हिन्दू और सिख, दोनों धर्मों के अनुयायियों की आस्था का केंद्र है मणिकर्ण
कुल्लू की पार्वती घाटी में स्थित मणिकर्ण, हिन्दू और सिख दोनों धर्मों के अनुयायियों के लिए विशेष महत्व रखता है। यहाँ महादेव शिव का प्रसिद्ध मंदिर भी है और गुरु नानक देव की याद में बनाया गया गुरुद्वारा भी। मणिकर्ण अपनी खूबसूरती और धार्मिक स्थल के साथ साथ अपने गर्म पानी के चश्मों के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि यहां उपलब्ध गंधकयुक्त गर्म पानी में कुछ दिन स्नान करने से कई बीमारियां ठीक हो जाती हैं। खौलते पानी के चश्मे मणिकर्ण का विशेष आकर्षण हैं। इसे कुदरत का करिश्मा ही कहेंगे कि एक ओर जहां पार्वती नदी की ठंडी जल धारा बहती है, तो वहीं दूसरी ओर खोलते पानी के चश्मे है जहां कच्चा चावल हो या दाल सबकुछ 10 मिनट में पक जाता है।
इस स्थान के नामकरण से जुड़ी एक पौराणिक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि शेषनाग ने भगवान शिव के क्रोध से बचने के लिये यहां एक मणि फैंकी थी, जिस वजह से ये चमत्कार हुआ था। ऐसे होने के पीछे का किस्सा ये बताया जाता है कि 11 हजार सालों पहले भगवान शिव और माता पार्वती ने यहां तपस्या की थी। ऐसे में मां पार्वती जब नहा रही थीं, तब उनके कानों की बाली में से एक नग पानी में गिर गया था। फिर भगवान शिव ने अपने गुणों से इस मणि को ढूंढने को कहा लेकिन वह नहीं मिल सका। इसके बाद भगवान शिव बेहद नाराज हुए और उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी। आंख खोलने से नैना देवी नामक शक्ति पैदा हुई। नैना देवी ने शिव को बताया कि उनकी मणि शेषनाग के पास है। शेषनाग ने मणि को देवताओं की प्रार्थना करने पर वापस कर दिया, लेकिन वे इतने नाराज हुए कि उन्होंने जोर की फुंकार भरी जिससे इस जगह पर उबलती पानी की धारा फूटने लगी और तभी से इस जगह का नाम मणिकर्ण पड़ा।
वहीं मणिकर्ण में प्रसिद्ध मणिकरण साहिब गुरुद्वारा भी स्थित है। सिख पंथ के अनुयायियों के लिए यह बेहद पवित्र जगह है। सिखों के धार्मिक स्थलों में यह स्थल विशेष स्थान रखता है। गुरुद्वारा मणिकर्ण साहिब गुरु नानक देव की यहां की यात्रा की स्मृति में बना था। कहते है कि मणिकर्ण में गुरुनानक अपने पांच चेलो के साथ आए थे और इस बात का वर्णन 'त्वरिक गुरू खालसा' में हैं। एक दिन लंगर बनाने के लिए गुरु नानक ने अपने एक चेले भाई मर्दाना को दाल और आटा मांग कर लाने के लिए कहा। इसके बाद उन्होंने मर्दाना से कहा कि वो जहां बैठे हैं वहीं से एक पत्थर उठाकर लाए। जैसे ही मर्दाना ने पत्थर उठाया वहां से गर्म पानी की धारा बहने लगी। उस दिन से आज तक इस स्थान पर पानी का ये स्त्रोत बरकरार है। आज इस गर्म पानी का इस्तेमाल यहां लंगर बनाने के लिए किया जाता है। यहां आने वाले भक्त इसे पीते भी हैं। कहा जाता है कि इसमें डुबकी लगाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
त्वचा के रोगों से मिलता है छुटकारा
मणिकर्ण में पार्वती नदी के तट पर प्राकृतिक उबलते हुए गर्म पानी के चश्में हैं, ऐसी मान्यता है कि यहां पर्यटक अपने लिए चावलों से बंधी हुई पोटली डाल कर उन्हें चंद मिनटों में पका लेते हैं। ख़ास बात ये है कि यहां खोलते हुए पानी की पीठ पर हजारों लोगों के लिए लंगर भी तैयार किया जाता है। बड़े बर्तनों में चावल व दालें डाल दी जाती हैं जो कुछ ही देर में पक कर तैयार हो जाती हैं। यहाँ मकर संक्रांति पर श्रद्धालुओं की खासी भीड़ देखने को मिलती है। ऐसा माना जाता है कि यहां उपलब्ध गंधकयुक्त गर्म पानी में कुछ दिन स्नान करने से ये बीमारियां ठीक हो जाती हैं। खौलते पानी ही मणिकर्ण का विशेष आकर्षण हैं।