मां बगलामुखी के दरबार से निराश नहीं लौटते भक्त
बगलामुखी मंदिर महाभारत कालीन माना जाता है
हिमाचल प्रदेश देवी-देवताओं व ऋषि-मुनियों की तपोस्थली रहा है। कांगड़ा जनपद के कोटला क़स्बे में स्थित माँ श्री बगलामुखी का सिद्ध शक्तिपीठ है। वर्ष भर यहाँ श्रद्धालु मन्नत माँगने व मनोरथ पूर्ण होने पर आते हैं। माँ बगलामुखी का मंदिर ज्वालामुखी से 22 किलोमीटर दूर वनखंडी नामक स्थान पर स्थित है। यह मंदिर हिन्दू धर्म के लाखों लोगों की आस्था का केन्द्र है। बगलामुखी मंदिर महाभारत कालीन माना जाता है। पांडुलिपियों में माँ के जिस स्वरूप का वर्णन है, माँ उसी स्वरूप में यहाँ विराजमान हैं। माता बगलामुखी पीतवर्ण के वस्त्र, पीत आभूषण तथा पीले रंग के पुष्पों की ही माला धारण करती हैं। बगलामुखी जयंती पर यहाँ मेले का आयोजन भी किया जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार इस मंदिर की स्थापना द्वापर युग में पांडवों द्वारा अज्ञातवास के दौरान एक ही रात में की गई थी। सर्वप्रथम अर्जुन एवं भीम द्वारा युद्ध में शक्ति प्राप्त करने तथा माता बगलामुखी की कृपा पाने के लिए विशेष पूजा की गई थी। इसके अतिरिक्त द्रोणाचार्य, रावण, मेघनाद इत्यादि सभी महायोद्धाओं द्वारा माता बगलामुखी की आराधना करके अनेक युद्ध लड़े गए। कहा जाता है कि नगरकोट के महाराजा संसार चंद कटोच भी प्राय: इस मंदिर में आकर माता बगलामुखी की आराधना किया करते थे, जिनके आशीर्वाद से उन्होंने कई युद्धों में विजय पाई थी। तभी से इस मंदिर में अपने कष्टों के निवारण के लिए श्रद्धालुओं का निरंतर आना आरंभ हुआ। लोगों का अटूट विश्वास है कि माता अपने दरबार से किसी को निराश नहीं भेजती हैं।
रावण की ईष्टदेवी हैं मां बगलामुखी
मंदिर के पुजारी दिनेश बताते हैं कि मां बगलामुखी को नौ देवियों में 8वां स्थान प्राप्त है। मां की उत्पत्ति ब्रह्मा द्वारा आराधना करने की बाद हुई थी। ऐसी मान्यता है कि एक राक्षस ने ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया कि उसे जल में कोई मनुष्य या देवता न मार सके। इसके बाद वह ब्रह्मा जी की पुस्तिका ले कर भाग रहा था। तभी ब्रह्मा ने मां भगवती का जाप किया। मां बगलामुखी ने राक्षस का पीछा किया तो राक्षस पानी में छिप गया। इसके बाद माता ने बगुले का रूप धारण किया और जल के अंदर ही राक्षस का वध कर दिया। त्रेतायुग में मा बगलामुखी को रावण की ईष्ट देवी के रूप में भी पूजा जाता है। त्रेतायुग में रावण ने विश्व पर विजय प्राप्त करने के लिए मां की पूजा की। इसके अलावा भगवान राम ने भी रावण पर विजय प्राप्ति के लिए मां बगलामुखी की आराधना की।
इसलिए विशेष है माँ बगलामुखी मंदिर...
- बगलामुखी शब्द बगल और मुख से आया है, जिनका मतलब क्रमशः लगाम और चेहरा है।
- मां को शत्रुनाशिनी माना जाता है। पीला रंग मां प्रिय रंग है। मंदिर की हर चीज पीले रंग की है। यहां तक कि प्रसाद भी पीले रंग ही चढ़ाया जाता है।
- मंदिर में बस या टैक्सी द्वारा पहुंचा जा सकता है।
- इस मंदिर में दूर-दूर से लोग आते हैं। यहां तक की नेताओं से लेकर अभिनेता भी मां के दर्शन पाकर,शुत्रओं के नाश की कामना करने मंदिर आते हैं। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने भी मां के दरबार में शीश झुकाया था।
- मंदिर के साथ प्राचीन शिवालय में आदमकद शिवलिंग स्थापित है, जहाँ लोग माता के दर्शन के उपरांत शिवलिंग पर अभिषेक करते हैं।
- कांगड़ा के बगलामुखी मंदिर में देशभर से श्रद्धालु आते हैं।
- बगलामुखी जयंती पर मंदिर में हवन करवाने का विशेष महत्व है, जिससे कष्टों का निवारण होने के साथ-साथ शत्रु भय से भी मुक्ति मिलती है।
- श्रद्धालु नवग्रह शांति, ऋद्धि-सिद्धि प्राप्ति सर्व कष्टों के निवारण के लिए मंदिर में हवन-पाठ करवाते हैं।
- मंदिर में हवन करवाने के लिए बाकायदा बुकिंग करवानी पड़ती है।
- पहले यहां एक ही हवन कुंड था तो आलम यह था कि कई महीने हवन करवाने के लिए इंतजार करना पड़ता था, लेकिन अब यहां हवन कुंडों की संख्या बड़ा दी गई है।
माँ बगलामुखी के हैं तीन मंदिर
भारत में मां बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर हैं, जो क्रमशः दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल) तथा नलखेड़ा (मध्यप्रदेश) में हैं। तीन मुखों वाली त्रिशक्ति माता बगलामुखी का एक मंदिर आगरमालवा जिला में नलखेड़ा में लखुंदर नदी के किनारे है। मां बगलामुखी रावण की ईष्टदेवी हैं।