गहरे जख्म : 'जान बची है, हिम्मत नहीं' सरकार मदद कर दो
12 अगस्त की रात को मंडी के जवाली क्षेत्र में मूसलाधार बारिश के बाद जो आपदा की मार पड़ी वो असहनीय है। उस रात को बारिश के कारण भारी भूस्खलन हुआ और पल भर में पूरा गांव उस त्रासदी की आगोश में आ गया। इस आपदा से सैकड़ों लोग प्रभावित हुए। यह हादसा कितना डराने वाला था, इसका अनुमान लगाना भी कठिन है और बेहद कठिन है उन पीडि़तों के दर्द को समझ पाना, जिन्होंने अपने आंखों के सामने अपने सपनों के आशियाने को नष्ट होते हुए देखा। बेहद मुश्किल है पीडि़तों के दर्द पर मरहम लगा पाना। फस्र्ट वर्डिक्ट मीडिया ने पीडि़तों से संपर्क साधा और हाल जानने का प्रयास किया। इससे पहले हम उनसे कुछ सवाल कर पाते उनका दर्द छलक उठा। मझेड़ गांव के 70 वर्षीय भूप चंद ने जिस तरह पूरे घटनाक्रम को कांपती आवाज से बयां किया तो ये स्पष्ट हुआ कि वो मंजर बेहद डरावना रहा होगा। भूप चंद ने बताया की उस रात उन्होंने अपने आंखों के सामने छह कमरों के मकान को ढहते हुए देखा। भूप चंद ने कहा कि हाल ही में उन्होंने एक बीघा 15 बिस्वा जमीन खरीदी थी। सोचा था कि कृषि कर परिवार का पालन पोषण करेंगे, लेकिन प्रकृति ने गरीब भूप चंद की कमर तोड़ दी और इस घटना में खेत भी बह गए। अब भूप चंद के हाथ भी खाली है और बैंक खाते भी। वर्तमान में वे एक स्कूल में रह रहे है और वो दमा के मरीज है। भूप चंद ने दबी आवाज में कहा कि बस भगवान ने जान बचाई है लेकिन अब मुझमे हिम्मत नहीं बची है। भूप चंद को बस एक आस है कि वो जीते जी अपने परिवार को फिर छत दे सके और उनकी नजर अब सरकार पर टिकी है।