डाडासीबा : 82 साल की उम्र में भी परम्परा को कायम रखे हुए हैं बठरा के मुकंद लाल
भारतीय संस्कृति के प्रतीक दीपावली पर्व पर कभी मिट्टी के बने 'दीयों' का इस्तेमाल होता था, लेकिन बदलते दौर के साथ मिट्टी के दीपक का स्थान विधुत उत्पादों ने ले लिया है। वर्तमान में आलम यह है कि शहरों से लेकर गांवों में मिट्टी का दीपक केवल परंपरा निभाने के नाम पर जलाया जाता है। फलस्वरूप मिट्टी के दीये बनाने वाले लोगों का रोजगार भी प्रभावित हुआ है। बाजारों में विद्युत् लड़ियों- झालरों की चमक-धमक ने मिट्टी के दीपक की रोशनी को फीका कर दिया है। लेकिन आज भी कुछ लोग इस परंपरा को जीवित रखे हुए हैं। इसी के चलते डाडासीबा तहसील के गांव जलेरा डाकघर बठरा निवासी मुकंद लाल करवा चौथ एवं दीवाली के नजदीक स्वयं द्वारा बनाये गए मिट्टी के करुए अर्थात मिट्टी के दीपक इन दिनों घर-घर जाकर बेच रहे हैं। उन्होंने बताया कि वे बचपन से ही मिट्टी के दीपक एवं करुए बनाने का काम कर रहे हैं। यह काम पीढ़ी दर पीढ़ी चला हुआ है और वे आज तक इस परंपरा को निभा रहे हैं। वहीं उन्होंने बताया कि युवा पीढ़ी अब इस कार्य में दिलचस्पी नहीं दिखाती है। दीपावली के त्यौहार को लेकर बाजार इस समय रंग-बिरंगी लाइटों से जगमगा रहे हैं। वहीं अगर देखा जाए तो पिछले कई वर्षों से मिट्टटी से करुए एवं दीपक बनाने और बेचने वाले लोग भी अब कम ही दिखाई देते हैं। आधुनिकता के इस दौर में अब मिट्टी के दीपक और बर्तन बनाने वाले लोगों ने इस काम से किनारा कर लिया है। फलस्वरूप मिट्टी के दीपक दीवाली पर जलाने की पारम्परिकता अब लुप्त होती जा रही है, वहीं बाजारों में भी गिनी चुनी दुकानों में ही मिट्टी के दीपक नज़र आते हैं। उन्होंने कहा कि दीपावली खुशियों व प्रकाश का त्यौहार है। इसलिए कुछ ऐसा करें जिससे अपने साथ-साथ औरों को भी खुशी मिले। इस दीवाली पर मिट्टी के दीये जलाएं। पारम्परिक भारतीय संस्कृति को मजबूत बनाएं। दीवाली की खरीददारी ऐसी जगह से करें, जो आपकी खरीददारी की वजह से खुशहाली भरी दीवाली मना सकें।