मसला : हिमाचल प्रदेश में बिना प्राचार्यों के है 50 प्रतिशत से अधिक कॉलेज
हिमाचल प्रदेश में कॉलेजों की स्थिति क्या है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की 132 सरकारी कॉलेजों में से कम से कम 67 में कोई प्रधानाचार्य नहीं है। कारण: विभागीय पदोन्नति समिति (डीपीसी) पिछले कुछ वर्षों में शिक्षकों की प्रधानाचार्य पद पर पदोन्नति हेतु एक भी बैठक आयोजित करने में विफल रही है। कई पात्र शिक्षक बिना पदोन्नति के सेवानिवृत्त भी हो गए हैं, परन्तु अब तक बैठक नहीं हुई। इन कॉलेजों में उच्च शिक्षा निदेशालय द्वारा कॉलेजों के कुछ वरिष्ठ शिक्षकों को केवल स्वयं और साथी सहयोगियों के मासिक वेतन को निकालने और वितरित करने के लिए डीडीओ की शक्तियां प्रदान की गई हैं। डीडीओ के रूप में एक वरिष्ठ सहयोगी को ही अपने साथी सहयोगियों के कामकाज को नियंत्रित करना पड़ रहा है। नियमित प्रधानचार्य न होने से कॉलेज स्तर पर उच्च शिक्षा की गुणवत्ता दांव पर है। राज्य के इतिहास में पहली बार कॉलेज स्तर पर ऐसी स्थिति पैदा हुई है। हिमाचल प्रदेश के कॉलेजों में नियुक्त शिक्षकों और छात्रों का कहना है कि हिमाचल के इन कॉलेजों को भगवान के भरोसे छोड़ दिया गया है। शिक्षकों का कहना है कि सरकार प्राचार्यों (कॉलेज कैडर) के लिए जुलाई, 2018 से एक भी डीपीसी की बैठक बुलाने में विफल रही है। यहां तक कि कई योग्य शिक्षक अपने पदोन्नति प्राप्त किए बिना ही सेवानिवृत्त हो गए हैं और पहले से पद पर आसीन प्रधानाचार्य भी हर महीने सेवानिवृत्त हो रहे हैं। उच्च शिक्षा विभाग में कॉलेज स्तर पर प्रधानाचार्य का पद वरिष्ठ एसोसिएट प्रोफेसरों के लिए केवल एक सम्मानजनक पदोन्नति है, वह भी 25 वर्षों से अधिक की निरंतर सेवा के बाद। परन्तु विभाग के पात्र वरिष्ठ एसोसिएट प्रोफेसर इस पदोन्नति से वंचित है ।
कॉलेजों में प्रधानाचार्य का न होना न केवल शिक्षा की गुणवत्ता पर असर डाल रहा है बल्कि, राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (NAAC) से मान्यता प्राप्त करने में भी बाधा पैदा कर रहा है। NAAC से मान्यता प्राप्त करना किसी भी छह या अधिक साल पहले स्थापित हुए कॉलेज =के लिए अनिवार्य होता है। NAAC की मान्यता मिलने के बाद ही कॉलेज एमएचआरडी से मिलने वाले करोड़ों रुपये के विभिन्न विकास अनुदानों के लिए भी पात्र हो पाते हैं। परन्तु प्रधानाचार्य न होने के कारण हिमाचल के कई कॉलेजों को ये लाभ नहीं मिल रहे। शिक्षकों के अनुसार डीपीसी की बैठक नहीं होने पर पिछले 3 साल से अधिक समय से सरकार यह तर्क दे रही है कि उच्च न्यायालय में शिक्षकों की नियुक्ति और वरिष्ठता को चुनौती देते हुए एक मामला दायर किया गया है इसी के साथ एक अन्य मामले में प्रिंसिपल कॉलेज कैडर के आर एंड पी नियमों को भी अदालत में चुनौती दी गई है, जिससे प्रधानाचार्यों की पदोन्नति पर उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी है। शिक्षकों का कहना है कि पात्र सीनियर एसोसिएट प्रोफेसर को प्रिंसिपल (कॉलेज कैडर) के पद पर पदोन्नत करना सरकार का कर्तव्य है। सरकार अदालत में विशेष अनुमति याचिका दायर करे, ताकि उच्च न्यायालय से पात्र एसोसिएट प्रोफेसरों के लिए नियमित डीपीसी बैठक आयोजित की जा सके।