करीबी मुकाबले में ये निर्दलीय हो सकते है किंग मेकर
क्या निर्दलीयों के बूते बनेगी प्रदेश में अगली सरकार ? क्या निर्दलीयों के सहारे भाजपा हिमाचल प्रदेश में रिवाज बदलने जा रही है ? क्या कांग्रेस के अरमानों पर भाजपा फिर पानी फेर देगी ? क्या निर्दलीयों के समर्थन से सरकार रिपीट करवाकर जयराम ठाकुर इतिहास रच देंगे ? बहरहाल इन सवालों का जवाब तो ईवीएम में कैद है और आठ दिसंबर को पता चलेगा, लेकिन तब तक अटकलों और कयासबाजी से प्रदेश की सियासत गरमाई हुई है। भाजपा के निष्ठावानों को यकीन है कि अगर सरकार को बहुमत न भी मिला तो निर्दलीयों के सहारे पार्टी की नाव किनारे लग जाएगी।
दरअसल प्रदेश की कई सीटों पर इस बार निर्दलीय दमखम से लड़े है और ऐसे में नजदीकी मुकाबला होने पर ये 'किंग मेकर' भी बन सकते है। दोनों दलों में करीब तीस बागी है, इनके अलावा कई अन्य निर्दलीय भी है जो मजबूत दिख रहे है। ऐसे में जाहिर है दोनों ही दल अभी से उन संभावित निर्दलीयों को डोरे डाल रहे है जो जीतकर विधानसभा की दहलीज लांघ सकते है। बताया जा रहा है कि विशेषकर भाजपा में ऐसी स्थिति से निबटने के लिए बाकायदा विशेष रणनीति बनाई जा रही है, ताकि जरुरत पड़ने पर तुरंत एक्शन लिया जा सके। ऐसा होना भी चाहिए क्यूंकि करीब प्रदेश की एक तिहाई सीटों पर भाजपा के बागी बतौर निर्दलीय चुनाव लड़े है।
हिमाचल प्रदेश में निर्दलीय विधानसभा चुनाव लड़ने वाले कई चेहरे है जिन पर नतीजों से पहले निगाहें टिकी है। अपने -अपने निर्वाचन क्षेत्रों में तो इन निर्दलीयों ने राजनीतिक दलों की टेंशन बढ़ाई ही है, दोनों पार्टियों के आलाकमान को भी काम पर लगाया हुआ है। कभी कोई निर्दलीय जीतने वाले के साथ जाने की बात कहता है, तो कभी कोई निर्दलीय ओपीएस को समर्थन देने की बात कहकर सियासी ताप बढ़ा देता है। आपको बताते है निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले वो 10 उम्मीदवार जिन्होंने नतीजों से पहले राजनीतिक दलों की धुकधुकी बढ़ाई है।
आशीष शर्मा
पहला नाम है आशीष शर्मा का।आशीष हमीरपुर से चुनाव लड़े है और इस सीट पर उनका दावा मजबूत है। दिलचस्प बात ये है कि आशीष चुनाव से पहले कांग्रेस में शामिल हुए और फिर 48 घंटे के भीतर ही पार्टी छोड़ भी दी। अब आशीष चुनाव जीतते है तो जरुरत पड़ने पर किसका साथ देंगे, ये कहना मुश्किल है।
केएल ठाकुर
दूसरा नाम है केएल ठाकुर का जो भाजपा के बागी है और नालागढ़ से चुनाव लड़े है। ठाकुर को यहाँ जनता की साहनुभूति भी मिली और भाजपा का एक तबके का साथ भी। वहीं माना जा रहा है कि कांग्रेस के काडर में भी उन्होंने सेंध लगाई है। ऐसे में नालगढ़ से उनका जीत का दावा मजबूत है। दिलचस्प बात ये है कि केएल ठाकुर उस दल को समर्थन देने की बात कर रहे है जो ओपीएस बहाल करेगा। जानकार मान रहे है कि भाजपा ने उनके साथ जो किया उसकी टीस बरकरार है और ये भाजपा के लिए चिंता का सबब हो सकता है।
राजेंद्र ठाकुर
पिछले साल कांग्रेस छोड़ने वाले राजेंद्र ठाकुर ने किसी राजनीतिक दल का दामन नहीं थामा और निर्दलीय चुनाव लड़ा। ठाकुर एक बात बार -बार दोहराते रहे, जो दल जीतेगा वे उसी के साथ जायेंगे। ऐसे में अगर राजेंद्र ठाकुर जीतते है और सरकार बनाने को निर्दलीय की जरुरत पड़ती है, तो उनका रुख क्या होगा ये देखना दिलचप्स होगा। वैसे बेशक ठाकुर कांग्रेस छोड़ चुके है लेकिन होलीलॉज से उनके सम्बन्ध पुराने है।
इंदु वर्मा
ठियोग से पूर्व विधायक और भाजपा नेता राकेश वर्मा के निधन के बाद उनकी पत्नी इंदु वर्मा ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया था। पर कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो इंदु ने निर्दलीय चुनाव लड़ा। उन्हें लेकर इस क्षेत्र में सहानूभूति भी दिखी है जिसके बुते इस बहुकोणीय मुकाबले में इंदु वर्मा भी जीत की दावेदार मानी जा रही है। अब अगर इंदु जीत जाती है तो किस तरफ जाएगी, ये देखना रोचक होगा।
मनोहर धीमान
इंदौरा में निर्दलीय चुनाव लड़कर मनोहर धीमान ने दोनों राजनीतिक दलों का सुकून हरा हुआ है। 2012 में भी मनोहर निर्दलीय चुनाव जीते थे जिसके बाद कांग्रेस एसोसिएट विधायक थे। पर 2017 के चुनाव से पहले मनोहर भाजपाई हो गए। असली खेल हुआ इसके बाद, भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया और मनाने में कामयाब भी रही। इस बार फिर से भाजपा का टिकट उन्हें नहीं मिला, तो मनोहर बाग्वट कर चुनाव लड़ रहे है। इस सीट पर जो रुझान आ रहे है उसके अनुसार जीत के लिए मनोहर का दावा भी मजबूत है। अब अगर मनोहर फिर जीते तो वापस भाजपा में जायेंगे या कांग्रेस को तवज्जो देंगे, ये देखना रोचक होने वाला है।
होशियार सिंह
2017 में देहरा से निर्दलीय विधानसभा पहुंचने वाले होशियार सिंह पांच साल मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की शान में कसीदे पढ़ते रहे। चुनाव से कुछ माह पूर्व होशियार की भाजपा में एंट्री भी हो गई। पर जयराम ठाकुर से नजदीकी भी उन्हें टिकट नहीं दिलवा पाई। नतीजन फिर होशियार सिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़ा है। इस बार भी होशियार सिंह जीत के दावेदार है। बहरहाल सवाल ये है कि अगर फिर होशियार जीत जाते है तो क्या फिर भाजपा में जाएंगे या फिर इस बार अलग रास्ता चुनेंगे।
जगजीवन पाल
सुलह से दो बार के विधायक जगजीवन पाल का टिकट कांग्रेस काट देगी, किसी को इसका अंदाजा नहीं था। पर कांग्रेस ने ऐसा कर दिया और जगजीवन बगावत कर निर्दलीय मैदान में उतर गए। जगजीवन पाल को लेकर सहानुभूति भी दिखी और ये भी माना जा रहा है कि संभवतः कांग्रेस के काडर में भी वे सेंध लगाने में कामयाब रहे है। ऐसे में जीत को लेकर उनका दावा भी मजबूत है। बहरहाल जगजीवन जीतते या नहीं, ये देखना रोचक होगा।
गंगूराम मुसाफिर
पच्छाद से लगातार सात चुनाव जीतने के बाद जब गंगूराम मुसाफिर लगातार तीन चुनाव हारे तो इस बार कांग्रेस ने उनका टिकट काट दिया। नतीजन मुसाफिर ने निर्दलीय चुनाव लड़ा है। पच्छाद में इस बार बहुकोणीय मुकाबला है और गंगूराम मुसाफिर का दावा भी मजबूत है। अगर मुसाफिर जीतते है तो वापस कांग्रेस में लौटेंगे या नहीं, ये देखना रोचक होगा। वैसे मुसाफिर होलीलॉज के भी काफी करीबी रहे है।
सुभाष मंगलेट
होलीलॉज के एक और करीबी रहे नेता ने इस बार निर्दलीय चुनाव लड़ा है। ये नेता है चौपाल से दो बार विधायक रहे सुभाष मंगलेट। निसंदेह चौपाल सीट पर मंगलेट की मौजूदगी ने कांग्रेस की परेशानी बढ़ाई है, लेकिन क्या मंगलेट खुद चुनाव जीतने की स्थिति में है, ये बड़ा सवाल है। अगर मंगलेट चुनाव जीत जाते है तो वो किस तरफ जाएंगे, ये देखना रोचक होगा।
किशोरी लाल
आनी से भाजपा ने इस बार सीटिंग विधायक किशोरी लाल का टिकट काट दिया। इसके चलते किशोरी लाल ने निर्दलीय चुनाव लड़ा है और आनी सीट से वे भी विधानसभा की दौड़ में है।
परसराम
परसराम ने भी आनी से ही निर्दलीय चुनाव लड़ा है, फर्क सिर्फ इतना है कि परसराम कांग्रेस के बागी है। यहाँ परसरराम की बगावत क्या रंग लाती है ये देखना रोचक होगा।
तेजवंत नेगी
फेहरिस्त में अगला नाम है किन्नौर से पूर्व भाजपा विधायक तेजवंत सिंह नेगी का। पिछले चुनाव 120 वोट से हारे तेजवंत की जगह भाजपा ने इस बार सूरत नेगी तो टिकट दिया है। इसके बाद तेजवंत ने बगावत कर दी और निर्दलीय मैदान में उतर गए। अब यहाँ त्रिकोणीय मुकाबले में तेजवंत का दावा भी खारिज नहीं किया जा सकता। बहरहाल सवाल ये ही है कि अगर तेजवंत जीत जाते है और उनका झुकाव क्या फिर भाजपा की तरफ ही होगा।
कैप्टेन संजय परशर
जसवां परागपुर से इस बार निर्दलीय के तौर पर कैप्टेन संजय पराशर ने चुनाव लड़ा है। यहाँ के बहुकोणीय मुकाबले में अगर कैप्टेन जीत जाते है तो उनके अगले कदम पर भी निगाह रहेगी। वैसे संजय पराशर भाजपा विचारधारा के माने जाते है।
इनके अलावा मंडी से प्रवीण शर्मा, कुल्लू से राम सिंह, बंजार से हितेश्वर सिंह, फतेहपुर से कृपाल परमार, सुंदरनगर से अभिषेक, चम्बा से इंदिरा कपूर, बड़सर से संजीव शर्मा, धर्मशाला से विपिन नेहरिया सहित कई नाम है जो अपने क्षेत्रों में ख़ासा फर्क डाल सकते है। अब इनमें से कितने निर्दलीय जीत दर्ज करते है इस पर से तो आठ दिसम्बर को ही पर्दा उठेगा। साथ ही ये भी पता चलेगा कि क्या इस बार सत्ता की चाबी निर्दलीयों के हाथ में होगी। फिलवक्त तो ये ही कहा जा सकता है कि अगर दोनों में करीबी मुकाबला होता है और पांच-छ निर्दलीय भी जीत जाते है, तो कुछ भी मुमकिन है।