक ये चाहते हैं कि यदि आप चुनाव लड़े तो मुख्यमंत्री का चेहरा भी आप ही हो। इस पर आप क्या कहेंगे ?
जवाब : मुख्यमंत्री का चेहरा तो मुझे पिछली बार भी हाईकमान ने बनाया था, लेकिन लोगों ने मुझे नहीं चुना। फिर जयराम जी मुख्यमंत्री बने। मुख्यमंत्री का चेहरा हाईकमान और चुने हुए विधायक तय करते है। जो वो तय करेंगे वो होगा।
सवाल : तो अपने निर्णय हाईकमान पर छोड़ दिया है ?
जवाब : मेरी तो पूरी जिंदगी उन्ही के सहारे बीती है, अब इस पड़ाव पर आकर क्या करना हैं।
सवाल : जयराम सरकार का यदि आप आंकलन करें , तो आप क्या बड़ी उपलब्धियां मानते है इस सरकार की ?
जवाब : सरकार का दो साल का कार्यकाल कोरोना में गया और प्रधानमंत्री जी की अगुवाई और मार्गदर्शन में हम कोरोना से निपटने में कामयाब रहे। लोगों का भी सहयोग मिला। सामजिक क्षेत्र में सरकार ने अच्छा किया मसलन बुढ़ापा पेंशन की उम्र जताई गई। उद्योग की बात करें तो करीब 96 हजार करोड़ का निवेश आया। कई बार कुछ कार्य दूरगामी सोच के साथ भी किये जाते है जिनका परिणाम बाद में दिखता है।
सवाल : ये सामान्य बात है कि जनता तुलना करती है। आप दस साल मुख्यमंत्री रहे और अब जयराम जी मुख्यमंत्री है । कई बार ये कहा जाता है कि जयराम सरकार की अफसरशाही पर पकड़ नहीं है। आप क्या मानते है ?
जवाब : मैं शिमला बहुत कम जाता हूँ।
सवाल : चलिए आपने बताया कि आप शिमला कम जाते है, तो अगले सवाल पर आते है । आप मुख्यमंत्री पद का चेहरा थे और कई ऐसे वादे हैं जो कहा जाता है आपने किए थे लेकिन सरकार ने पुरे नही किए। दृस्टि पत्र में भी ये वादे शामिल थे। मसलन नियुक्ति तिथि से वरिष्ठता हो या पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा। जो वादे आपने किए थे और पुरे नहीं हुए, उस पर आप क्या कहेंगे ?
जवाब : मैं आपके माध्यम से स्पष्ट कर दूँ कि मैंने कोई वादा अलग से नहीं किया ताकि कोई गलतफहमी न रहे। चुनाव घोषणा पत्र व्यक्ति नहीं पार्टी जारी करती हैं। जो दृस्टि पत्र जारी हुआ उसके कन्वीनर रणधीर शर्मा थे और श्री जयराम जी खुद उसके मेंबर थे, जिस पर हस्ताक्षर है उनके। मैंने जो भी घोषणा की है उसके अनुसार ही की है। जहां तक पुरानी पेंशन बहाली की बात है मैंने तो कॉर्पोरेशन और बोर्ड के कर्मचारियों को भी पेंशन दी थी। नई पेंशन स्कीम 2004 में लागू हुई और इसके बाद जब 2007 से 2012 तक मैं मुख्यमंत्री था तो इसे हटाने की कोई मांग नहीं थी। अब ये बात सामने आई है। मुझे विश्वास है सरकार इस पर विचार कर रही होगी।
सवाल : आप मानते हैं कि पुरानी पेंशन बहाल होनी चाहिए ?
जवाब : मैं ये नहीं कह रहा कि बहाल होनी चाहिए, ये तो सरकार तय करेगी। पर जिस कर्मचारी ने सारी उम्र ईमानदारी से नौकरी की, बुढ़ापे में आकर उसको सम्मानजनक पेंशन मिलनी चाहिए। इस पर विचार करना चाहिए और संसाधन हो तो इसे बहाल करें। जिन्हें नुकसान हो रहा हैं, जीवन यापन मुश्किल हैं उनका पालन पोषण हमारा सामाजिक दायित्व हैं।
सवाल : वर्तमान में प्रदेश में नए जिलों की मांग भी उठ रही हैं। आपको क्या लगता है क्या नए जिले बनने चाहिए ?
जवाब : हमने तो बना दिए थे। नूरपुर, देहरा, पालमपुर, सुंदरनगर और जुब्बल कोटखाई में हमने एडीएम बिठा दिए थे। उसके बाद सत्ता परिवर्तन हुआ हुआ निर्णय पलट दिया गया। मैं मानता हूँ कि छोटी प्रशासनिक इकाइयां बेहतर काम करती हैं। पर चुनाव के दिनों में नए जिलों का गठन करना उचित नहीं है, ये योजनाबद्ध तरीके से होना चाहिए।
सवाल : अनुभव का कोई पर्याय नहीं होता और बेहद अनुभवी नेता है। आप प्रदेश सरकार को क्या सुझाव देना चाहेंगे ?
जवाब : पहला तो ऐटिटूड का बदलाव होना चाहिए। हम शासन नहीं सेवा करने के लिए सत्ता में आएं है। दूसरा सरकार और सामान्य नागरिक में कोई दुरी नहीं होनी चाहिए। बात सुनो , हर काम नहीं होंगे लेकिन यदि व्यक्ति कि शिकायत भी कोई सुन लेता है तो मन हल्का हो जाता है। उसे लगता है कि वो अपनी ही सरकार से बात कर रहा है । ईमानदरी से प्रयास होना चाहिए कि जो मुमकीन है वो हम करें। जो शिकायत आती है उसकी उलटी शिकायत नहीं आनी चाहिए। शिकायत की भी शिकायत आये ये दुर्भाग्यपूर्ण होता है।
सवाल : क्या आपको लगता हैं की जनता से सरकार की दूरी ज्यादा हैं, शायद इसीलिए आप ऐटिटूड में बदलाव की बात कर रहे हैं ?
जवाब : मैंने कहा शिमला तो मैं जाता नहीं और दूरी की बात मैं करता नहीं।